[ संजय गुप्त ]: मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी दर का आंकड़ा पांच प्रतिशत रह जाने के बाद देश में अनिश्चितता का माहौल है। उद्योगपतियों से लेकर आम आदमी तक इसे लेकर आशंकित हैं कि आर्थिक सुस्ती कहीं मंदी में न तब्दील हो जाए। अर्थव्यवस्था की सुस्ती के कई कारण गिनाए जा रहे हैैं। कुछ अर्थशास्त्रियों की मानें तो संप्रग शासन के समय हुए तमाम घोटालों के कारण बैंकों की जो पूंजी तबाह हो गई उसके कारण आशंकित बैैंक लोन देने से कतरा रहे हैं और वही समस्या की जड़ है। रही-सही कसर आइएल एंड एफएस की बदइंतजामी ने पूरी कर दी है।

अनिश्चितता के चलते खरीददारी नहीं हो रही

कुछ अर्थशास्त्री यह मानते हैैं कि अनिश्चितता की आशंका के चलते उपभोक्ता खरीददारी नहीं कर रहे हैैं और उसके चलते मांग नहीं बढ़ रही है। इसके अलावा भी कुछ अन्य कारण गिनाए जा रहे हैैं। कारण जो भी हों, इससे इन्कार नहीं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ चुकी है। आर्थिक सुस्ती के संकेत मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू होने के पहले ही मिलने लगे थे, लेकिन जब ऑटो सेक्टर में मांग लगातार गिरने लगी तो चिंताएं बढ़ने लगीं। पिछले साल की तुलना में तो इस बार मांग करीब 50 प्रतिशत कम है। इसके भी अलग-अलग कारण गिनाए जा रहे हैैं।

ऑटो सेक्टर वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम नहीं हो सका

ऑटो सेक्टर जीडीपी में खासा महत्व रखता है, लेकिन इस सेक्टर को चलाने में सरकार की कोई सीधी भूमिका नहीं। बावजूद इसके यह सेक्टर वाहनों की मांग में कमी का ठीकरा सरकार पर फोड़ रहा है। यह ठीक नहीं। ऑटो उद्योग अपनी समस्याओं के लिए एक बड़ी हद तक खुद जिम्मेदार है। वह तमाम अनुकूल हालात के बाद भी खुद को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम नहीं बना सका।

2020 से बीएस-6 मानक वाले ही इंजन इस्तेमाल होंगे

ऑटो उद्योग इससे परिचित था कि सरकार ने प्रदूषण से निजात पाने के लिए करीब चार साल पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि अप्रैल 2020 से बीएस-6 मानक वाले ही इंजन इस्तेमाल होंगे। सरकार ने यह भी घोषणा कर रखी थी कि इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाएगा, क्योंकि उनके जरिये भी प्रदूषण नियंत्रण में मदद मिलेगी। लगता है ऑटो उद्योग ने इन संभावित बदलावों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। इसी कारण यह कहा जा रहा है कि भविष्य की चुनौतियों की अनदेखी करके उसने अपनी मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया।

2020 से नए इंजन वाले वाहन आने हैैं इसलिए लोगों ने कार लेना बंद कर दिया

चूंकि उपभोक्ता यह जान रहे हैैं कि 2020 से नए इंजन वाले वाहन आने हैैं इसलिए बहुत से लोगों ने कार लेने का इरादा टाल दिया है। जहां तक बाइक और कारों के साथ ट्रकों की खरीद में कमी आने की बात है तो इसका कारण उन आंकड़ों में छिपा हो सकता है जिनके तहत यह सामने आया था जिन ट्रकों को अपनी खेप पहुंचाने में पहले करीब दस दिन लगते थे, जीएसटी लागू होने के बाद उन्हें एक सप्ताह या उससे कम समय लग रहा है। उनके लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने में इसलिए आसानी हो रही है, क्योंकि उन्हें जगह-जगह पर रुकने की जरूरत नहीं पड़ रही है। यह ट्रकों की बिक्री में कमी का एक बड़ा कारण हो सकता है। जो भी हो, ऑटो उद्योग की यह मांग सही नहीं कि उसे राहत-रियायत पैकेज मिले।

मोदी सरकार को कृषि सेक्टर की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए

