नरपतदान चारण। lightning safety tips बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में आकाशीय बिजली गिरने से सैकड़ों लोगों की मौत हुई। मानसून के आरंभिक दौर में आकाशीय बिजली का प्रकोप पिछले कई दिनों से जारी है। दरअसल आकाशीय बिजली एक प्राकृतिक आपदा है जिससे बहुत नुकसान होता है। आकाशीय बिजली गिरने यानी वज्रपात के समय आसमान में विपरीत ऊर्जा के बादल हवा से उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं और विपरीत दिशा में जाते हुए टकराते हैं। इससे होने वाले घर्षण से बिजली पैदा होती है। आसमान में किसी तरह का कंडक्टर न होने से यह बिजली कंडक्टर के लिए धरती पर पहुंचती है। जब यह आकाशीय बिजली लोहे के खंभों, पेड़ आदि के आसपास से गुजरती है तो वह कंडक्टर का काम करता है। और उस समय यदि कोई व्यक्ति या पशु उसके संपर्क में आता है तो उसकी जान जा सकती है।

आकाशीय बिजली से मारे जाने वालों में सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के लोग और मवेशी होते हैं। यह भी ध्यान देने की बात है कि आकाशीय बिजली गिरने की घटना गृह मंत्रालय की आपदाओं की अधिसूची में शामिल नहीं है। वज्रपात से होने वाली मौतों की तादाद लगभग 10 फीसद है। हर साल आसमानी बिजली की चपेट में आने से करीब तीन से साढ़े तीन हजार लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में खेतों या खुले में काम करने वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे यहां आसमानी बिजली की चपेट में आने वालों की तादाद बढ़ जाती है। आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 1967 से 2016 तक प्राकृतिक आपदाओं में कुल जितने लोगों की मौतें हुई हैं, उनमें 39 फीसद वज्राघात से हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में 2,582 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि 2013 में 2,833 लोग इसके शिकार हुए थे।

कई देशों में बिजली गिरने की सूचनाएं एकत्र करने और इस घटना की समय रहते चेतावनी जारी करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था अर्थ नेटवर्क की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में जनवरी से अगस्त तक भारत में करीब दो करोड़ बार आकाशीय बिजली चमकने की घटनाएं हुईं। इनमें से करीब डेढ करोड़ घटनाएं बादलों में ही हुई, जबकि बाकी बिजली धरती पर भी गिरी। सबसे ज्यादा ओडिशा में बिजली गिरने के करीब तीस लाख मामले सामने आए थे, इसके बाद पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में बिजली गिरने की घटनाएं हुई थीं। हालांकि इसमें जान-माल के नुकसान का आकलन नहीं दिया गया है। लेकिन जाहिर सी बात है कि इतनी बार वज्रपात की घटनाएं हुई हैं तो सैकड़ों लोगों और मवेशियों की हानि तो हुई ही होगी।

अगर इसके पूर्व सूचना तंत्र की बात करें तो देश में आकाशीय बिजली चमकने और गिरने का पूर्वानुमान करने के लिए मौसम विभाग की ओर से गत वर्ष देश के चुनिंदा 20 जगहों में सेंसर ट्रैक प्रणाली स्थापित की गई। हालांकि मौसम विभाग अभी आकाशीय बिजली गिरने की कोई चेतावनी जारी नहीं करता है। पर्यावरण विज्ञानियों का कहना है कि भारत को बांग्लादेश की तरह बिजली आघात से बचने के लिए ताड़ के वृक्ष लगाने की योजना बनानी चाहिए। बांग्लादेश ने बिजली गिरने से होने वाली मौतों को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ के वृक्ष लगाने शुरू किए, जिससे काफी फायदा मिला। दरअसल ताड़ का पेड़ बहुत ऊंचा होता है। कोई भी जीवित पेड़ विद्युत का अच्छा संवाहक होता है। ताड़ के पेड़ में मौजूद पानी, बिजली को जमीन में ले जाने का माध्यम बन जाती है। इस तरह यह पेड़ आकाशीय बिजली को जमीन पर फैलने से रोकते हैं और बिजली के करंट को अवशोषित कर इसे जमीन के अंदर गहराई में पहुंचा देते हैं। खेत में बिजली ताड़ के पेड़ पर पहले गिरती है।

आकाशीय बिजली पूर्व सूचना तंत्र पर भी कार्य किया जा रहा है। पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटीरियोलॉजी ने आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली दुर्घटनाओं से निपटने के लिए पिछले साल देश के विभिन्न हिस्सों में 48 सेंसर्स के साथ एक लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क स्थापित किया था। यह नेटवर्क बिजली गिरने और तूफान की दिशा की सटीक जानकारी देता है। हालांकि आकाशीय बिजली त्वरित घटना होती है, लिहाजा इसके सटीक समय की जानकारी मिल पाना संभव नहीं होता। शायद इसीलिए मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि प्राकृतिक आपदा होने की वजह से इस पर पूरी तरह अंकुश तो नहीं लगाया जा सकता, लेकिन विभिन्न इलाकों में होने वाले वज्रपात की घटनाओं पर गहन शोध और एक सटीक चेतावनी प्रणाली के जरिये इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है। देश के विभिन्न हिस्सों में मौसम के अंतर व इसके बदलते मिजाज को समझने के लिए बड़े पैमाने पर शोध जरूरी है। देश के अलग-अलग हिस्सों में मौसम की स्थिति भी अलग-अलग होती है।

क्या करें क्या न करें, इसे जानें

  • बिजली के खंभों और टॉवरों से दूरी बरतें।
  • वज्रपात की आशंका हो तो खुली जमीन पर न लेटें।
  • वाहनों से निकल कर तुरंत सुरक्षित स्थानों पर जाएं।
  • उसी छतरी का इस्तेमाल करें, जिसमें धातु की बजाय लकड़ी का हैंडल लगा हो।
  • खुले आसमान के नीचे अकेले फंस गये हों तो गड्ढों या नीची चट्टानों की ओट लें।
  • विस्तृत मैदान में, जहां कोई पेड़ या ऊंची रचना न हो, वहां खड़े रहने की गलती न करें।

बहरहाल हर साल राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन लोगों को इससे बचने के उपाय बताकर जागरूक करता है। अगर आसमान में बिजली कड़क रही है और आप घर के बाहर हैं तो सबसे पहले सुरक्षित जगह तक पहुंचने का प्रयास करें। तुरंत पानी, बिजली के तारों, खंभों, हरे पेड़ों और मोबाइल टावर आदि से दूर हट जाएं। खुले आसमान में हैं तो अपने हाथों को कानों पर रख लें, ताकि बिजली की तेज आवाज से कान के पर्दे न फट जाएं। अपनी दोनों एडियों को जोड़कर जमीन पर पर उकड़ू बैठ जाएं। इस प्रकार काफी हद तक आकाशीय बिजली से बचाव हो सकता है।

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