[ वरुण गांधी ]: वर्ष 1950 में भारत की औद्योगिक पूंजी का करीब 25 फीसद हिस्सा बंगाल में था। यह 1960 तक घटकर 13 फीसद और फिर 2000 तक लगभग सात फीसद पर आ गया। एक समय बंगाल एक आर्थिक महाशक्ति और भारत का अग्रणी वित्तीय केंद्र था। आजादी के बाद के वर्षों में वह अथाह दौलत से लबरेज था और जैसा कि इतिहासकार विलियम डैलरिंपल अपनी किताब द एनार्की में लिखते हैं, ‘यहां के जगत सेठ द्वारा मुहैया कराए गए धन की मदद के बिना औपनिवेशिक शासन संभव नहीं होता।’ आजादी के बाद भी बंगाल विकास पथ पर आगे बढ़ता रहा। 1948 और 1965 के बीच की अवधि को ऐसे दौर के रूप में याद किया जाता है, जब यहां नए उद्योग (जैसे दुर्गापुर स्टील प्लांट, दामोदर वैली कॉरपोरेशन पावर स्टेशन) लगाए गए। इसके चलते 1947-1958 के बीच उसकी सालाना विकास दर 3.31 फीसद रही, जो समूचे भारत से ज्यादा थी।

वामपंथियों ने 1967 के बाद बंगाल में औद्योगीकरण की बर्बादी में बड़ी भूमिका निभाई

1950-59 के मध्य तक बंगाल की देश के औद्योगिक उत्पादन में 24 फीसद और राष्ट्रीय रोजगार में 27 फीसद हिस्सेदारी थी। 1965 तक बंगाल 20 फीसद औद्योगिक उत्पादन में हिस्सेदारी के साथ अपनी दमदार स्थिति बनाए हुए था। राज्य विकास की उड़ान भरने के लिए तैयार था। तभी वामपंथी सत्ता में आए। वामपंथियों ने 1967 के बाद राज्य में औद्योगीकरण की बर्बादी में बड़ी भूमिका निभाई। 1970-71 तक औद्योगिक उत्पादन में बंगाल की हिस्सेदारी घटकर 13.5 फीसद रह गई, जबकि महाराष्ट्र (गुजरात को छोड़कर) की बढ़कर लगभग 25 फीसद पर पहुंच गई। ट्रेड यूनियनों के उत्पात ने गहरी चोट पहुंचाई।

बंगाल में 1965 और 1970 के बीच हड़तालों, तालाबंदी और दंगों ने नक्सलवाद को दिया जन्म

बंगाल में 1965 और 1970 के बीच हड़तालों की संख्या 179 से बढ़कर 678 (3.8 गुना) हो गई, जबकि फैक्ट्रियों में तालाबंदी की घटनाएं 49 से बढ़कर 128 (2.6 गुना) हो गईं। फसलें चौपट होने के चलते अन्न के लिए दंगे हुए और आखिरकार नक्सलवाद का जन्म हुआ। ऐसे हालात ने बंगाल की पूंजी और प्रतिभा के पश्चिमी भारत की ओर पलायन को बल दिया, लेकिन आगे और बुरा दौर आना बाकी था। हालांकि 1990 तक बंगाल को अच्छे बुनियादी ढांचे के लिए जाना जाता था, लेकिन उसमें भी गिरावट आई, क्योंकि वहां छंटनी आम चलन बन गया।

निवेशक बंगाल से छिटक गए, कृषि क्षेत्र में गिरावट से बंगाल बर्बाद हो गया

एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य ने कारखानों की 1,77,000 नौकरियां गंवा दी। यही वह दौर था जब निवेशक बंगाल से छिटक कर दूर चले गए और साथ ही कृषि क्षेत्र में भी गिरावट आई। इस तरह बंगाल बर्बाद हो गया। इस बदहाली को ठीक करने के लिए किए गए नेतृत्व में बदलाव से भी कुछ खास नहीं बदला। राष्ट्रीय आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक बीते एक दशक में तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में बेरोजगारी बढ़ी है। बुनियादी तौर पर बंगाली कामगारों को सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं है। राज्य भारी कर्ज और संसाधनों का सही इस्तेमाल कर पाने में अक्षमता के बोझ तले दबता जा रहा है। सुधार की फौरन जरूरत है।

