[निकोलस क्रिस्टॉफ]। अगर आप दुनिया के मौजूदा हालात को लेकर बहुत हताश-निराश हैं तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि बीता साल यानी 2019 मानव इतिहास का सबसे शानदार वर्ष रहा। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस दौरान तमाम बुरी बातें भी हुईं, मगर यह भी उतना बड़ा सच है कि आधुनिक मानव के तकरीबन दो लाख साल पुराने इतिहास में 2019 कई उपलब्धियां लेकर आया। यह संभवत: पहला ऐसा साल रहा जिसमें सबसे कम बच्चे असमय काल के ग्रास बने। बालिगों की सबसे कम संख्या निरक्षर रह गई और कम से कम लोग कष्टदायी बीमारियों के शिकंजे में फंसे।

बीते साल के हर एक दिन में करीब सवा तीन लाख लोगों को पहली बार बिजली की सुविधा मिली। रोजाना तकरीबन दो लाख लोगों से अधिक तक नल के जरिये पानी पहुंचा। वहीं प्रतिदिन लगभग साढ़े छह लाख लोग पहली बार इंटरनेट से जुड़े। यूं तो मानव जीवन तमाम मुश्किलों से भरा हुआ है, लेकिन बच्चे को अपने सामने दम तोड़ते देखना किसी के लिए भी शायद सबसे बड़ी त्रासदी हो सकती है। ऐतिहासिक रूप से दुनिया की आधी आबादी बचपन में ही असमय मौत की शिकार हो जाती थी। यहां तक कि 1950 तक करीब 27 प्रतिशत बच्चे 15 साल से पहले ही मौत के आगोश में चले जाते थे।

पुराने दौर में भयावह गरीबी से त्रस्त थे लोग 

राहत की बात है कि यह आंकड़ा अब लगभग चार प्रतिशत रह गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री मैक्स रोसर कहते हैं, ‘यदि आपको इतिहास के किसी खास कालखंड में जन्म लेने का विकल्प मिले तो अतीत की किसी पीढ़ी में जन्म लेना खासा जोखिमभरा होगा।’ वह ‘अवर वर्ल्ड इन डाटा’ नाम की वेबसाइट चलाते हैं। उनका कहना है कि पुराने दौर में लोग भयावह गरीबी के त्रस्त थे जहां अकाल और भुखमरी बहुत सामान्य सी बात थी।

बहरहाल इन अच्छी बातों के बीच कुछ बुरे संकेत भी उभरे। जैसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। जलवायु परिवर्तन। यमन में युद्ध। वेनेजुएला में भुखमरी। उत्तर कोरिया के साथ परमाणु युद्ध की आशंका भी बीते साल छाई रही। ये सभी बहुत महत्वपूर्ण विषय हैं। यही कारण है कि मैं निरंतर रूप से इन पर लिखता रहा हूं, फिर भी मुझे यही आशंका सताती रहती है कि मीडिया और पूरी दुनिया बुरी खबरों पर इतने व्यापक ढंग से ध्यान केंद्रित करती है कि हम दुनिया को यही आभास कराते हैं कि प्रत्येक रुझान गलत दिशा में जा रहा है।

वैश्विक गरीबी में आई भारी कमी

एक सर्वेक्षण में अमेरिका के अधिकांश लोगों ने यही कहा कि दुनिया में गरीबों की तादाद बढ़ती जा रही है जबकि पिछले पचास वर्षों का एक अहम रुझान यह रहा कि वैश्विक गरीबी में भारी कमी आई है। वर्ष 1981 तक पूरी दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी भयावह गरीबी में जीवनयापन कर रही थी। गरीबी का यह पैमाना संयुक्त राष्ट्र द्वारा दो डॉलर प्रतिदिन के हिसाब से तय किया गया था। अब केवल दुनिया की 10 प्रतिशत से कम आबादी ही गरीब रह गई है। पिछले एक दशक में रोजाना 1,70,000 लोग गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकले।

हालांकि इससे इन्कार नहीं कि उनमें से तमाम की हालत अभी भी उतनी अच्छी नहीं है, लेकिन उनकी गुरबत कम जरूर हुई है। इससे उनके भूखों मरने या अशिक्षित रह जाने की आशंका कमजोर पड़ी है। एक वक्त अकाल बहुत आम थे, लेकिन इसके निशान भी दुनिया ने आखिरी बार 2017 के दौरान दक्षिण सूडान के एक राज्य में देखे थे और वह भी चंद महीनों के लिए। इस बीच पोलियो, कुष्ठ, और फीलपांव जैसी बीमारियां पस्त पड़ती जा रही हैं। वैश्विक प्रयासों से एड्स का प्रकोप भी थमा है।

बालिका शिक्षा के मोर्चे पर बहुत शानदार प्रगति 

आधी शताब्दी पहले दुनिया की अधिकांश आबादी अशिक्षित थी। अब हम वयस्क साक्षरता के मोर्चे पर 90 प्रतिशत तक का स्तर हासिल कर रहे हैं। खासतौर से बालिका शिक्षा के मोर्चे पर बहुत शानदार प्रगति हुई है। बालिका शिक्षा और महिला सशक्तीकरण जैसी ताकत ने दुनिया को बदलने में जो भूमिका निभाई है वैसी प्रवर्तनकारी ताकत अमूमन कम ही देखने को मिलती हैं। ऐसे दौर में जब दुनिया में इतना सब गलत हो रहा हो तब तरक्की की ऐसी तस्वीर दिखाना मिजाज बिगाड़ सकता है। 

इन आंकड़ों पर भी बहस हो सकती है और 2019 के आंकड़े तो वैसे भी अनुमानित ही हैं, मगर मुझे यह भी चिंता सताती है कि निराशावाद स्थिति को और बिगाड़ता है। अत्यधिक निराशावाद लोगों को केवल नाउम्मीद ही नहीं, बल्कि असहाय बना सकता है। पाठक भी लगातार मुझे कई बातें बताते रहते हैं। मसलन अगर हम ज्यादा बच्चों को बचाएंगे तो इससे जनसंख्या का संकट पैदा हो सकता है। भुखमरी का विकराल संकट भी खड़ा हो सकता है। हालांकि वे यह महसूस नहीं करते कि जब माता-पिता अपने बच्चों की लंबी जिंदगी को लेकर सुनिश्चित होंगे तो जनसंख्या नियंत्रण के उपाय भी करेंगे। 

बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अमेरिका की तुलना में तेज 

इस मामले में हेनरी किसिंग्जर ने बांग्लादेश को एक ‘बास्केट केस’ बताया था। अब बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अमेरिका की तुलना में तेज गति से आगे बढ़ रही है तो वहां जन्म दर केवल 2.1 प्रतिशत रह गई है जो 1973 की 6.9 प्रतिशत की तुलना में काफी नीचे आ गई है। फिर भी यह बात सालती है कि प्रत्येक छह सेकेंड पर दुनिया में कहीं न कहीं एक बच्चे की मौत होती है। मगर यह भी सोचिए कि एक दशक पहले प्रत्येक तीन सेकेंड में ऐसा होता था। मुझे लगता है कि ऐसी तस्वीर दिखाकर हौसला और बढ़ाया जा सकता है और यही कारण है कि मैं हर साल एक ऐसा आलेख लिखता हूं जिसमें मानवता के समक्ष मौजूद साझा शत्रुओं के खिलाफ ऐसी जीत का जिक्र हो।

अमेरिकी संस्थानों के समक्ष बढ़ रहीं चुनौतियां 

जहां तक चुनौतियों की बात है तो जलवायु परिवर्तन धरती के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। यह आशंका बढ़ गई है कि वर्ष 2030 तक गरीबी घटाने के लक्ष्य से हम पीछे रह जाएंगे। इस बीच ट्रंप अमेरिकी संस्थानों के समक्ष चुनौतियां बढ़ाते जा रहे हैं। इसके चलते लाखों परिवार पिछड़ गए हैं। उन्हें कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है।

समकालीन दौर पर रोसर कहते हैं, ‘एक साथ तीन बातें सच हो रही हैं। दुनिया बेहतर हो रही है, दुनिया बहुत डरावनी हो रही है और इस दुनिया को और बेहतर बनाया जा सकता है।’ बहरहाल जब साल 1959 में मैं पैदा हुआ था तब दुनिया की एक बड़ी आबादी भयावह गरीबी की जद में थी और तमाम लोग अनपढ़ ही रह गए। अब जब कभी मैं इस दुनिया को अलविदा कहूंगा तब तक शायद दुनिया से गरीबी और अशिक्षा मिट चुकी होगी। मानवता के लिए शायद इससे बड़ी जीत की कल्पना नहीं की जा सकती।

(लेखक द न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार हैं)