यदि मोदी सरकार को किसी सेक्टर की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए तो वह है कृषि क्षेत्र। सरकार को कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कुछ न कुछ करना ही चाहिए। इसलिए और भी, क्योंकि मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो तमाम कदम उठाए उनका असर अभी तक नहीं दिखाई दिया है और इससे उसे चिंतित होना चाहिए।

सरकार आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए कदम उठा रही है

सरकार आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए एक के बाद एक कदम उठा रही है। इसी क्रम में गत दिवस भी कुछ घोषणाएं की गईं। इनमें एक घोषणा निर्यातकों को राहत देने के लिए नई योजना बनाने की है और दूसरी हाउसिंग सेक्टर को संकट से उबारने के लिए नया फंड बनाने की। ऐसी घोषणाएं शायद इसीलिए की जा सकीं, क्योंकि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और राजकोषीय घाटा लक्ष्य के मुताबिक है। इसके बावजूद सरकार का लक्ष्य यही होना चाहिए कि उद्योग जगत अपने पैरों पर खड़ा हो। उसे उन्हीं उद्योगों को राहत देनी चाहिए जो रोजगार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करने का काम कर सकें।

भारतीय उद्योग जगत की समस्याएं दूर हों

यह समय की मांग है कि उद्योग जगत की समस्याओं को दूर करने का काम कुछ इस तरह किया जाए जिससे एक तो आर्थिक सुस्ती मंदी में न बदलने पाए और दूसरे भारतीय उद्योग जगत दुनिया से मुकाबला करने में सक्षम हो सके। अगर यह ध्यान नहीं रखा जाएगा तो सरकार के लिए विकास और जनकल्याण के लक्ष्य हासिल कर पाना तो मुश्किल होगा ही, राजनीतिक स्तर पर उसकी चुनौतियां भी बढ़ेंगी।

मनमोहन सिंह को मोदी सरकार अनदेखी नहीं कर सकती

सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले कुछ दिनों में दो बार उसे कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने एक वीडियो जारी कर मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए नोटबंदी को भी कोसा और फिर यह भी कहा कि जीएसटी को गलत तरीके से लागू करने के कारण अर्थव्यवस्था संकट में पड़ी। अच्छा होता कि उन्हें यह भी याद रहता कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती के लिए बैैंकों की खस्ताहालत भी जिम्मेदार है। उनके कार्यकाल में बैैंकों ने संदिग्ध इरादों वाले तमाम लोगों को जो अनाप-शनाप कर्ज दिए उसके कारण हालात और बिगड़े। वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक सुधारों को गति देने वाले मनमोहन सिंह को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज के दौर में आवश्यक यह है कि कारोबार में सरकार का दखल कम से कम हो, क्योंकि इससे ही उद्योग जगत प्रतिस्पर्धी बनेगा।

आर्थिक हालात को सड़कों पर ले जाना स्वस्थ्य राजनीति नहीं है

मनमोहन सिंह के साथ ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनीं सोनिया गांधी ने भी आर्थिक हालात को लेकर सक्रियता दिखाते हुए कांग्रेसी नेताओं से कहा है कि वे सरकार की नीतियों की केवल सोशल मीडिया पर आलोचना न करें, बल्कि सड़कों पर उतर कर धरना-प्रदर्शन करें। आखिर यह कौन सी रणनीति या फिर यह कहें कि राजनीति हुई? कांग्रेस को यह ध्यान रखना चाहिए कि दशहरा और दीवाली के बीच देश में बड़े पैमाने पर खरीद होती है।

लोगों को भयभीत न करे कांग्रेस 

अर्थव्यवस्था की धीमी चाल एक सच्चाई है। अगर कांग्रेस के पास उससे निपटने की कोई तरकीब है तो उसे उसके बारे में बताना चाहिए, न कि आम लोगों को भयभीत करने का काम करना चाहिए। कांग्रेसी नेता केसी वेणुगोपाल ने घोषणा की है कि आर्थिक सुस्ती के खिलाफ कांग्रेस 15 से 25 अक्टूबर के बीच धरना-प्रदर्शन करेगी। इसका मतलब है कि दशहरे के बाद जब त्योहारी खरीद चरम पर होती है तब कांग्रेस लोगों को डराने का काम करेगी। उसका ऐसा करना जितना हास्यास्पद होगा उतना ही आश्चर्यजनक भी।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]