[डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव]। भारतीय वायु सेना का तेजस लड़ाकू बहुत जल्द आइएनएस विक्रमादित्य जैसे विमानवाहक पोतों से उड़ान भरता नजर आएगा। हल्के लड़ाकू विमान तेजस के नौसेना संस्करण को विकास की दिशा में बेहतर सफलता प्राप्त हुई है। इसने अपने नए हालिया परीक्षण में एक खास कदम के तहत बीते माह विमानवाहक पोत पर उतरने की क्षमता प्रदर्शित की। इस तरह स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस के नौसैनिक संस्करण के विकास में एक अहम पड़ाव पार हो गया है। विमानवाहक पोत पर लड़ाकू विमान को अरेस्टेड लैंडिंग यानी कम जगह में उतारना जैसी तकनीक के तहत उतारा जाता है।

विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभाने में सक्षम स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने टेस्ट फैसिलिटी में लैंड करते समय झटके से रुकने के लिए अपने फ्यूजलेस से बंधे हुक की मदद से वहां लगाए गए एक तार को पकड़ा और उतरने की प्रक्रिया पूरी की। किसी भी विमान के लिए विमानवाहक पोत पर उतरने के लिए कम दूरी में पूरी तरह से रुक जाने में सक्षम होना युद्ध की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। गोवा में समुद्र तट पर स्थित टेस्ट फैसिलिटी में किया गया यह परीक्षण उन्हीं परिस्थितियों में किया गया जो किसी विमानवाहक पोत पर रहती हैं और जहां विमानों को उतरने के लिए डेक पर बंधे तार को पकड़ना पड़ता है।

विमानवाहक पोत पर उतरने के बाद कुछ ही दूरी पर उसका रुक जाना विमान की क्षमता को दर्शाता है। विमानवाहक पोत का रनवे बहुत छोटा होता है व छोटी जगह में लड़ाकू विमान को उतारना बड़ी चुनौती होती है। ऐसे मे अरेस्ट वायर लैंडिंग तकनीक ही काम आती है। इसके लिए विमान के पीछे एक हुक नुमा लैंडिंग गियर होता है। लैंडिंग के दौरान पायलट इसी गियर में तार फंसाकर विमान को रोकते हैं। इस सफलता के बाद रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि भारतीय नौसैनिक विमानन के इतिहास में यह स्वर्ण अक्षरों वाला दिन है। गोवा में शॉर वेस्ड टेस्ट फैसिलिटी (एसवीटीएफ) आइएनएस हंस पर हुए इस परीक्षण ने इस विमान के भारतीय विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रमादित्य पर लैंडिंग के प्रदर्शन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। यह परीक्षण वास्तविक स्वदेशी क्षमता के आगमन का संकेत है।

डीआरडीओ के सूत्रों कहा कहना है कि हल्के लड़ाकू विमान तेजस ने लगभग 40 मिनट उड़ान भरने के बाद 90 मीटर की पट्टी पर सफल लैंडिंग की। एक सामान्य एलसीए को उड़ान भरने और लैंडिंग के लिए करीब एक किलोमीटर लंबे रनवे की जरूरत होती है, जबकि इसके नौसैनिक संस्करण के लिए उड़ान भरने हेतु 200 मीटर तथा लैंडिंग के लिए 100 मीटर का रनवे चाहिए।

तेजस का परीक्षण डीआरडीओ तथा Hal  के नेतृत्व में किया गया

स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस का परीक्षण रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) तथा एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के एयरक्राफ्ट रिसर्च एंड डिजाइन सेंटर और सीएसआइआर के नेतृत्व में किया गया और इन्होंने एक साथ मिलकर तेजस के इस नौसेना संस्करण को विकसित व डिजाइन किया है। एलसीए की पहली सफल ‘अरेस्टेड लैंडिंग’ में शामिल सैन्य अधिकारियों के मुताबिक इस सफल परीक्षण ने भारत को उन चुनिंदा देशों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है जिनके पास ऐसे विमान डिजाइन करने की क्षमता है और जो विमानवाहक पोत पर उतर सकते हैं।

अब तक दुनिया के पांच देशों के विमान ही अरेस्टेड लैंडिंग कर पाने में सफल हुए हैं। इनमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस एवं चीन के विमान हैं। अब भारत भी इस तकनीक वाला छठा देश बन गया है। पिछले वर्ष 10 सितंबर को तेजस में पहली बार हवा में उड़ान के दौरान सफलतापूर्वक ईंधन भरा गया था। इस उपलब्धि के साथ ही भारत उन विकसित देशों एवं ऐसी क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों के प्रतिष्ठित क्लब में शामिल हो चुका है जिनके पास लड़ाकू विमानों के लिए हवा में उड़ान के दौरान ईंधन भरने की प्रणाली है।

तेजस विमान का विकास

तेजस विमान का विकास डीआरडीओ यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और एचएएल यानी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने संयुक्त रूप से किया है। वर्ष 1983 में ही तत्कालीन भारत सरकार ने डीआरडीओ और एचएएल को हल्का लड़ाकू विमान विकसित करने की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके बाद इस विमान का डिजाइन तैयार करने के लिए एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी नामक नोडल एजेंसी का गठन किया गया। स्वीकृति मिलने के तीन वर्ष बाद 1986 में एलसीए परियोजना के लिए सरकार ने 575 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया। तदुपरांत इसके विकास की प्रक्रिया में तेजी आई, लेकिन विभिन्न कारणों से इसके तैयार होने की कई समय सीमाएं निकल गईं और तकरीबन 15 वर्षों के बाद जनवरी 2001 में हल्के लड़ाकू विमान ने पहली उड़ान भरी। इस बीच विमान का डिजाइन तैयार करने और विकास करने के दौरान एचएएल ने विभिन्न परिस्थितियों में विमान को परखने के लिए 2,800 से अधिक बार इसका परीक्षण भी किया गया।

तत्कालीन Pm वाजपेयी ने इसका नाम तेजस रखा

वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका नाम तेजस रखा। वर्ष 2006 में तेजस ने पहली बार सुपरसोनिक उड़ान भरी। इसके बाद इसकी परीक्षणात्मक उड़ानें चलती रहीं। 22 जनवरी 2009 तक तेजस की एक हजार उड़ानें पूरी हो गई थीं। तेजस विमान को प्रारंभिक परिपालन मंजूरी जनवरी 2011 में मिली थी। इसके बाद 30 सितंबर 2014 की सफल उड़ान के बाद दूसरी परिपालन मंजूरी प्रदान की गई। अब तक तेजस के 15 प्रोटोटाइप बने हैं जिनमें सात लिमिटेड सीरीज के, दो टेक्नोलॉजी डेमोन्स्टेटर्स, तीन फाइटर प्रोटोटाइप, दो प्रशिक्षणात्मक प्रोटोटाइप और एक नौसेना संबंधी प्रोटोटाइप है। तेजस मल्टीमोड राडार, राडार वार्निंग रिसीवर और मिसाइल फायरिंग फ्लाइट परीक्षण के साथ ही अलग-अलग तापमान में उड़ान भरने में सफल रहा है। तेजस की उड़ानों का परीक्षण लेह, जामनगर, जैसलमेर, उत्तरलाई, ग्वालियर, पठानकोट और गोवा जैसी जगहों पर किया जा चुका है। इन परीक्षणों में इसने हथियार पहुंचाने व दागने का भी कार्य किया है।

तीन हजार किमी तक मारक क्षमता

वायु सेना के अधिकारियों के मुताबिक तेजस विमान हथियारों को ले जाने और मारक दूरी के मामले में मिग-21 विमानों से कहीं बेहतर है। वायु सेना के साथ-साथ इसे नौसेना में भी शामिल किए जाने की योजना है। तेजस की खासियत है कि यह नए जमाने की चौथी- पांचवीं पीढ़ी का विमान है। शत्रु को चौंकाने में माहिर यह विमान दुनिया का सबसे छोटा लड़ाकू विमान है। यह आसमान में युद्ध करने के साथसाथ जमीन पर हमला करने में भी सक्षम है। इसकी लंबाई 13.2 मीटर, ऊंचाई 4.4 मीटर एवं डैने 8.2 मीटर हैं।

तेजस एकल इंजन युक्त विमान है और इसके डैनों का डिजाइन डेल्टा की तरह तैयार किया गया है। इसलिए इसका आकार त्रिभुज जैसा दिखाई देता है। इसका विंग एरिया 38.4 वर्गमीटर तथा भार 5,680 किलोग्राम है। इसकी लोडेड भार क्षमता 9,500 किलोग्राम व अधिकतम भार क्षमता 13,500 किलोग्राम है। तेजस विमान की ईंधन क्षमता 3,000 लीटर है और खास बात यह भी है कि इसमें 800 लीटर के पांच टैंक बाहर से जोड़े जा सकते हैं। इसलिए ईंधन लेने के लिए इसे जल्दी नहीं उतरना पड़ेगा। इसकी गति 1.8 मैक और मारक क्षमता 3,000 किलोमीटर है।

जब हमारी सेना ऐसे लड़ाकू विमानों से लैस होगी तो यह निश्चित है कि उसकी ताकत काफी बढ़ जाएगी। तेजस विमान में छह प्रकार की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें तैनात हो सकती हैं। इनमें डर्बी, पाइथन-5, आर-73, अस्त्र, असराम व मेटियॉर प्रमुख हैं। इसके अलावा इसमें दो तरह की हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें यानी कि ब्रह्मोस-एनजी शिप मिसाइल तथा डीआरडीओ एंटी रेडिएशन मिसाइल तैनात की जा सकती हैं। इस विमान पर लेजर गाइडेड बम, ग्लाइड बम व क्लस्टर हथियार भी लगाए जा सकते हैं। इन सबसे इसकी ताकत में कई गुना इजाफा हो जाता है। तेजस की टक्कर में पाक का जेएफ-17 लड़ाकू विमान व चीन का सुखोई काफी पीछे हैं।

निर्यात की संभावनाएं

तेजस की विशेषताओं के कारण दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों ने इसे खरीदने में रुचि दिखाई है और भारत इसका निर्यात कर सकता है। हालिया आयोजित डीआरडीओ के उत्पादों की प्रदर्शनी देखने के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि वर्ष 2030 तक रक्षा क्षेत्र में देशी तकनीक का इस्तेमाल करीब 75 प्रतिशत हो जाएगा। किसी ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि हम इस तरह स्वदेशी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह दिन दूर नहीं जब हम अपने देश में ही सौ फीसद सामान बनाएंगे। यह सब डीआरडीओ के कारण संभव हुआ है। इसी कारण हमारी निर्यात क्षमता भी बढ़ रही है और हम धीरे-धीरे अपनी निर्माण क्षमता बढ़ा रहे हैं। मिसाइल क्षेत्र में भी भारत निर्यात करने की स्थिति में पहुंच चुका है।

[प्राध्यापक,सैन्य विज्ञान विषय]

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