शिवानंद द्विवेदी। BJP President Election 2020 बीस जनवरी को भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय कार्यालय स्थित पंचम तल, जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय है, में एक दुर्लभ दृश्य नजर आया। भाजपा के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एक कुर्सी खींचकर निर्वाचित अध्यक्ष जेपी नड्डा को उसपर बिठाते नजर आए। यह वही कुर्सी थी, जिसपर अब तक अमित शाह बैठा करते थे।

घटनाक्रम के नजरिये से कुर्सी हस्तांतरण का यह दृश्य भले ही कुछ सेकेंडों का हो, किंतु इसके प्रतीकात्मक निहितार्थ गहरे हैं। सहज घटनाक्रम में अमित शाह जब अध्यक्ष की कुर्सी खींचकर उस पर अपनी पार्टी के नए अध्यक्ष को बैठा रहे थे तब शायद उन्हें भी अहसास नहीं हुआ होगा कि उनके द्वारा ऐसा किया जाना, उनकी पार्टी की दशकों पुरानी परंपराओं को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक चिन्ह बन रहा है।

कार्यकर्ता नामक संस्था का सम्मान

वर्ष 2014 में जब अमित शाह को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया तब उन्होंने कहा था, ‘मेरा अध्यक्ष बनना कार्यकर्ता नामक संस्था का सम्मान है।’ आज जब जेपी नड्डा अध्यक्ष बने हैं तो भाजपा में एक कार्यकर्ता के अध्यक्ष बनने की शृंखला में एक और कड़ी जुड़ी है। दुनिया की सबसे बड़ी और भारत की राजनीति में सर्वाधिक जनाधार और प्रभाव रखने वाली पार्टी के संगठन नेतृत्व में हुए इस परिवर्तन को राजनीतिक विश्लेषक अनेक पक्षों से देख रहे हैं।

प्रदर्शन को तरजीह

भाजपा संगठन में हुए इस परिवर्तन को ‘डिकोड’ करने में चूक हो जाएगी, यदि इसका विश्लेषण संकुचित आधार पर किया जाएगा। जेपी नड्डा की ताजपोशी को भविष्य की चुनावी चुनौतियों के लिहाज से परखना इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम से उभरे व्यापक संकेतों की अनदेखी करना है। चूंकि यह एक राजनीतिक दल का आंतरिक फैसला है, अत: इसका मूल्यांकन भी भारत के अन्य राजनीतिक दलों की आंतरिक कार्यपद्धति से ही करना उचित है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत से केंद्र की सत्ता में आए और तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह सरकार में गए तो भाजपा ने ‘परफॉर्मेंस’ को तरजीह देते हुए दशकों से कार्य कर रहे अपने एक कार्यकर्ता अमित शाह को भाजपा का अध्यक्ष निर्वाचित किया। इसके बाद भाजपा लगातार सफलताओं की नई ऊंचाइयां छूने लगी। हालांकि भाजपा विरोधी खेमे द्वारा गाहे-बगाहे यह दुष्प्रचार किया गया कि मोदी-शाह की जोड़ी भाजपा पर अपना वर्चस्व बना चुकी है।

आमतौर पर भाजपा की संगठन व्यवस्था और इसकी संरचना की अधूरी समझ रखने वाले लोग भी ऐसे दुष्प्रचारों का हिस्सा बन जाते हैं। वर्ष 2016 में अमित शाह ने दिल्ली में लेखकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि मेरे बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन होगा, ये कोई नहीं जानता। किंतु सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा, यह कोई भी बता सकता है। अपनी इस बात को उन्होंने आगे चलकर कई बार दोहराया भी। आज जब अमित शाह गृहमंत्री हैं और जेपी नड्डा भाजपा के अध्यक्ष बने हैं तो शाह की बात भी सही साबित हुई और दुष्प्रचार करने वालों की नीयत भी उजागर हुई है।

राजनीति में वंशवाद के खिलाफ

भारतीय जनता पार्टी यदि खुद को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ कहती है तो यह सिर्फ उसके कथन की बात नहीं है। ऐसा उसके राजनीतिक क्रियान्वयन में भी दिखा है। सैद्धांतिक और व्यावहारिक, दोनों ही मानदंडों पर भाजपा राजनीति में वंशवाद के खिलाफ नजर आती है। इस दल के राजनीतिक विकास में वंशवाद का कोई महत्व नहीं नजर आता। जेपी नड्डा से पहले भाजपा में 10 अध्यक्ष रहे हैं, किंतु किसी भी अध्यक्ष के परिवार से कोई अगला अध्यक्ष नहीं आया है। यहां तक तमाम अध्यक्ष तो ऐसे हैं, जिनके परिवार का कोई दूर-दूर तक राजनीति में ही नहीं है।

