[राहुल लाल]। अफगानिस्तान को लेकर ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में आयोजित नौवें ‘हार्ट ऑफ एशिया’ के मंत्री स्तरीय सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिए भारत किसी भी सच्चे और विस्तृत प्रयास का समर्थन करेगा। हालांकि भारत ने यह साफ नहीं किया है कि वह संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में होने वाली शांति प्रक्रिया में सीधे तौर पर हिस्सा लेगा या नहीं, लेकिन अफगानिस्तान में स्थायी शांति में संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी भूमिका की वकालत कर इस विकल्प को भी सुरक्षित रखा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर के अनुसार भारत संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए क्षेत्रीय प्रक्रिया का समर्थन करता है। उल्लेखनीय है कि ‘हार्ट ऑफ एशिया’ के तहत सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2011 से जारी है। इसके तहत आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों का उद्देश्य अफगानिस्तान में शांति की प्रक्रिया को लेकर प्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना है।

अफगान शांति प्रक्रिया में भारत के भाग लेने के मायने

अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया से संबंधित बैठक में भारत का आधिकारिक रूप से शामिल होना, इस पूरी प्रक्रिया में एक दिलचस्प मोड़ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत के शामिल होने से शांति प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा? अभी तक भारत इस प्रक्रिया में बाहर से शामिल था, लेकिन यह पहली बार है, जब भारतीय विदेश मंत्री इसमें आधिकारिक रूप से शामिल हो रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जैसे-जैसे अमेरिका के अफगानिस्तान से निकल जाने की समय सीमा करीब आ रही है, शांति वार्ता में शामिल देशों की सोच में भारत की भूमिका को लेकर बदलाव आ रहा है।

भारत के विदेश मंत्री ने दुशांबे में अफगान शांति प्रक्रिया में तीन बातों पर जोर दिया है। पहला, भारत अफगानिस्तान में दोहरी शांति चाहता है, यानी अफगानिस्तान के भीतर और उसके आसपास के सभी देशों में भी शांति कायम हो। दूसरा, शांति वार्ता के सफल होने के लिए जरूरी है कि सभी पक्षों को एक दूसरे पर भरोसा हो और सभी राजनीतिक समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध हों और तीसरा, हार्ट ऑफ एशिया प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन हो।

इसके अलावा, भारत ने अमेरिका के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में एक ऐसी शांति प्रक्रिया की बात की गई है, जिसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्री शामिल हों। एस जयशंकर का यह बयान अमेरिका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान तीनों को कुछ संकेत देता है। भारत, अमेरिका को यह संकेत दे रहा है कि अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापसी का समय अभी नहीं आया है। वहीं भारत, अफगानिस्तान को संकेत दे रहा है कि चाहे जो भी हो, भारत हमेशा वहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के समर्थन में रहेगा और पाकिस्तान को यह संकेत दे रहा है कि उसे यह मानना पड़ेगा कि अफगानिस्तान में भारत के वैध हित हैं और इस शांति प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बाइडन प्रशासन द्वारा अफगान नीति में संशोधन

अफगान शांति प्रक्रिया में भारत को स्टेकहोल्डर के तौर पर मान्यता मिलना, भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है। ट्रंप के समय शुरू की गई अफगान शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। अब अमेरिका इस नीति से हट रहा है। अमेरिका की पहले की सरकार यानी ट्रंप प्रशासन अफगान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान को ही सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर मानता था। लेकिन अब बाइडन प्रशासन ने इस शांति प्रक्रिया में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से कह रहा है कि इस क्षेत्र के दूसरे देशों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

अफगानिस्तान के लिए महत्वपूर्ण भारत

जहां तक राजनीतिक और सुरक्षा का सवाल है, तो भारत ‘अफगान संचालित’ और ‘अफगान स्वामित्व वाली शांति और समाधान प्रक्रिया’ के लिए अपने सहयोग को दोहराता रहा है। भारत रणनीतिक भागीदार के रूप में द्विपक्षीय विकास और सहयोग को मान्यता देते हुए सामाजिक, आíथक, बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन विकास के लिए अफगानिस्तान की सहायता कर रहा है।

