अभिव्यक्ति की क्षुद्रता का प्रदर्शन 

किताब के जवाब में किताब लिखने की दलील देने वाले अब उसे न छापे जाने को सही ठहराने में लगे हुए हैं

[ राजीव सचान ]: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा उठाने और किसी फिल्म या किताब के विवादों में घिर जाने पर यह कहने वाले कि पहले उसे देख तो लें-पढ़ तो लें, इन दिनों इससे हर्षित और मुदित हो रहे हैं कि एक अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक की भारतीय इकाई ब्लूम्सबरी इंडिया ने दिल्ली दंगों पर लिखी गई किताब-‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ को प्रकाशित करने से मना कर दिया। यह प्रकाशन की दुनिया की सबसे अजीब और मूर्खतापूर्ण घटना है, क्योंकि ब्लूम्सबरी इंडिया ने दिल्ली दंगों पर केंद्रित जिस किताब को अंतिम समय पर छापने से मना कर दिया वह उसकी स्वीकृति दे चुका था, उसे संपादित कर चुका था और उसका आवरण पृष्ठ तैयार करने के साथ ही उसकी कुछ प्रतियां भी छाप चुका था। इस प्रकाशक ने अंतिम क्षणों में अपना फैसला इस पिलपिले बहाने की आड़ में बदला कि उक्त किताब का ऑनलाइन लोकार्पण समारोह उसकी अनुमति के बगैर किया गया।

समारोह में भाजपा नेता कपिल मिश्रा के शामिल को लेकर बिदका प्रकाशक

माना जाता है कि प्रकाशक इसलिए बिदका, क्योंकि इस समारोह में भाजपा नेता कपिल मिश्रा भी शामिल हो रहे थे, जिन पर दिल्ली दंगों के दौरान भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे हैं। अगर यही सच है जो कि प्रतीत भी होता है तो यह कुछ वैसा ही बहाना है जैसे कोई प्रकाशक यह कहने लगे कि उसके द्वारा प्रकाशित किताब अगर अमुक-अमुक ने पढ़ी तो वह उसे छापने-बेचने से इन्कार कर देगा।

ब्लूम्सबरी इंडिया की हुई जगहंसाई, प्रकाशक लेखकों के निशाने पर

चूंकि प्रकाशक के पास उक्त किताब को छापने से इन्कार करने के पीछे कोई भी तार्किक कारण नहीं इसलिए वह जगहंसाई का पात्र बनने के साथ ही तमाम लेखकों के निशाने पर है। कुछ लेखकों ने तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर दिखाई जाने वाली ब्लूम्सबरी की क्षुद्रता से नाराज होकर उसकी ओर से प्रकाशित की जाने वाली अपनी किताबों को वापस लेने का फैसला कर लिया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले वामपंथी, उदारपंथियों के दवाब में ब्लूम्सबरी इंडिया

यह मानना सही नहीं होगा कि ब्लूम्सबरी इंडिया ने किसी सनक का शिकार होकर स्वीकृत की हुई किताब को छापने से इन्कार किया। वास्तव में उसे इसके लिए धमकाया गया कि वह इस किताब से अपना पल्ला झाड़े। यह काम किया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोगों ने। स्वाभाविक रूप से ये वे लोग हैं जो वामपंथी, उदारपंथी के तौर पर जाने जाते हैं।

लेफ्ट-लिबरल बिरादरी ने एक बार फिर किया असहिष्णु प्रवृत्ति का भद्दा प्रदर्शन

पता नहीं ऐसे लोग लिबरल क्यों कहे जाते हैं, क्योंकि वे तो इतने असहिष्णु हैं कि विपरीत मत वालों को एक क्षण के लिए भी सहन करने को तैयार नहीं होते। ब्लूम्सबरी का फैसला इसका उदाहरण है। इस फैसले के जरिये लेफ्ट-लिबरल बिरादरी ने एक बार फिर अपनी घोर असहिष्णु प्रवृत्ति का भद्दा प्रदर्शन किया। इसके पहले अवार्ड वापसी के समय किया था।

सोशल मीडिया पर प्रकाशक के बहिष्कार की मांग का समर्थन वामपंथी इतिहासकार ने भी किया

