[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]; केंद्र सरकार ने हाल में तीन सार्वजनिक उपक्रमों यानी पीएसयू के विनिवेश का फैसला किया है। ये तीन उपक्रम हैं-भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन और कॉन्कोर। इनमें सरकार की बहुलांश हिस्सेदारी है। इनका संचालन मुख्य रूप से सरकारी अधिकारियों द्वारा होता है। विनिवेश के जरिये सरकार अपनी हिस्सेदारी किसी एक विशेष खरीदार को बेच देगी। इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। ऐसी अधिकांश इकाइयों के कारण सरकार को घाटा ही होता है। अधिकारियों के निजी हितों और इकाइयों के हितों में तालमेल नहीं होता। जैसे अधिकारी किसी चहेते को ऊंचे दाम पर ठेका दिला दे तो इससे उसे निजी लाभ होता है जबकि संबंधित उपक्रम को घाटा हो सकता है। इस लिहाज से विनिवेश स्वागतयोग्य एवं सराहनीय है।

कंपनियों के विनिवेश में तीन समस्याएं

इन तीन बड़े उपक्रमों के अलावा सरकार ने दो अन्य इकाइयों के विनिवेश का भी फैसला किया है। इनमें एक है नीपको। यह पूर्वोत्तर राज्यों में जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़ी है। दूसरी इकाई है टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, जिसने टिहरी बांध का निर्माण किया है। यह गंगा पर विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना भी विकसित कर रही है। इन दोनों कंपनियों के विनिवेश में तीन समस्याएं हैं।

पहली समस्या- कंपनियों के शेयर एनटीपीसी को बेचेगी

पहली यह है कि सरकार ने निर्णय लिया है कि वह इन कंपनियों के शेयरों को किसी निजी खरीदार को बेचने के स्थान पर अपनी ही दूसरी इकाई एनटीपीसी को बेचेगी। यह कुछ वैसा ही होगा जैसे पिता अपनी दुकान अपने साथ रहने वाले बेटे को बेच दे। इससे पिता के हाथ में पैसा तो आ जाएगा, लेकिन दुकान पर पिता का वर्चस्व और दखल बना रहेगा।

शेयरों को बेचकर सरकार रकम तो जुटाएगी, लेकिन उसका नियंत्रण बना रहेगा

नीपको और टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के शेयरों को बेचकर सरकार रकम तो जुटाएगी, लेकिन उसका इन पर नियंत्रण बना रहेगा। इससे सरकार का वित्तीय घाटा सुधर जाएगा। इस सबके बावजूद सरकारी अधिकारियों के नियंत्रण की इन दोनों इकाइयों की मूल समस्या ज्यों की त्यों रह जाएगी। इन इकाइयों का शरीर पूर्ववत ‘सरकारी’ बना रहेगा और केवल चेहरा बदल जाएगा।

दूसरी समस्या- दोनों इकाइयों की है खस्ता हालत

इन दोनों इकाइयों के विनिवेश में दूसरी समस्या है कि उनकी वास्तविक हालत या तो खस्ता है या फिर जनता के अनुकूल नहीं है। महज चेहरा बदल या चमका कर ही काया की कमजोरी को छिपाया नहीं जा सकता। ऐसा करके सरकार सिर्फ वास्तविक स्थिति को छिपाने का काम कर रही है। नीपको ने हाल में तीन सौ करोड़ रुपये के बांड बेचने का प्रयास किया था, लेकिन उनमें से केवल 13 करोड़ रुपये के बांड ही बिक पाए। यह दर्शाता है कि बाजार को नीपको पर भरोसा नहीं है।

टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ऊंचे दाम बिजली बेचकर भारी लाभ कमा रही

टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का हाल तो इससे भी बुरा है। यह आम लोगों से बिजली के ऊंचे दाम वसूल कर भारी लाभ कमा रही है। यह राज्यों के बिजली बोर्डों को प्रति यूनिट ग्यारह रुपये की दर से बिजली बेच रही है जो बाजार में चार रुपये की दर पर भी उपलब्ध है। इस महंगी बिक्री से टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को भारी लाभ हो रहा है जबकि उत्तर प्रदेश, दिल्ली और अन्य राज्यों के उपभोक्ता इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। कंपनी अनुचित रूप से अर्जित किए जा रहे इस लाभ का दूसरी इकाइयों के घाटे से होने वाले नुकसान को पाटने में इस्तेमाल कर रही है।

विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना 2022 तक पूरी हो जाएगी

टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन की विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना को केंद्र ने 2008 में मंजूरी दी थी। तब इसकी लागत 2,491 करोड़ रुपये थी। इसे 2013 तक बनकर तैयार हो जाना चाहिए था। तब इससे उत्पादित बिजली की दर 2.26 रुपये प्रति यूनिट आंकी गई थी। अब इस परियोजना की लागत बढ़कर 4,379 करोड़ रुपये हो गई है। वहीं बिजली की लागत 6.42 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच जाएगी जबकि बाजार में यह चार रुपये प्रति यूनिट में आसानी से उपलब्ध है। साथ ही परियोजना 2022 तक ही पूरी तरह तैयार हो पाएगी। हालांकि उसमें भी देरी की आशंका है। यदि ऐसा हुआ तो इसकी लागत और ज्यादा बढ़ती जाएगी। स्वाभाविक रूप से बिजली बनाने की लागत भी प्रभावित होगी।

तीसरी समस्या- जुटाई गई रकम का इस्तेमाल सरकारी खपत में किया जा रहा है

सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना के पीछे जनसेवा की भावना थी, लेकिन अब वे जनता से वसूली करने वाली इकाइयां या सफेद हाथी बनकर रह गई हैं। इनसे जुड़ी तीसरी समस्या यह है कि जुटाई गई रकम का इस्तेमाल सरकारी खपत में किया जा रहा है। 2013-14 में सरकार ने कुल खर्च का 4.8 प्रतिशत सरकारी कर्मियों की पेंशन पर व्यय किया। 2017-18 में यह बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गया। जैसे कोई व्यक्ति अपने पुश्तैनी मकान को बेचकर उससे मिली रकम को अय्याशी में उड़ा दे। यह जरूरी है कि सरकार विनिवेश से अर्जित रकम का इस्तेमाल सही जगह निवेश में करे। अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अंतरिक्ष, बिग डाटा प्रोसेसिंग, स्टेम सेल जैसे क्षेत्रों में संभावनाएं बढ़ रही हैं। भारत को इनमें निवेश करना चाहिए। इससे भारत आधुनिक तकनीक के सृजन में अग्र्रणी बन सकेगा।

भारत के सामने चीन की चुनौती भी है

भारत के सामने इस समय चीन की चुनौती भी खड़ी है। चीन ने वन बेल्ट, वन रोड जैसी अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत एशिया और अफ्रीका के कई देशों को भारी कर्ज दिया है ताकि इन भूभागों को यूरोप से जोड़ा जा सके। वह भारत के पड़ोस में श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और भूटान पर डोरे डालकर भारत को घेरने की साजिश रच रहा है। चीन के वर्चस्व वाले पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों में हमारी पैठ बहुत मामूली है। हमारी इतनी क्षमता नहीं कि चीन की तरह उन्हें भारी-भरकम कर्ज दे सकें। भारत इसकी काट दूसरी तरह कर सकता है। एक तो वह अन्य गरीब देशों को कर्ज मुहैया कराए और उन्हें शिक्षक आदि उपलब्ध कराए। इसमें विनिवेश से हासिल होने वाली रकम की मदद ली जा सकती है। सरकार को चाहिए कि वह अपने कर्मियों की पेंशन पर इसे खर्च करने के बजाय उन मदों में लगाए जहां से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

कंपनियों की वास्तविक स्थिति को छिपाया जा रहा

नीपको और टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के विनिवेश की समस्याओं के तीन अहम पहलू हैं। पहला यह कि इन कंपनियों की वास्तविक स्थिति को छिपाया जा रहा है। जनहित के लिए स्थापित की गई परियोजना द्वारा महंगी बिजली बेची जा रही है। इसी उपक्रम द्वारा विकसित की जा रही पीपलकोटी परियोजना की बिजली दरें भी महंगी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।

विनिवेश के मोर्चे पर बाजीगरी

दूसरी समस्या यह है कि सरकार अपनी एक इकाई को दूसरी इकाई के हाथों बेचकर विनिवेश के मोर्चे पर बाजीगरी कर रही है।

खपत को पूरा करने के लिए सरकार विरासत में मिली संपत्ति को बेच रही

तीसरी समस्या है कि अपनी खपत को पूरा करने के लिए सरकार विरासत में मिली संपत्ति को बेच रही है। नि:संदेह विनिवेश का विचार बुरा नहीं है, लेकिन उसे सही ढंग से इस्तेमाल करने की जरूरत है ताकि अपेक्षित नतीजे हासिल किए जा सकें।

( लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलूर के पूर्व प्रोफेसर हैं )