कार्तिकेय हरबोला। 17th Lok Sabha संसद के बजट सत्र के बाद कोरोना महामारी का असर मॉनसून सत्र पर भी होने वाला है। राजधानी दिल्ली में इस महामारी की गंभीर स्थिति को देखते हुए राज्यसभा के सभापति तथा लोकसभा अध्यक्ष के साथ-साथ दोनों सचिवालयों के अधिकारी इस सत्र के आयोजन स्थल और तौर-तरीकों को लेकर बेहद सतर्क हैं। यही वजह भी है कि शारीरिक दूरी के नियमों का पालन हो, इस आधार पर डिजिटल प्लेटफॉर्म के विकल्प को अपनाए जाने के अलावा सत्र की बैठक के लिए उचित स्थान को लेकर लंबे समय से मंत्रणा जारी है। हालांकि पूर्ण मानकों में विज्ञान भवन का नाम सूची में सबसे ऊपर है, फिर भी लोकसभा चैंबर व संसद भवन के केंद्रीय कक्ष को भी इस सूची में शामिल किया गया है।

इससे इतर ऐतिहासिक व सफल एक वर्ष पूर्ण कर सत्रहवीं लोकसभा अपने दूसरे वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इस एक वर्ष के दौरान लोकसभा ने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने के साथ उत्पादकता में भी रिकॉर्ड कीर्तिमान स्थापित किए। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के सदन संचालन व नवाचार की भी इसमें अहम भूमिका रही। ये तमाम उपलब्धियां लोकसभा की कार्यवाही के कुशल संचालन पर काफी हद तक निर्भर करती हैं, परिणामस्वरूप जीवंत लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों का विश्वास और सुदृढ़ होता है।

बीते वर्ष 25 मई को गठित 17वीं लोकसभा का प्रथम सत्र 17 जून 2019 को आरंभ हुआ। 19 जून 2019 को सांसद ओम बिरला ने लोकसभा अध्यक्ष के पद की शपथ ली। एक वर्ष के दौरान लोकसभा के तीन सत्र आयोजित किए गए। उत्पादकता की दृष्टि से लोकसभा का पहला सत्र ऐतिहासिक रहा। वर्ष 1952 के बाद इस सत्र में सर्वाधिक कार्य हुआ। इस सत्र में कुल 37 बैठकें हुईं जो 280 घंटों तक चलीं। व्यवधानों, स्थगन आदि के कारण समय की कोई खास हानि नहीं हुई। संक्षेप में नजर डालें तो पहले सत्र की कुल उत्पादकता 125 फीसद रही, जबकि दूसरे और तीसरे सत्र की कार्य उत्पादकता क्रमश: 115 और 90 फीसद रही। पंद्रहवीं व सोलहवीं लोकसभा के तीनों सत्रों की तुलना में सत्रहवीं लोकसभा के तीनों सत्रों की औसत उत्पादकता 110 फीसद रही, जबकि पंद्रहवीं लोकसभा की 85 फीसद व सोलहवीं लोकसभा के तीन सत्रों की औसत उत्पादकता 89 फीसद रही थी।

वर्ष 2019 के शीतकालीन सत्र में पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ते हुए प्रश्नकाल की उत्पादकता ने लोकसभा अध्यक्ष के प्रयासों को सफल साबित किया। 27 नवंबर 2019 को प्रश्नकाल के दौरान सभी 20 तारांकित प्रश्नों को लिया गया। प्राप्त प्रश्नों की ई-सूचनाओं की संख्या में भी सत्रहवीं लोकसभा के दौरान इजाफा हुआ। इस दौरान यह संख्या 58 फीसद रही, जो सोलहवीं लोकसभा के दौरान 34 फीसद रही थी। शून्य काल में पिछले एक वर्ष के दौरान 2,436 मामले उठाए गए, जो अपने-आप में एक रिकॉर्ड है। पहले सत्र की बात करें तो शून्य काल के दौरान 1,066 मामले सदन में माननीयों द्वारा उठाए गए। लोकसभा के इतिहास में एक सत्र में शून्य काल के दौरान उठाए जाने वाले मामलों में यह सर्वाधिक संख्या है। इतना ही नहीं, पहले सत्र में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा 161 सदस्यों को शून्य काल के दौरान अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों को उठाने की अनुमति देना अपने आप में महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक है।

विधायी कार्य की बात करें तो पहले सत्र की 37 बैठकों में 33 सरकारी विधेयकों को स्थापित किया गया और 35 सरकारी विधेयकों को पारित किया गया। पारित किए गए विधेयकों में से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) विधेयक 2019 तथा मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 आदि प्रमुख थे। दूसरे सत्र में कुल 14 विधेयक और तीसरे सत्र में कुल 15 विधेयक पारित किए गए।

सत्रहवीं लोकसभा में पहली बार चुनकर आए 265 सांसदों में से 229 को पहले ही सत्र में अध्यक्ष पीठ द्वारा बोलने का अवसर प्रदान किया गया। नवनिर्वाचित सदस्यों को पहले सत्र में अपनी बात रखने का अवसर देना संसदीय परंपराओं को मजबूत करने की पहल का अनूठा उदाहरण पेश करता है। नियम 377 के अधीन उठाए गए या देखे गए मामलों के उत्तरों की संख्या के प्रतिशत में भी वृद्धि देखने को मिली। सत्रहवीं लोकसभा के पहले तीन सत्रों के दौरान उत्तरों का प्रतिशत 88 फीसद तक बढ़ गया, जबकि पंद्रहवीं और सोलहवीं लोकसभा में इसका प्रतिशत लगभग 60 फीसद था।

इस दौरान कई प्रकार के सुधार के कार्यों को भी अंजाम दिया गया। इसमें सबसे प्रमुख वित्तीय सुधारों के मद्देनजर लोकसभा सचिवालय में होने वाले खचोर्ं को कम करते हुए पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान 809 करोड़ रुपये के कुल बजट अनुदान में से 650 करोड़ रुपये की धनराशि ही खर्च की गई। इस प्रकार करीब 159 करोड़ रुपये की बचत हुई, यानी कुल बजट अनुदान का लगभग 80 फीसद ही खर्च किया गया।

हालांकि इन सबके बीच वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती मॉनसून सत्र को लेकर है। सत्र कहां होगा, व्यवस्थाएं क्या रहेंगी, इसे लेकर अभी भी कई स्तरों पर मंथन जारी है। उम्मीद की जा सकती है कि तमाम मापदंड और प्रोटोकॉल के मद्देनजर जल्द कोई बेहतर विकल्प निकल कर सामने आएगा। माना जा सकता है कि संसदीय इतिहास में भी सभी के लिए यह अनूठा अनुभव होगा। उधर पिछले एक साल के रिकॉर्ड को आने वाले समय में कायम रखने की कसौटी पर सत्रहवीं लोकसभा कितनी सफल हो पाती है, यह भी देखने वाली बात होगी। निश्चित रूप यह सुनिश्चित करना पूरी तरह से सांसदों का दायित्व है।

[टीवी पत्रकार]