पटना, आलोक मिश्र। बिहार में लगता है कि अब कोरोना चुनाव को नहीं डरा पाएगा। चुनाव समय पर हो जाएगा। चुनाव आयोग इसे बार-बार दोहरा ही रहा है और अब नीतीश कुमार के खुले सरकारी पिटारे से भी यह प्रतिध्वनित होने लगा है। नहीं नहीं की रट लगाने वाले विपक्षी भी सुर बदलने लगे हैं। जनता भले ही उदासीन हो, कोरोना की धुंध तले चुनावी मौसम भले ही साफ न हो, लेकिन माहौल तो बनता दिख रहा है। कुछ दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी कि नई सरकार नवंबर में ही बन जाएगी कि कुछ महीने और लगेंगे। वर्तमान में फिर स्थिति नवंबर की ही बनने लगी है।

इस सप्ताह नीतीश कुमार की तेजी देखने लायक रही। गत शनिवार से शुरू हुआ सिलसिला गुरुवार तक पहुंचते-पहुंचते दस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की योजनाओं को धार दे गया। आठ अगस्त को 1725.71 करोड़ रुपये के 264 भवनों का लोकार्पण और 2,685 करोड़ के 99 भवनों का शिलान्यास हुआ। अपने महत्वाकांक्षी अभियान जल-जीवन-हरियाली के तहत रविवार को ढाई करोड़ के बजाए 3.47 करोड़ पौधे लगवा दिए। उसी दिन पटना में 106 करोड़ के आर ब्लॉक फ्लाईओवर का उन्होंने उद्घाटन किया और सोमवार को 638 करोड़ रुपये की सतही सिंचाई और जल संरक्षण की योजनाओं का उद्घाटन कर डाला। बुधवार को पांच हजार 24 करोड़ रुपये की सड़क निर्माण की 217 योजनाओं का उद्घाटन-शिलान्यास कर दिया। पौने चार लाख नियोजित शिक्षकों के वेतन एवं अन्य सेवा-शर्तो पर भी राज्य सरकार ने सकारात्मक विचार का संकेत दिया है। फसल सहायता योजना के तहत साढ़े आठ लाख किसानों को रबी फसलों के नुकसान की भरपाई भी अगले महीने से शुरू हो जाएगी।

नीतीश की तेजी देख तमाम विपक्ष दलों के नेताओं के भी कान खड़े हो गए हैं। उनकी समझ में भी आने लगा है कि नहीं नहीं की रट कहीं उसे भारी न पड़ जाए। इसलिए काट के लिए वो भी दम भरने लगा है। महागठबंधन में सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे के रणनीतिक अवरोध की बात अगर छोड़ दी जाए तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। कांग्रेस के बिहार प्रभारियों के दौरे बढ़ गए हैं। राहुल गांधी खुद भी वर्चुअल तरीके से वरिष्ठ कांग्रेसियों से संवाद कर चुके हैं। अपनी दावेदारी वाली संभावित सीटों और प्रत्याशियों की तलाश तेज कर दी गई है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी पर्दे से बाहर निकल आए हैं। उनकी पार्टी भी सीटों की दावेदारी करने लगी है। महागठबंधन में अपने लिए संभावना खत्म होते देख हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी ने राजग से नजदीकियां बढ़ा दी हैं। वे लगातार किसी न किसी बहाने आजकल नीतीश कुमार की तारीफ करने लगे हैं। नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन एवं सुविधाओं के मामले में सरकार को समर्थन देने के मांझी के हालिया एलान को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।

हालांकि चुनाव के लिए शुरू से ही तैयार दिख रहे सत्ता पक्ष के रास्ते में कोरोना संक्रमण के बहाने विपक्षी दलों का व्यवधान अभी भी कुछ कम नहीं हुआ है। ऐसे दलों को लोक जनशक्ति पार्टी के रुख से भी प्रोत्साहन मिल रहा है, लेकिन कोरोना का डर दिखाकर जो चुनाव टालने की मांग कर रहे हैं, उन्हें प्रतिदिन टेस्टिंग की बढ़ती संख्या से समझ में आने लगा है कि यह खतरा भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकता है। पिछले 13 दिनों के दौरान कोरोना जांच में जबर्दस्त तेजी आई है।

गुरुवार यानी 13 अगस्त तक कुल 13 लाख 77 हजार कोरोना जांच की जा चुकी है जिसमें आठ लाख से ज्यादा जांच सिर्फ 13 दिनों में हुई है। प्रतिदिन जांच की रफ्तार में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। एक अगस्त को 28,624 लोगों की जांच हुई थी, जो 13 अगस्त को बढ़कर एक लाख चार हजार के पार पहुंच गई। निजी अस्पतालों में भी इलाज की सुविधा शुरू कर दी गई है। अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाकर आम लोगों को सहूलियत देने के प्रयास को विपक्ष सत्ता पक्ष का चुनावी हथियार मानने लगा है। इस बनती तस्वीर से लगने लगा है कि हफ्ते दो हफ्ते में धुंध काफी हद तक छंट जाएगी।

[स्थानीय संपादक, बिहार]