भाजपा ने राजनीति में वंशवाद को अथवा वंशवाद आधारित राजनीति को गलत माना तथा इसका विरोध किया। चूंकि राजनीति में वंशवाद की अपसंस्कृति का बीज देश में सबसे अधिक वर्षों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस द्वारा रोपा गया, जो एक दोष के रूप में आज भी हमारे देश की दलीय व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए दीमक बना हुआ है। भाजपा के अलावा देश में कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसका देश के हर राज्य में आधार है। किंतु कांग्रेस और भाजपा के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि कांग्रेस ने अपना दलीय विकास ‘वंशवाद’ की नींव पर किया, जबकि भाजपा ने ‘विचारधारा आधारित एवं कार्यकर्ता केंद्रित’ मूल्यों को अपनाया।

प्रेरणा लें बाकी दल

यही कारण है कि कभी सुदूर दक्षिण का कोई कार्यकर्ता भाजपा अध्यक्ष बन जाता है, कभी गुजरात में पार्टी का काम करने वाला कोई बूथ कार्यकर्ता इस पद तक पहुंचता है तो कभी हिमाचल प्रदेश में निचले स्तर पर काम करने वाला कोई भाजपा कार्यकर्ता अपने दल के सर्वोच्च पद पर बैठ जाता है। भारत के दलीय व्यवस्था की शुद्धि के लिए अगर बाकी दलों को प्रेरणा लेनी हो तो भारतीय जनता पार्टी एक आदर्श उदाहरण है। भाजपा अध्यक्ष के पद पर अलग-अलग समय में अटल बिहारी वाजपेयी एवं लालकृष्ण अडवाणी से होकर नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और अमित शाह जैसे नेता रहे हैं।

इन सभी नेताओं का व्यक्तित्व, कार्यशैली, भाषण-कला, संपर्क पद्धति बेशक विविधविविध हो सकती है, किंतु इनके व्यक्तित्व की विविधताओं में एकरूपता का साम्य इसलिए नजर आता है, क्योंकि ये सभी एक विचार परंपरा से प्रेरणा लेकर राजनीति में आए हैं। कहीं न कहीं देश के दूसरे राजनीतिक दलों के सामने विचारधारा को लेकर स्पष्टता का भी संकट है। भाजपा के विरोध में खड़े कांग्रेस सहित अनेक दल विचारधारा की अस्पष्टता की चुनौती से जूझ रहे हैं। इसका कारण सिर्फ यही है कि उनके दल के बुनियाद में विचारधारा को दूसरे दर्जे का विषय माना गया।

जेपी नड्डा की चुनौतियां

कई लोग जेपी नड्डा की चुनौतियों पर बात कर रहे हैं। अधिकतर विश्लेषकों द्वारा चुनौतियों को चुनावी दृष्टि से देखने का प्रयास किया जा रहा है। यह सच है कि भाजपा अध्यक्ष के तीन साल के इस कार्यकाल में लगभग 15 से अधिक राज्यों में चुनाव होंगे। उन चुनावों में पार्टी को सफलता दिलाने की चुनौती भाजपा अध्यक्ष के सामने होगी ही। किंतु इस तरह की चुनौतियां हर समय पार्टी के सामने रहती हैं। चूंकि अभी उनका कार्यकाल शुरू ही हुआ है, अंत: चुनौतियों का सटीक विश्लेषण करना कठिन है, पर सरलीकृत तौर पर कहें तो नवनिर्वाचित भाजपा अध्यक्ष के सामने भी चुनावी लिहाज से चुनौतियां जरूर होंगी।

जब अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष बने थे तब उनके सामने भी चुनौतियां थीं। किंतु यह भी सच है कि गत पांच वर्षों में नरेंद्र मोदी की सरकार में हासिल हुई लोकप्रियता का लाभ भाजपा संगठन के मुखिया के रूप में अमित शाह ने अपनी पार्टी के विस्तार में उठाया। इस कालखंड में भाजपा 11 करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी, अनेक ऐसे राज्यों में भाजपा ने सरकार बनाई जहां कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। जो सवाल आज हैं कुछ ऐसे सवाल उस समय भी उठे थे, जब अमित शाह अध्यक्ष बने थे और सवाल उठाने वाले आज भी उसी घेरे में घूम रहे हैं। किंतु भाजपा की दृष्टि से देखें तो उस दौर में भी भाजपा ने अपने एक कार्यकर्ता को अध्यक्ष बनाया था और आज भी उसने एक कार्यकर्ता को अपना अध्यक्ष निर्वाचित किया है।

आज भाजपा मजबूत स्थिति में है। जेपी नड्डा का संगठन में काम करने का अनुभव भी लंबा है। संगठन कार्यों की बारीकियों को वे बखूबी समझते हैं। जिस प्रकार मोदी के नेतृत्व में 2014 के चुनावों के दौरान अमित शाह ने प्रभारी रहते उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर भाजपा को जीत दिलाई थी। कुछ उसी प्रकार जेपी नड्डा ने इस बार उत्तर प्रदेश का प्रभारी रहते हुए भाजपा को उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत दिलाई। खैर जेपी नड्डा का भावी कार्यकाल कैसा होगा, यह भविष्य की बात है। किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि नड्डा के अध्यक्ष बनने में भी वही भाव उभर कर आता है, जो अमित शाह ने कहा था-मेरा अध्यक्ष बनना कार्यकर्ता नामक संस्था का सम्मान है।

[सीनियर रिसर्च फेलो, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन]

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