भारत-अफगानिस्तान को एक सशक्त लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखते हुए उसके हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापित करने हेतु प्रतिबद्ध है। अफगानिस्तान में भारतीय प्रतिबद्धता द्विस्तरीय है। भारत अफगानिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षण सुविधा प्रदान करता है, लेकिन दूसरी ओर उससे बड़ी भूमिका भारत आधारभूत संरचना, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में सहयोग करके उपलब्ध कराता है। आधारभूत संरचना के सहयोग के रूप में सलमा डैम का पुनर्निर्माण, संसद भवन और जरांज डेलाराम मार्ग का निर्माण इत्यादि को देखा जा सकता है। सलमा बांध को अफगानिस्तान में भारत-अफगान मैत्री बांध के नाम से भी जाना जाता है। 

यह बांध चिश्ती शरीफ जिला में हरि रुद नदी पर 29 करोड़ डॉलर की लागत से बना है, जो ईरान सीमा के नजदीक है। मालूम हो कि सलमा डैम परियोजना एक बहुउद्देश्यीय परियोजना है। इससे करीब 42 मेगावॉट जलविद्युत उत्पादन के अलावा 75 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी की जा रही है। इससे यहां विद्युत संकट को दूर करने में सहायता मिली। कृषि अर्थव्यवस्था को भी सहयोग मिला है। अफगानिस्तान के संसद का निर्माण नौ करोड़ डॉलर की लागत से भारत द्वारा किया गया है। इस तरह भारत अफगानिस्तान में लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जरांज डेलाराम मार्ग अफगानिस्तान के निमरोज प्रांत में पहली पक्की सड़क है, जिसका निर्माण भारत द्वारा किया गया है।

अफगानिस्तान भारत की मध्य एशिया की रणनीति का अहम हिस्सा है, क्योंकि भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से मध्य एशिया के देशों तक अपनी पहुंच बना सकता है। साथ ही, अफगानिस्तान जैसे लैंडलॉक्ड यानी चारों ओर से स्थलबद्ध अर्थात बंदरगाह विहीन देशों को संपर्क प्रदान करता है। यही कारण है कि वर्ष 2016 में ईरान-भारत-अफगानिस्तान ने परिवहन और ट्रांजिट कॉरिडोर नामक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। हाल ही में दोनों देश अधिक प्रभाव वाले 116 सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर काम करने के लिए सहमत हुए हैं, जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में क्रियान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल, बुनियादी ढांचा और प्रशासनिक अवसंरचना के क्षेत्र शामिल हैं। काबुल के लिए शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर काम शुरू किया गया है।

अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिए नानगरहर प्रांत में कम लागत में घरों के निर्माण को भी भारत गंभीरता से ले रहा है। इसके अलावा बामियान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क संपर्क कायम करने, परवान प्रांत में चारिकर शहर के लिए जलापूíत और मजार-ए-शरीफ में एक तकनीकी शिक्षण संस्थान के निर्माण में भी भारत सहयोग दे रहा है। भारत ने कंधार में एक राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना के सहयोग का भी भरोसा दिया है।

अफगानिस्तान में भारी निवेश का कारण : काबुल स्थित भारतीय दूतावास के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2018 तक भारत अफगानिस्तान में दो अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश कर चुका था। जाहिर है इस संख्या में अब तक काफी वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत अफगानिस्तान में इतना बड़ा निवेश क्यों कर रहा है? पहली बात यह है कि भारत के अफगानिस्तान के साथ इस्लामिक युग से पहले से ही पारंपरिक संबंध हैं। 

इस क्षेत्र में वक्त के साथ अफगानिस्तान के अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों में कभी न कभी तनाव आए हैं, लेकिन भारत के साथ उसके संबंध हमेशा अच्छे रहे हैं। इस क्षेत्र में तनाव बहुत ज्यादा है और हर देश प्रयास करता है कि वह अपने लिए दोस्त या सहयोगी बनाए। भारत की भी यही कोशिश है कि अफगानिस्तान भारत का दोस्त बना रहे। साथ ही, इस मित्रता से पाकिस्तान को भी क्षेत्र में अलग-थलग किया जा सके।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं)