[आलोक बसंल]। केंद्र सरकार ने गत वर्ष पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य की नियति में एक नया अध्याय जोड़ा। उस अनुच्छेद और धारा की अतीत में भले ही कोई प्रासंगिकता रही हो, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उनका कोई औचित्य नहीं रह गया था। उनके कारण यह क्षेत्र एक प्रकार से अलग-थलग पड़कर अतीत की जंजीर में ही जकड़ा हुआ था। ऐसे में मोदी सरकार ने इन बंदिशों को तोड़कर संसाधन संपन्न इस क्षेत्र में संभावनाओं की नई तान को छेड़ा। इससे भी महत्वपूर्ण सरकार द्वारा राज्य के विभाजन का दांव रहा जिसमें सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया। इससे लद्दाख में विद्यमान विपुल संभावनाओं के मूर्त रूप लेने का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह इलाका जम्मू-कश्मीर का पुछल्ला मात्र बनकर रह गया था। बदलाव की बयार से केवल लद्दाख ही नहीं, बल्कि जम्मू- कश्मीर में भी अवसरों के नए द्वार खुले हैं। चूंकि अब इस परिवर्तन को साल भर बीत चुका है इसलिए यह समय इसकी थाह लेने का है कि आखिर इन दोनों इलाकों में क्या बदलाव आया है?

पूरे लद्दाख में चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति

जैसा कि पहले भी चर्चा की गई है कि अब लद्दाख जम्मू-कश्मीर का पुछल्ला नहीं रह गया है, बल्कि अब इस क्षेत्र को पंख लग गए हैं। इस केंद्रशासित प्रदेश में अब इंटरनेट सेवाएं भी बहाल हो गई हैं। अलग राज्य के रूप में यह क्षेत्र भले ही 31 अक्टूबर, 2019 को अस्तित्व में आया हो, लेकिन इसके परिणाम काफी प्रभावशाली रहे हैं। फरवरी 2020 से पूरे लद्दाख में चौबीसों घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित हुई है। यहां तक कि दूर-दराज के इलाकों में भी बिजली मुहैया कराई गई है।

सालभर चल रहीं पर्यटन गतिविधियां

सर्दियों में बर्फबारी के दौरान इसकी अहमियत अलग से समझाने की आवश्यकता नहीं। पर्यटन स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन यह कुछ महीनों के दौरान ही चलता था, परंतु अब पर्यटन गतिविधियां सालभर चल रही हैं। इसने रोजगारों को बढ़ाया है। इसी तरह श्रीनगर-कारगिल रोड और मनाली-लेह रोड को भी पहले की तुलना में महीने भर पहले खोल देने से आजावाही और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुगम होने के साथ और बेहतर हुई है।

कारगिल में इंजीनियरिंग कॉलेज की योजना

एक नए, गतिशील और जीवंत लद्दाख का खाका तैयार किया गया है। स्थानीय परंपराओं वाली चिकित्सा पद्धति सोवारिग्पा को प्रोत्साहन देने के लिए यहां एक शोध संस्थान स्थापित किया जा रहा है ताकि तिब्बती चिकित्सा के प्रशिक्षित चिकित्सक तैयार हो सकें। लद्दाख विश्वविद्यालय भी शुरू हो गया है। एक होटल प्रबंधन संस्थान बन रहा है। एक मेडिकल कॉलेज को मंजूरी मिल गई है। वहीं कारगिल में एक इंजीनियरिंग कॉलेज की योजना तैयार की जा रही है। दूर-दराज के इलाकों में भी नई चमक देखी जा सकती है जहां करीब 786 नए एमएसएमई को स्वीकृति मिल चुकी है। विंटर गेम्स भी बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं और लद्दाख जल्द ही विंटर टूरिज्म के एक प्रमुख अड्डे के रूप में उभरेगा, जिससे र्आिथक गतिविधियों को भी साल भर संबल मिलता रहेगा। यहां नए पर्यटन केंद्र विकसित किए जा रहे हैं। वहीं कारगिल में सामान्य उड़ानों के संचालन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। 

13 वर्षों बाद किए गए शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव 

दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। अनुच्छेद 370 की जकड़न से मुक्ति के बाद यहां भी देश के अन्य भागों में प्रर्वितत कानून लागू हो गए हैं जो मौजूदा दौर की जरूरतों के हिसाब से बेहद जरूरी हैं। अभी तक वाल्मीकि समुदाय के लोगों को केवल साफ-सफाई और गोरखा समुदाय के लोगों को महज चौकीदारी का ही काम मिलता था, लेकिन अब उन्हें इन बेड़ियों से मुक्ति मिल गई है। महिलाओं के उत्तराधिकार से जुड़ा प्रतिगामी कानून भी काल-कवलित हो गया है। सामाजिक-र्आिथक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कदम उठाए गए हैं। सत्ता के विकेंद्रीकरण की कवायद को भी अंजाम दिया जा रहा है। इसके तहत पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त किया गया है। 13 वर्षों बाद शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव हुए। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोकतांत्रिक संस्थानों को न केवल वित्तीय मदद मुहैया कराई जा रही है, बल्कि उन्हें पर्याप्त शक्ति और अधिकार भी दिए जा रहे हैं ताकि वे स्थानीय मामलों को प्रभावी तरीके से संभाल सकें। इससे नए राजनीतिक नेतृत्व का उभार हो रहा है जबकि इससे पहले यहां की राजनीति कुछ परिवारों के वर्चस्व का अखाड़ा ही बनी हुई थी।

रेल संपर्क का भी हो रहा है विस्तार

यहां की अथाह आर्थिक संभावनाओं की राह में अनुच्छेद 370 एक अवरोध बना हुआ था जिसके हटने के बाद से स्थिति बदल गई है। यहां 20,000 मेगावाट पनबिजली की क्षमताएं हैं, लेकिन सात दशकों के दौरान महज 3,500 मेगावाट बिजली उत्पादन ही संभव हो सका। अब कई अटकी हुई परियोजनाओं की किस्मत ने पलटी खाई है और 1000 मेगावाट की पाकल दुल और 624 मेगावाट की किरू परियोजनाएं शुरू हुई हैं। कनेक्टिविटी आर्थिक विकास की एक अहम कड़ी है और सर्दियों के दौरान घाटी का संपर्क शेष भारत से कट जाया करता था, लेकिन अब ऑल वेदर रोड और नई सुरंगों के जरिये हालात बदले हैं। रेल संपर्क का भी विस्तार हो रहा है और दो साल के भीतर दिल्ली से श्रीनगर के बीच रेल के जरिये सफर संभव हो सकता है। जम्मू और श्रीनगर दोनों शहरों में मेट्रो रेल परियोजना पर भी विचार हो रहा है। यहां सभी घरों में शत-प्रतिशत विद्युतीकरण हो चुका है। यहां तक कि बड़े गांवों को सीधे ग्रिड से जोड़ दिया गया है। इसी तरह ग्रामीण इलाकों में घरों तक पाइप के जरिये पानी पहुंचाने की योजना पर भी काम हो रहा है।

कश्मीर में एम्स बनाने का काम हो रहा है तेजी से

नए शिक्षण संस्थान स्थापित किए जा रहे हैं। जम्मू में आइआइटी और कश्मीर में एम्स का काम तेजी से हो रहा है। वस्तुओं की आवाजाही की राह में आने वाले रोड़े हटाए जा रहे हैं। इस प्रकार देखें तो काफी कुछ बदला है, लेकिन वास्तविक बदलाव तभी दिखेगा जब यहां निजी क्षेत्र निवेश के लिए आगे आएगा। इसके लिए दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में विशेष र्आिथक क्षेत्र यानी सेज स्थापित करने की आवश्यकता है। पर्यटन और पनबिजली के अलावा जहां जम्मू-कश्मीर में दवा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए तो लद्दाख में सौर एवं पवन ऊर्जा और आइटी के लिए व्यापक संभावनाएं हैं जिसका धूल रहित और ठंडा परिवेश तकनीकी कंपनियों के लिए एक आदर्श ठिकाना होगा।

 (लेखक इंडिया फाउंडेशन के निदेशक हैं)