अरविंद कुमार सिंह। Indian Railways देश की जीवन रेखा कही जाने वाली भारतीय रेल की तमाम मोर्चों पर आलोचना होती रहती है। यात्री इसकी कई सेवाओं से असंतुष्ट रहते हैं और कई दूसरे कोण भी हैं। लेकिन 2019-20 के वित्तीय वर्ष के 11 महीनों के दौरान उसने जो बेहतरीन सुरक्षा रिकार्ड बनाया है वह भारतीय रेल के इतिहास में दर्ज होने जैसी घटना बन गया है। एक अप्रैल 2019 से अब तक रेल दुर्घटना में किसी यात्री की जान नहीं जाना भारतीय रेल के 166 वर्षों के इतिहास की एक सराहनीय उपलब्धि है। इस शानदार कामयाबी पर रेल प्रशासन का उत्साहित होना स्वाभाविक है, लेकिन इससे दूसरे मोर्चों पर भी यात्रियों की अपेक्षाएं बढ़ना स्वाभाविक है।

राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष : वैसे भारतीय रेल की यह कामयाबी रातोंरात किसी चमत्कार की देन नहीं है। हाल के वर्षों में सुरक्षा और संरक्षा पर खास ध्यान देना और भारी निवेश करने का यह परिणाम है। वर्ष 2017-18 के में एक लाख करोड़ रुपये का राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाने के बाद कुछ खास क्षेत्रो में प्राथमिकता के साथ काम हुए। बीते साल ही भारतीय रेल का संरक्षा रिकार्ड यूरोपीय मापदंडों के बराबर आ गया था और उससे पहले टक्कर रोधी उपकरणों की स्थापना, ट्रेन प्रोटेक्शन वार्निंग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम जैसी कई पहल के साथ सिग्नलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण शुरू किया गया था। संचार और सूचना क्रांति ने भी भारतीय रेल के संरक्षा तंत्र को बेहतर बनाने में मदद की।

सुरक्षा और संरक्षा के मुद्दे : यह विचित्र संयोग है कि रेल बजट के अस्तित्व के दौरान सुरक्षा और संरक्षा के मुद्दे पर रेल मंत्रियों को सबसे अधिक आलोचना का शिकार होना पड़ा था। रेल बजट और आम बजट के समाहित होने के बाद यह बदलाव हुआ है। रेल बजट को आम बजट में समाहित करने के पैरोकार रहे पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु को खुद अपना मंत्री पद रेल दुर्घटनाओं के नाते छोड़ना पड़ा। यही नहीं, लाल बहादुर शास्त्री जैसी महान हस्ती को भी रेल मंत्री का पद नैतिक आधार पर रेल दुर्घटना के नाते त्यागना पड़ा था। बेशक सुरक्षासंरक्षा के मोर्चे पर भारतीय रेल ने जो प्रगति की है उसका श्रेय मौजूदा रेल मंत्री पीयूष गोयल को मिलेगा। लेकिन बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में रेलवे के कामकाज पर चर्चा होनी है जिसमें निजीकरण के मुद्दे के साथ तमाम मसलों पर आलोचनाओ को भी झेलना पड़ेगा।

नेटवर्क विस्तार के लिए व्यापक योजना : भारतीय रेल हाल के अनुभवों के आलोक में राष्ट्रीय रेल योजना बना रही है। इसका मकसद रेलवे नेटवर्क विस्तार के लिए दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य तैयार करना है। इसमें कई मंत्रालयों, विभागों, सेक्टरों, ग्राहकों समेत सभी हितधारकों से सुझाव शामिल किए गए हैं। इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए पीपीपी मॉडल और चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम के साथ सभी संभव वित्तीय मॉडलों को ध्यान में रखा जा रहा है। रेलवे ने सुरक्षा, संरक्षा, गति और यात्री सुविधाओं पर खास फोकस किया है, जिस पर अगले 12 वर्षों में 50 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है। वैसे रेलवे ने सांगठनिक ढांचे में बड़ा बदलाव करते हुए ग्रुप ए की आठ सेवाओं को समाहित कर इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस के रूप में करने का फैसला किया है, पर उससे कई रेल अधिकारी असंतुष्ट हैं।

फिर भी रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सीईओ की भूमिका में आ चुके हैं, लेकिन स्वतंत्र सदस्यों की क्या भूमिका होगी इस पर सबकी निगाहें हैं। भारतीय रेल सरकार की प्राथमिकताओं में हैं। 2020-21 के दौरान भारतीय रेल अपने बेड़े में 12 हजार माल डिब्बे, 6535 सवारी डिब्बे और 725 रेल इंजन को शामिल कर इसे और शक्तिशाली बनाने की राह पर है। सुरक्षा और संरक्षा के लिहाज से चार हजार किमी का रेलपथ नवीकरण कर एक कीर्तिमान बनेगा।

2020-21 के दौरान भारतीय रेल करीब 1,265 मिलियन टन माल ढुलाई करेगी और 879 करोड़ यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाएगी। यात्री यातायात से इसकी आय 61 हजार करोड़ रुपये और मालभाड़ा आय करीब 1,47,000 करोड़ रुपये होगी। लेकिन अभी सबसे बड़ी चिंता भारतीय रेल का परिचालन अनुपात बना है, जो 2020-21 के दौरान भी 96.2 फीसद के करीब रहेगा। 2019-20 में यह 97.4 फीसद तक पहुंच गया जो 2014-15 में 91.3 फीसद था। यानी आंतरिक संसाधनों रेलवे विकास की स्थिति में नहीं है। जबकि उसे 498 परियोजनाओं जिसमें से 188 नई लाइनों समेत कुल 49,069 किमी रेल परियोजना के लिए 6.75 लाख करोड़ रुपये की भारी रकम चाहिए।

भारतीय रेल के सामने चुनौतियां भी कोई कम : भारतीय रेल ने हाल के वर्षों में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। मानव रहित रेल फाटकों को समाप्त करने के बाद एक बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य 27,000 किमी लंबी लाइनों का विद्युतीकरण कर सभी लाइनों को यानी रेलपथों को पूर्णतया विद्युतीकृत करना है। ईंधन की खपत कम करने से लेकर उत्पादकता बढ़ाने के लिए उसने कई उपाय किए हैं। लेकिन रेलवे में 15.24 लाख स्वीकृत पदों की तुलना में कर्मचारियों की रिक्तियां 3.06 लाख से अधिक हो चुकी है, जिसमें संरक्षा श्रेणी में 1.62 लाख पद खाली हैं, जिस तरफ ध्यान देने की बहुत अधिक जरूरत है।

बेशक भारतीय रेल रोज आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर यात्रियों को ढो रही है और अपने विशाल नेटवर्क के साथ यह देश का सबसे बड़ा नियोजक और परिवहन का मुख्य आधार स्तंभ बनी हुई है। कोयला, खाद्यान्न और कई थोक वस्तुओं के साथ यात्री परिवहन में इसकी अहम भूमिका है। लेकिन इसके सामने चुनौतियां भी कोई कम नहीं है।

[वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार भारतीय रेल]