रांची, प्रदीप शुक्ला। कहावत है राजनीति में न तो कोई स्थायी दोस्त होता है, न ही दुश्मन। हर चुनाव की तरह बिहार चुनाव में भी यह बखूबी दिख रहा है। सत्ता में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी की चाह में वर्षो पुराने दोस्त छूट रहे हैं, तो रातोंरात नए बन भी रहे हैं। नित नए बनते-बिगड़ते दोस्ती के इन समीकरणों से झारखंड भी अछूता नहीं है। करीब 10 महीने पहले ही गलबहियां डाल सत्ता में आए झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद में टिकटों को लेकर रिश्ते तल्ख हो गए हैं। मनमाफिक तो दूर एक-दो सीटों के लायक भी न समङो जाने से आहत सत्तारूढ़ झामुमो के शीर्ष नेतृत्व ने राजद को धमकी दी है कि भविष्य में झारखंड में भी इस दोस्ती की समीक्षा होगी। इससे राजद की प्रदेश इकाई सन्न है।

दरअसल झामुमो का प्रभाव राज्य की सीमा से सटी बिहार की कुछ विधानसभा सीटों पर है और इसी को आधार बनाकर उसने एक दर्जन सीटों पर दावेदारी की थी। आरंभ में ऐसा लगा था कि राजद तालमेल के तहत कुछ सीटें झामुमो को देगा, लेकिन लालू प्रसाद के राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव ने तालमेल की आस लगाए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की आशा पर पानी फेर दिया।

भविष्य में झामुमो के राजद के साथ झारखंड में रिश्ते की समीक्षा : हालांकि सोरेन ने अभी इसके खिलाफ ज्यादा कुछ खुलकर नहीं बोला है, लेकिन झामुमो के प्रवक्ताओं ने राजद के खिलाफ आग उगलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने तेजस्वी यादव पर तीखा हमला बोला। लालू प्रसाद को पुराने संबंधों की दुहाई दी और यहां तक कह दिया कि उनका सबको भागीदारी का दावा खोखला है। झामुमो ने यह बात कहकर भी सनसनी फैला दी कि भविष्य में झामुमो के राजद के साथ झारखंड में रिश्ते की भी समीक्षा होगी। जाहिर है अगर राजद ने इस तल्खी को पाटने की कोशिश नहीं की तो आने वाले दिनों में झारखंड में इनकी दोस्ती टूट सकती है। झारखंड में राजद के अभी महज एक विधायक हैं और फिलहाल सत्ता में उसके साथ रहने या नहीं रहने का कोई असर हेमंत सरकार की सेहत पर नहीं पड़ने वाला है।

झामुमो लगातार भाजपा के निशाने पर : झामुमो ने यह भी याद दिलाया है कि राज्य में एक भी सीट नहीं रहने के बावजूद पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में राजद को सम्मानजनक हिस्सेदारी दी गई। एक सीट पर जीत के बावजूद मंत्री का पद दिया गया है। लालू प्रसाद चारा घोटाले से जुड़े मामलों में सजायाफ्ता होने के बावजूद इलाज के नाम पर सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के निदेशक बंगले में रह रहे हैं। इसकी वजह से झामुमो लगातार भाजपा के निशाने पर भी है। बिहार विधानसभा चुनाव के बहाने अगर झामुमो और राजद की दोस्ती पर आंच आई तो इसका व्यापक असर पड़ेगा। लालू प्रसाद को मिलने वाली रियायतों में भी कमी हो सकती है। यही वजह है कि झामुमो के हमलावर तेवर के बाद राजद ने चुप्पी साध ली है।

राजनीतिक विस्तार की महत्वाकांक्षा में झामुमो ने बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने की घोषणा कर दी है। झामुमो की यह कवायद बिहार में राजनीतिक पहचान स्थापित करने को लेकर भी है।

उपचुनाव में अग्निपरीक्षा : झारखंड में विधानसभा की रिक्त दो सीटों दुमका और बेरमो में उपचुनाव सत्तारूढ़ झामुमोनीत गठबंधन के लिए अग्निपरीक्षा है। दुमका विधानसभा सीट झामुमो की परंपरागत सीट मानी जाती है। हालांकि 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन यहां से चुनाव हार गए थे। इस दफा हेमंत सोरेन ने दुमका के साथ-साथ बरहेट सीट से भी जीत हासिल की तो उनके समक्ष एक सीट से इस्तीफा देने की बाध्यता थी। बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी। उपचुनाव में यहां से उनके छोटे भाई बसंत सोरेन चुनाव मैदान में हैं। बसंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की युवा शाखा के अध्यक्ष हैं।

इस बार आजसू मजबूती के साथ भाजपा के साथ : इधर बेरमो विधानसभा सीट पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह के असामयिक निधन से रिक्त हुई है। वे कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में थे और मजदूर राजनीति में उनका दबदबा था। कांग्रेस ने उनके पुत्र को चुनाव मैदान में उतारने का मन बनाया है। इस सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस का समर्थन करेगा, लेकिन कांग्रेस के दावेदारों की तादाद भितरघात भी कर सकती है। पहले यह सीट भाजपा के हिस्से में भी आ चुकी है, लिहाजा प्रत्याशी को लेकर पार्टी हड़बड़ी में नहीं है। यहां वोटों का ध्रुवीकरण मायने रखता है। हेमंत सोरेन ने दोनों सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के लिए कमान अपने हाथ में ले रखी है, वहीं भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी ने मोर्चा संभाल रखा है। इस बार आजसू भी मजबूती के साथ भाजपा के साथ है। भाजपा दोनों सीटें जीतने में कामयाब रही तो राज्य की राजनीति में बड़ा उलटफेर भी हो सकता है।

[स्थानीय संपादक, झारखंड]