दरअसल जैसे ही यह बात सामने आई कि दिल्ली दंगों पर लिखी गई किताब के ऑनलाइन लोकार्पण समारोह में भाजपा नेता कपिल मिश्रा भी शामिल हो रहे हैं, कुछ लोग हैरानी से भर गए और वे सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर प्रकाशक के बहिष्कार की मांग करने लगे। इस मांग को समर्थन प्रदान किया वामपंथी रुझान वाले इतिहासकार विलियम डेलरिंपल ने भी। वास्तव में यह मांग कम, दब-छिपकर की जाने वाली शाब्दिक पथरावबाजी अधिक थी।

ब्लूम्सबरी को किताब के प्रकाशन से पीछे हटने के लिए बाध्य करने में डेलरिंपल की बड़ी भूमिका रही

लेफ्ट-लिबरल मत वाले लेखकों की ओर से ब्लूम्सबरी को निंदित-लांछित करने और उसे किताब के प्रकाशन से पीछे हटने के लिए बाध्य करने में डेलरिंपल की बड़ी भूमिका रही, इसका पता तब चला जब उनकी बिरादरी के लोगों ने ही उन्हें इसके लिए धन्यवाद दिया।

स्कॉटलैंड मूल के इतिहासकार विलियम डेलरिंपल ने मुगल इतिहास पर कई किताबें लिखीं

स्कॉटलैंड मूल के इतिहासकार विलियम डेलरिंपल बड़े लेखक हैं। उन्होंने मुगल इतिहास पर कई किताबें लिखी हैं। चूंकि वह साहित्य उत्सवों में नजर आने वाले जाने-माने चेहरे हैं इसलिए आम जनता को इसका आभास न था कि वह इतने कट्टर किस्म के असहिष्णु और संकीर्ण होंगे। दुर्भाग्य से उनकी असहिष्णुता और संकीर्णता को उनके ही साथियों ने उजागर कर दिया।

ब्लूम्सबरी ने जो किया वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं है: लेफ्ट-लिबरल बिरादरी

अब लेफ्ट-लिबरल बिरादरी के लोग निराधार और हास्यास्पद तर्कों से यह साबित करने पर तुले हैं कि ब्लूम्सबरी ने जो किया वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं है। कैसे नहीं है, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं। जवाब हो भी नहीं सकता, क्योंकि इसके पहले कभी यह सुनने को नहीं मिला कि कोई प्रकाशक किसी किताब को प्रकाशनयोग्य पाने और उसे छापने की स्वीकृति देने के बाद पीछे हट गया हो।

ब्लूम्सबरी दिल्ली के बदनाम शाहीन बाग धरने पर एक किताब प्रकाशित कर चुका

यह भी सनद रहे कि ब्लूम्सबरी दिल्ली के बदनाम शाहीन बाग धरने पर एक किताब प्रकाशित कर चुका है। इस किताब में यह बताया गया है कि कैसे शाहीन बाग का धरना एक महान आंदोलन में तब्दील हो गया।

‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ का हुआ प्रचार

जाहिर है कि ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ में इससे उलट राय व्यक्त की गई होगी, लेकिन आखिर इस शर्मनाक तथ्य को कोई कैसे अनदेखा कर दे कि ब्लूम्सबरी ने इस किताब को प्रकाशन योग्य पाया था? ब्लूम्सबरी ने जो किया उससे वह केवल बदनाम ही नहीं हुआ, बल्कि उसने जिस किताब को छापने से मना कर दिया उसके प्रचार में भी सहायक बन गया।

‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ की मांग देश में ही नहीं, विदेश में भी हो रही

अब यह किताब एक अन्य प्रकाशक छापने जा रहा है। इस किताब की मांग केवल देश में ही नहीं, विदेश में भी हो रही है। मूर्खतापूर्ण फैसलों के ऐसे ही नतीजे होते हैं। अभी तक यह दलील दी जाती थी कि यदि आप किसी किताब से सहमत नहीं हैं तो उसे प्रतिबंधित करने के बजाय उसके जवाब में कोई किताब लिखिए। अब ऐसी किताब को प्रकाशित न करने को घोर निर्लज्जता के साथ सही ठहराया जा रहा है। हालांकि ऐसा करने वालों को समझ नहीं आ रहा है कि वे किस मुंह से कहें कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हामी हैं, लेकिन कहते हैं कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है। अपनी मूर्खतापूर्ण हरकत से लेफ्ट-लिबरल बिरादरी ने खुद को पूरी तरह नंगा कर लिया है। वह जिस ‘फिग लीफ’ से अपने को ढके हुए थी उसे उसने अपने ही हाथों झटक दिया।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )