प्रो. लल्लन प्रसाद। पश्चिम के विकसित देशों में जहां आबादी कम है और खेतों का आकार अपेक्षाकृत बड़ा है, वहां खेती मशीनों द्वारा की जाती है और कृषि को उद्योग का दर्जा मिला हुआ है, लिहाजा वहां कान्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी अनुबंध खेती प्रचलित है। जो किसान अनुबंध खेती करना चाहते हैं, वे फसल बोने के पूर्व ही उसके उत्पादन एवं विक्रय के लिए कंपनियों से फसल तैयार होने पर निश्चित मात्रा और कीमत पर उसे देने का अनुबंध कर लेते हैं।

इससे कंपनियों को समय पर सप्लाई और किसानों को निर्धारित कीमत मिल जाती है। उत्पाद की गुणवत्ता, कंपनी द्वारा दी जाने वाली तकनीकी सेवा, डिलीवरी आदि की शर्तों पर भी सहमति पहले से ही बना ली जाती है। कम विकसित एवं विकासशील देशों में जहां जोत भूमि का आकार छोटा होता है, वहां भी औद्योगीकरण के साथ साथ अनुबंध खेती का चलन बढ़ रहा है।

भारत में 86 प्रतिशत किसानों की भूमि जोत का औसत आकार 1.8 हेक्टेयर है, जिनके लिए कृषि आजीविका का एक बड़ा साधन है। जिस परिवार में खेती के कार्यों में पुरुषों के साथ ही महिलाओं की साझेदारी होती है, वहां कृषि के साथ साथ सब्जियों, फूलों-फलों को उगाने, पशुपालन एवं संबंधित अन्य छोटे उद्योग भी चलाए जाते हैं। ऐसे अधिकांश किसान अपना उत्पाद अपने क्षेत्र की मंडियों में या आढ़तियों को बेचते हैं, जहां कमीशन, टैक्स, तौल और अन्य खर्चों के नाम पर उनका शोषण होता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी एजेंसियां भी किसान से सीमित मात्रा में अनाज खरीद करती हैं। अधिकांश किसान गरीबी के कारण फसल तैयार होते ही उसे बेचना चाहते हैं, लेकिन उस समय आपूर्ति की अधिकता के कारण बाजार में कीमत कम होती है। ऐसे में उन्हें फसल की अधिक कीमत नहीं मिल पाती है।

कृषि पदार्थों की वर्तमान विक्रय व्यवस्था स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर तक छोटे और मध्यम किसानों को सीमित रखती है। राष्ट्रीय बाजार उनकी परिधि के बाहर हैं। नए बनाए गए कृषि कानून कृषि पदार्थों के विक्रय संबंधी अधिनियमों के मुख्य उद्देश्य पूरे देश को एक कृषि बाजार में परिवर्तित करना, किसान को मंडी या आढ़तियों के शोषण से बचाना, अधिकांश कृषि पदार्थों को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से हटाना, ताकि उनका मुक्त व्यापार हो सके, किसान द्वारा अपना उत्पाद देश में कहीं भी बेचना, जिसमें वर्तमान और नई व्यवस्था शामिल है, ताकि उसकी आमदनी बढ़े आदि हैं।

कृषि में निवेश को बढ़ावा देने, आधुनिकीकरण करने, उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि पदार्थों को बेचने को प्रोत्साहन के लिए निजी कंपनियों की भागीदारी का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया है, जो सीमित रूप में कुछ राज्यों में पहले भी थी। साथ ही कंपनियों द्वारा किसानों को उनके उत्पाद की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि के लिए बीज, खाद आदि की खरीद और आधुनिक तकनीक के उपयोग के लिए अनुबंध के अंतर्गत र्अिथक सहायता, फसल की बोआई के पूर्व आपसी सहमति से निर्धारित मूल्य पर फसल तैयार होने पर निर्धारित मात्रा में खरीदने की अनुमति दी गई है। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है, वर्तमान में प्रचलित विपणन व्यवस्थाएं भी चलती रहेंगी। साथ ही विक्रय स्नोत का चुनाव किसान की मर्जी पर होगा। इसके लिए छोटे किसान चाहें तो मिलकर 'खेत पूलिंग' की व्यवस्था को अपना सकते हैं, कॉआपरेटिव सोसायटी बना सकते हैं और सामूहिक रूप से अनुबंध कर सकते हैं, जो समझौते की शर्तों को उनके लिए अनुकूल बनाने में मददगार होंगी और कंपनियों की चालाकी या छलावा से उनको बचा सकती हैं।

कृषि उत्पाद की बिक्री संबंधी कानून अभी तक राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में थी, लेकिन नए कानून ने स्थिति बदल दी है। केंद्र का अधिकार क्षेत्र बढ़ गया है, जो क्षेत्रीय विषमता को कम करेगा, साथ ही समन्वित दृष्टिकोण और व्यवस्था विकसित करने में सहायक होगा। एक इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) ट्रेडिंग पोर्टल की व्यवस्था की जा रही है, जिस पर देश के विभिन्न बाजारों में कृषि पदार्थों की मांग और उनकी कीमत आदि के बारे में सूचना उपलब्ध होगी।

एशिया के कुछ देशों में जहां अनुबंध खेती के प्रयोग किए गए हैं, परिणाम उत्साहजनक हैं। एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट के अनुसार धान की खेती करने वाले सीमांत किसानों के लिए कान्ट्रैक्ट र्फांिमग लाभप्रद साबित हुई। हालांकि यह भी सही है कि अनुबंध खेती सभी देशों एवं कृषि पदार्थों के लिए एक रूप में नहीं है। कहीं अनुबंध लंबी अवधि के होते हैं तो कहीं अल्पकालिक। कुछ कृषि उत्पादों जैसे कपास, तंबाकू, गन्ना, चाय एवं रबड़ आदि की खेती में कंपनियां गुणवत्ता और अच्छी फसल के लिए भारी निवेश करती हैं, जो अनुबंध में निहित होती है। छोटे किसानों के पास सीमित पूंजी और तकनीकी जानकारी होती है, उनके लिए अनुबंध खेती गेम चेंजर साबित हो सकती है।

चाय के बड़े बड़े बागानों के आस पास छोटे छोटे निजी बागान होते हैं, जो बड़े बागान की मालिक कंपनियों को अनुबंध खेती के अंतर्गत अपना उत्पाद बेचते हैं और अच्छी कीमत पा जाते हैं। जिन खाद्यान्नों में गुणवत्ता का प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं होता, जैसे मोटा अनाज आदि तो उनके उत्पादक कंपनियों को अनुबंध खेती के लिए आर्किषत नहीं कर पाते। जौ और मक्का जैसे उत्पादकों से फूड प्रोसेसिंग कंपनियां अनुबंध करना चाहती हैं। फल, फूल और सब्जियां उगाने वाले और पशु पालन, मुर्गी पालन आदि में लगे किसानों के लिए अनुबंध खेती लाभदायक होती है, क्योंकि उनका उत्पाद शीघ्र नष्ट होने वाला होता है। इस संबंध में सबसे पहले अमूल डेयरी ने गुजरात के गांवों से सीधे किसानों से दूध इकट्ठा कर कारखाने में प्रोसेस और पैक कर देशभर के बाजारों में बेचना शुरू किया। इससे देशभर में लाखों पशुपालक किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

[पूर्व विभागाध्यक्ष, बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग, दिल्ली विवि]