एक समय कोलकाता वर्ल्ड सिटी था, जो न्यूयॉर्क और पेरिस से बराबरी करता था 

बंगाल के पुनरुद्धार की कुंजी इन बिंदुओं पर आधारित है? कोलकाता में फिर से निवेश लाना और आसनसोल से हल्दिया तक मैन्युफैक्चरिंग बेल्ट को दोबारा सक्रिय करना। एक समय कोलकाता वर्ल्ड सिटी था, जो न्यूयॉर्क और पेरिस से बराबरी करता था, फिर इस पर बदकिस्मती का साया पड़ा और एक सदी पहले इसने भारत की राजधानी का दर्जा गंवा दिया। स्वेज नहर बनने के बाद इसका आर्थिक वर्चस्व छिन गया। वामपंथियों के हाथों तबाह किए जाने के बाद शहर गरीब भारत की परंपरागत तस्वीर बन कर रह गया।

कोलकाता को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में बहाल करना प्राथमिकता होनी चाहिए

आज कोलकाता में दुनिया के देशों के लिए ‘बैक-ऑफिस’ के तौर पर काम करने के लिए काफी संभावनाएं हैं। इस शहर में जबरदस्त पर्यटन क्षमता भी है। औपनिवेशिक काल की वास्तुकला, संस्कृति, नाइट-लाइफ और सुरक्षा का ऐसा जबरदस्त मिश्रण किसी भी दूसरे भारतीय शहर में नहीं है। शहर को एशिया के हवाना के तौर पर पेश किया जाना चाहिए। इसके अलावा मेडिकल टूरिज्म सेक्टर को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की जरूरत है। कुल मिलाकर कोलकाता को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में बहाल करना प्राथमिकता होनी चाहिए।

बंगाल को मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया कराने की जरूरत

आज बंगाल को मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया कराने की जरूरत है, जिसके साथ अच्छी सड़कें और रेल का बुनियादी ढांचा हो। दिल्ली और उत्तर प्रदेश से बिहार को जाने वाले नए एक्सप्रेस-वे को बंगाल के औद्योगिक केंद्रों से जोड़ना चाहिए। ऐसी ही कनेक्टिविटी ब्रह्मपुत्र घाटी से दी जानी चाहिए। कानून-व्यवस्था भी एक बड़ी समस्या है। किसी औद्योगिक संस्थान के लिए धरना-घेराव भविष्य के किसी भी निवेश में रुकावट होगा। कानून का शासन बड़ा फर्क ला सकता है। इसके अलावा पीएलआइ (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) स्कीम के तहत बंगाल में चुनिंदा उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए तैयार की गई स्कीमें निर्यात को बढ़ा सकती हैं।

बंगाल वह धुरी है जिस पर हमारी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की सफलता निर्भर करती

बंगाल वह धुरी है जिस पर हमारी ‘एक्ट ईस्ट’ (पूरब के देशों की ओर उन्मुख) नीति की सफलता निर्भर करती है, क्योंकि यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के प्रवेश द्वार की हैसियत रखता है। प्रधानमंत्री ने मैन्युफैक्चरिंग में बंगाल के ऐतिहासिक प्रभुत्व को बहाल करने की अपनी ख्वाहिश के बारे में बात की थी। केंद्र ने अपना काम पूरा किया और देश के बंटवारे के समय के रास्तों को फिर से चालू करने तथा उत्तर पूर्व को रास्ता देने के लिए ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर खोलने के लिए बांग्लादेश के साथ साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ाया है। बंगाल के नेताओं ने दशकों से उधार के वैभव पर गर्व की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। यह बंगाल के पुराने वैभव को वापस पाने और इसकी खोई मानव संपदा को वापस लाने का समय है। इस सबके लिए सिर्फ एक सही नेतृत्व की जरूरत है।

( लेखक भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं)