[ गोपालकृष्ण गांधी ]: पंद्रह अगस्त हमारे लिए अद्भुत मायने रखता है। उसके मुकाबले का कोई और दिन नहीं। जब इस दिन सुबह लाल किले पर हमारे प्रधानमंत्री आते हैं और जिंदादिली से हमारा प्रिय तिरंगा लहराते हैं, तब जो गर्व उभरता है, उसकी तुलना किसी और अनुभव से नहीं हो सकती। हर पंद्रह अगस्त, हम सभी का होते हुए, एक खास मायने में हमारे प्रधानमंत्री का दिन होता है। इस दिन पर हमारे प्रधानमंत्री की छाप होती है, उनके लाल किले के भाषण की मुहर लगी होती है। तो इस शुभ दिन के अवसर पर सर्वप्रथम हमारा अभिनंदन, हमारी मुबारकबाद हमारे प्रधानमंत्री को जाती है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस अवसर पर अपनी शुभेच्छा देता हूं।

पांच लोगों की याद- वंदे मातरम गान नहीं, आह्वान है

हमारे वीरों और वीरांगनाओं के साथ, पांच लोगों की याद मुझे हर पंद्रह अगस्त को आती है। इत्तेफाक से, पांचों के पांचों बंगाल से हैं। इनमें सबसे पहले आती है ऋषि बंकिम की याद। उनका वंदे मातरम जो है, वह एक गान नहीं, एक आह्वान है। वह एक गीत नहीं, एक गाथा है। उसके हर शब्द में, हर वाक्य में, उसमें निहित हर छवि में हमारी, हमारी भारत माता की अभिलाषा भरी है, आकांक्षा भरी है। वंदे मातरम में भारत की महानता भरी है।

जन-गण-मन की खूबी

फिर याद आती है गुरुदेव रबिंद्रनाथ ठाकुर की। उनके जन-गण-मन की खूबी भी क्या खूबी है! वैसे हम उसे गाते हुए कविगुरु की प्राथमिकताएं भूल जाते हैं। जरा गौर करें-‘जन’ यानी लोग, हम भारत के लोग। यह शब्द सबसे पहले आता है उसमें। हम उसमें सबसे पहले आते हैं, जैसे संविधान में आते हैं-‘हम भारत के लोग’। फिर दूसरा शब्द है ‘गण’। ‘गण’ यानी, फिर से, लोग। ‘जन’ और ‘गण’ में कोई अंतर? नहीं भी है और है भी। ‘जन’ व्यक्ति का सूचक है, ‘गण’ व्यक्तियों के समूह का। ‘जन’ में आप आते हैं, मैं आता हूं। ‘गण’ में हम सब आते हैं-एक साथ। और फिर ‘मन’। क्या बात है यहां! कविगुरु संकेत कर रहे हैं हमारे सबके, व्यक्तिगत और सामूहिक मन का, हमारे मानस का, हमारी सोचों का, हमारे अंतस का। क्या बात है! हम सोचने वाले, सुख-दुख अनुभव करने वाले लोग हैं। हां, रोटी, कपड़ा और मकान की तलाश में उलझे हुए हैं जरूर, लेकिन हम इतने खुदगर्ज नहीं कि उससे उठकर सोच न सकें।

आजाद हिंद फौज- ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान

तीसरा नाम जो याद आता है वह है नेताजी सुभाषचंद्र बोस का। नेताजी ने ही सर्वप्रथम लाल किले पर लहराते तिरंगे की परिकल्पना की थी। ‘दिल्ली चलो’ का जो आह्वान था उनका, वह लाल किले से मतलब रखता था। और उसी को केंद्रबिंदु बनाए आजाद हिंद फौज को उसकी ओर वह लिए आ रहे थे। क्या गति थी उनमें, क्या ऊर्जा! क्या देशप्रेम, क्या समर्पण! कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा, जो कौम से मिला तुझे वो कौम पर लुटाए जा...। ‘लुटाए जा’ का अनुवाद अंग्र्रेजी में तो समझिए, सर्वथा नामुमकिन है। खुद को, अपनी जिंदगी को, नेताजी ने हिंद की आजादी के लिए लुटा दिया। काश वह पंद्रह अगस्त, 1947 के दिन हमारे साथ होते! पंडित नेहरू ने लाल किले पर कहा कि हमारा झंडा नेताजी ने विदेश में कई जगहों में हमारे राष्ट्र को याद करते हुए लहराया है और आज नेताजी को यहां होना चाहिए था, यह दिन उनका है...। तकदीर के तरीकों को तकदीर ही जाने! आज बहुत लोग यह भूल जाते हैं कि बापू को ‘राष्ट्रपिता’ की संज्ञा और किसी ने नहीं, नेताजी ने सिंगापुर से प्रसारित अपने उद्घोष में अंग्रेजी में दी थी-‘फादर ऑफ अवर नेशन...।’

‘धनो-धान्य पुष्प भरा’

चौथा नाम याद आता है द्विजेंद्रलाल रॉय का। उनका गान ‘धनो-धान्य पुष्प भरा’ वंदे मातरम का पूरक है। उसमें भारत की उर्वरा भूमि का उल्लेख तो है ही, साथ में उस भूमि के भविष्य, उसके एजेंडे के लिए एक गहरी सोच, एक चिंता का अहसास भी है। वह गान सूखी आंखों के साथ न कभी गाया जाता है, न सुना।

स्वतंत्रता दिवस पर जन्मदिन

पांचवां नाम जो है, उसको हाथ जोड़कर, नमस्कार और प्रणाम की मुद्रा में लिया जा सकता है। वह नाम है श्री अरविंद। बहुत लोग यह जानते नहीं हैं कि श्री अरविंद का जन्म 1872 में हुआ था-पंद्रह अगस्त को। क्या सुखद संयोग! स्वतंत्रता दिवस के दिन, अपने जन्मदिन पर, श्री अरविंद अपने निवास पुदुचेरी में थे। तिरुचिरापल्ली के ऑल इंडिया रेडियो ने चौदह अगस्त को उनका लिखित संदेश प्रसारित किया। उस संदेश जैसा संदेश प्राय: सुनने को नहीं आता। उसमें आशीर्वाद है, चिंताएं भी। साधुवाद है, चेतावनियां भी। मूल अंग्रेजी में है वह संदेश, तो उसका एक वाक्य अंग्रेजी में ही दिए देता हूं। भारत के दलितों के बारे में वह सहर्ष कहते हैं कि हमारी संविधान सभा ने एक ‘वाइजली ड्रास्टिक पॉलिसी अपनाई है, जिससे दलितों की समस्याओं का अंत हो, उन्हें सुकून मिले।’ श्री अरविंद का संकेत आरक्षण नीति से है। श्री अरविंद उस संदेश में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बारे में भी बहुत कुछ गंभीरता से कहते हैं।

‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा'

पंद्रह अगस्त के उपलक्ष्य में लोकमान्य तिलक की भी याद आती है। उन्होंने कहा-‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा! चिरस्मरणीय है यह वाक्य! और यहां हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत और भारत माता हमारी पताका में निहित हैं। वे हम सबकी हैं। उनसे हमें आत्मबल मिलता है। उनसे कोई किसी भारतवासी, किसी हमवतनी को डराने का हक नहीं रखता है।

स्वाधीनता संग्राम की सुनहरी कड़ी

इस रोज शहीद भगत सिंह की याद आती है। सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद की भी। उनकी हिंदुस्तान समाजवादी गणतांत्रिक फौज नेताजी की आजाद हिंद फौज की अग्रणी थी। वीर सावरकर का फ्रांसीसी समुद्रतट में अंग्रेजी सिपाहियों के जाल में न फंसने के लिए स्टीमर से फिसलकर भाग निकलना और फिर तैरते, भागते हुए पकड़े जाना, यह उद्यम हमारे स्वाधीनता संग्राम की शृंखला की एक सुनहरी कड़ी है। उनकी विचारधारा से गंभीर मतभेद रखते हुए भी गांधीजी ने उनके इस उद्यम को उनकी राष्ट्रीयता का परिचायक माना और उसका उल्लेख उन्होंने बुलंद शब्दों में किया।

भारत छोड़ो आंदोलन- वीरांगना मतंगिनी हाजरा

मैडम भीकाजी कामा महान पारसी महिला थीं। उन्होंने ही हमारे तिरंगे की डिजाइन के एक आकर्षक प्रारूप को श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ बनाया और उसे ‘स्वतंत्र भारत का झंडा’ नाम देते हुए 2 अगस्त, 1907 के दिन जर्मनी में फहराया। भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय बंगाली वीरांगना मतंगिनी हाजरा ने हमारे तिरंगे को उठाकर आंदोलन किया। गोलियां चलीं, वह भी चलती रहीं। गोलियां रुकी नहीं, वह भी रुकी नहीं। गोली उन्हें लगी। वह गिरीं, लेकिन झंडा उनके हाथ में से हिला नहीं, वहीं का वहीं टिका रहा। मतंगिनी अमर हैं।

हमारा राष्ट्रीय ध्वज कपड़े का थान नहीं। वह हमारे देश की जान है, उसमें हमारी आत्मा रहती है। उसको लहराने वाले, उसको उठाकर चलने वाले हम, उसके बालक हैं। हम उसके आशीर्वाद के योग्य बनें।

( पूर्व राजनयिक-राज्यपाल लेखक वर्तमान में अध्यापक हैं )