[अजय कुमार राय] भारतीय सभ्यता के उद्भव और विकास में सरस्वती नदी की क्या भूमिका थी? हड़प्पा निवासी कौन थे? वे आज के भारतीयों से किस तरह संबंधित थे? क्या कभी कोई आर्य आक्रमण हुआ था? मेजर जनरल जीडी बक्षी ने अपनी पुस्तक 'सरस्वती सभ्यता : प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन में सैटेलाइट चित्रों, भौगोलिक विज्ञान, पुरातत्व सर्वेक्षण, पुरालेखों, डीएनए शोधों और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में हुए नए शोधों और स्पष्टीकरणों को एक साथ समायोजित करते हुए सभी मुद्दों को सुलझाने का सफल प्रयास किया है।

प्राचीन भारतीय इतिहास से जुड़े ये शोध अंग्रेजों के समय उपलब्ध नहीं थे, जिसके कारण 19वीं शताब्दी में सरस्वती नदी घाटी के बारे में कई तथ्य सामने नहीं आ पाए थे। इस पुस्तक में दिए गए तथ्यों के आधार पर अभी हम दावा कर सकते हैं कि आज से लगभग पांच हजार साल पहले सरस्वती नदी अपने वेगवान प्रवाह के साथ विद्यमान थी। यह भारत की सबसे प्राचीन और महान हड़प्पा सभ्यता का केंद्रबिंदु थी। जिस सिंधु घाटी सभ्यता की हमेशा बात की जाती है, वह करीब 60 से 80 प्रतिशत सरस्वती नदी के तटों पर बसी थी, न कि सिंधु नदी के तटों पर। किन्हीं कारणों से सरस्वती नदी के सूख जाने के बाद हड़प्पा के लोगों को इसकी सहायक नदियों की ओर जाना पड़ा। इसके साथ ही औपनिवेशिक काल में बनाया गया आर्य आक्रमण सिद्धांत भी इस पुस्तक में दिए गए प्रमाणों के आगे नहीं टिकता।

इस प्रकार यह पुस्तक सरस्वती नदी के स्थान, उसके किनारे पनपी संस्कृति की पहचान और आर्यों की समस्या के उल्लेख के साथ कई विवादों का समाधान करती है। अब समय आ गया है, जब इन नए वैज्ञानिक साक्ष्यों के आईने में भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं को ठीक से समझा जाए। इन नई जानकारियों को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए। यह पुस्तक छात्रों, शोधार्थियों और विद्वानों के साथ-साथ आम आदमी के लिए भी बहुत उपयोगी होगी।

पुस्तक का नाम : सरस्वती सभ्यता- प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन

लेखक : मेजर जनरल जीडी बक्षी

प्रकाशक : गरुड़, गुरुग्राम

मूल्य : 399 रुपये