[ डॉ. विजय राणा ]: किसी देश, समाज या संस्थान के अलगाव और विभाजन की बात करने वालों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि कोई भी बंटवारा व्यवस्थित नहीं होता। अलगाव की प्रक्रिया को अनिश्चित राहों से गुजरना पड़ता है। अलगाव की प्रवृत्ति को नेतृत्व देने वाले अक्सर नहीं जानते कि एक फिसलन भरे रास्ते पर चल कर उनका देश आखिर कहां पहुंचेगा? दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र ब्रिटेन आज इसी उलझन के दौर से गुजर रहा है।

ब्रिटेन 31 अक्टूबर को यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा: जॉनसन

ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कह चुके हैं कि उनका देश किसी भी कीमत पर 31 अक्टूबर की आधी रात को यूरोपीय संघ से अलग हो जाएगा, लेकिन यह कैसे होगा, अभी कुछ निश्चित नहीं है। ब्रिटेन की शीर्ष अदालत ने ब्रेक्जिट से पहले संसद को निलंबित करने के उनके फैसले को गैरकानूनी ठहराते हुए संसद को फिर से बहाल कर दिया है। दुनिया भर में लोकतंत्र की जननी कही जाने वाली ब्रिटेन की संसद को बिना समझौते ‘नो-डील ब्रेक्जिट’ मान्य नहीं है। इस पर सत्तारूढ़ कंजरवेटिव और विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद बुरी तरह से बंटे हुए हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूर्व प्रधानमंत्री टेरीजा मे द्वारा यूरोपीय संघ के साथ किए गए समझौते को संसद में चार बार ठुकराया जा चुका है।

संसद ब्रेक्जिट के किसी भी स्वरूप को लेकर एकमत नहीं है

साफ है संसद ब्रेक्जिट के किसी भी स्वरूप को लेकर एकमत नहीं है। इसका सबसे पेचीदा पक्ष यह है कि नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण स्थिति और भी बिगड़ती जा रही है। ब्रेक्जिट विवाद के दौरान वरिष्ठ नेताओं की निगाहें प्रधानमंत्री पद पर लगी हुई थीं। प्रधानमंत्री पद के लिए आतुर बोरिस जॉनसन ने टेरीजा मे का जीना दूभर कर दिया था। हालांकि उन्होंने भी प्रधानमंत्री पद बड़ी चतुराई से हासिल किया था।

ब्रेक्जिट जनमत संग्रह में हार के बाद कैमरन को इस्तीफा देना पड़ा था

जून 2016 के ब्रेक्जिट जनमत संग्रह में हार के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को इस्तीफा देना पड़ा था। उस हार के लिए टेरीजा भी जिम्मेदार थीं। वह खुद यूरोपीय एकता की पक्षधर थीं और ‘रिमेन’ आंदोलन के साथ थीं, पर गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने कैमरन का साथ नहीं दिया, क्योंकि यह तय था कि हार के बाद कैमरन को त्यागपत्र देना होगा और इससे उनके लिए प्रधानमंत्री पद का रास्ता खुल जाएगा। उनकी रणनीति सफल रही।

टेरीजा के समझौते को संसद ने ठुकराया और इस्तीफा देना पड़ा

टेरीजा प्रधानमंत्री बनीं। यूरोप से समझौते का उन्होंने गंभीर प्रयास भी किया, पर महत्वाकांक्षी बोरिस जॉनसन ने उन्हें सफल नहीं होने दिया। उनके समर्थकों ने विपक्षी लेबर पार्टी के साथ मिलकर टेरीजा के समझौते को संसद में चार बार ठुकराया। हार कर उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया और अंतत: जॉनसन अपनी अभिलाषा पूरी करने में सफल हो गए। इस बीच कुछ और कंजरवेटिव सांसदों ने पार्टी छोड़ दी। जॉनसन के पास सिर्फ एक सीट का बहुमत बचा था। ऐसे में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव की धमकी दे रहा था। बहुमत समाप्त होने से पहले जॉनसन ने एक ऐसी अभूतपूर्व चाल चली, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। उन्होंने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को पांच सप्ताह के लिए संसद स्थगित करने की सिफारिश कर दी।

संसद का स्थगन गैर-कानूनी है

ब्रिटेन के अलिखित संविधान के अनुसार महारानी प्रधानमंत्री की सलाह नहीं ठुकरा सकतीं। ब्रिटेन के आधुनिक इतिहास में संसद के सत्र का इतना लंबा अवसान कभी नहीं हुआ था। जॉनसन की इस चाल से संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। कुछ लोगों ने हाईकोर्ट से गुहार लगाई कि संसद में अल्पमत और हार की दहलीज पर बैठे एक प्रधानमंत्री द्वारा संसद का स्थगन गैर-कानूनी है। इंग्लैंड के हाईकोर्ट ने कहा कि मामला राजनीतिक है, जिसमें अदालत दखल नहीं देगी, लेकिन स्कॉटलैंड हाईकोर्ट की तीन न्यायाधीशों की एक बेंच ने संसद के स्थगन को गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहां बोरिस जॉनसन को मुंह की खानी पड़ी। इस फैसले के बाद ब्रिटेन की जनता भ्रमित है। वहां के लोग तरह-तरह की चिंताओं से ग्रस्त हैं।

ब्रिटेन के 30 प्रतिशत खाद्य पदार्थ यूरोपीय संघ से आते हैं

ब्रिटेन के 30 प्रतिशत खाद्य पदार्थ यूरोपीय संघ से आते हैं। लोग इन सवालों से जूझ रहे हैैं कि क्या खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ेंगे? क्या देश में दवाओं की किल्लत हो जाएगी? नौकरियों का क्या होगा? कई कार कंपनियां अपने कारखाने यूरोप ले जाने की धमकी दे चुकी हैं। पिछले तीन वर्षों में ब्रिटिश मुद्रा पाउंड के मूल्य में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। सटोरिये और निवेशक अवसरों की तलाश में हैं। खासतौर से चीनी निवेशक इस साल ब्रिटेन की 15 बड़ी कंपनियों में लगभग सात अरब पाउंड की हिस्सेदारी खरीद चुके हैं।

‘नो-डील ब्रेक्जिट’ की नीति पर ब्रिटेन और यूरोप को नुकसान होगा

अधिकांश अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि यदि जॉनसन अपनी ‘नो-डील ब्रेक्जिट’ की नीति पर अडिग रहते हैैं तो ब्रिटेन और यूरोप, दोनों को ही नुकसान होगा। ब्रिटेन के 44 प्रतिशत निर्यात और 53 प्रतिशत आयात यूरोपीय यूनियन के साथ होते हैं। साझा बाजार खत्म होने के बाद दोनों पक्ष एक-दूसरे की वस्तुओं पर आयात और निर्यात शुल्क लगाएंगे, जिससे दोनों के उत्पाद महंगे हो जाएंगे।

ब्रेक्जिट विवाद में कोर्बिन की भूमिका विवादास्पद

ब्रेक्जिट विवाद में विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन की भूमिका भी विवादास्पद रही है। अपने वामपंथी विचारों के कारण उन्होंने न केवल ब्रिटेन के मध्यमार्गी मतदाताओं का विश्वास खो दिया है, बल्कि कश्मीर पर अपने रवैये के कारण भारतीय मूल के एक बड़े वर्ग को भी नाराज कर दिया है। अब उन्होंने दूसरे जनमत संग्रह का पासा फेंका है। उनका तर्क है कि ब्रेक्जिट का अंतिम फैसला एक नए चुनाव में जनता द्वारा किया जाना चाहिए। राजनीतिक उठापटक के इस माहौल में यूं तो प्रधानमंत्री पद किसी के भी हाथ लग सकता है, लेकिन कोर्बिन के लिए यह पद अभी राजनीतिक संभावनाओं की परिधि में नहीं है।

ब्रिटेन का यूरोप विरोध राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, व्यापारिक ईर्ष्या पर आधारित है

वास्तव में ब्रिटेन का यूरोप विरोध राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, व्यापारिक ईर्ष्या और अतिआत्मविश्वास पर आधारित है। फ्रांस और ब्रिटेन 600 साल तक युद्ध लड़े हैं। दूसरे महायुद्ध के बाद जर्मनी ने विकास की दौड़ में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया, लेकिन ब्रिटेन अपने आपको आज भी विश्व शक्ति मानता है। यूरोप के अलावा उसके पास राष्ट्रमंडल देशों का समूह भी है जिसमें वह भारत, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रभावशाली देशों के साथ रिश्ते बनाए हुए है। उसके इसी अति-आत्मविश्वास के गुब्बारे में पिछले दिनों अमेरिकी राजदूत वूडी जॉनसन ने भी यह कहकर हवा भरने का काम किया, ‘जिन लोगों ने महानतम साम्राज्य स्थापित किया और मानवता के विकास में बड़ा योगदान दिया उन्हें यूरोप के किसी और देश के नसीहत की जरूरत नहीं है।’ कुल मिलाकर ब्रिटेन बेक्जिट के जाल में और उलझता नजर आ रहा है। उसकी इस समस्या का कब और कैसे समाधान होगा, ब्रिटेन के साथ-साथ समूचा विश्व बेसब्री से इसका इंतजार कर रहा है।

( लेखक लंदन में रह रहे वरिष्ठ पत्रकार हैैं )