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Women’s Day 2024: भारत में यहां चलता है महिलाओं का राज, पुरुष करते हैं घर का काम और जाते हैं ससुराल

महिलाओं को उनके अधिकार प्रति जागरूक करने के मकसद से हर साल 8 मार्च को महिला दिवस (Women’s Day 2024) मनाया जाता है। महिलाएं समाज का अहम हिस्सा है जो अपने अहम योगदान से कई महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। हालांकि वर्तमान में ज्यादातर लोग पितृसत्तामक समाज में रहते हैं। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे भारत के कुछ ऐसे समुदायों के बारे में जो मातृसत्तात्मक समाज का जीवित उदाहरण हैं।

By Harshita Saxena Edited By: Harshita Saxena Published: Tue, 05 Mar 2024 06:57 PM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2024 06:57 PM (IST)
इन समुदायों में होता है मातृसत्ता का पालन

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। Women’s Day 2024: एक समाज को बनाने में महिला भी अहम योगदान निभाती हैं। बीते कई वर्षों से महिलाएं अपनी इस अहम भूमिका को निभाती आ रही हैं। हालांकि, बावजूद इसके आज भी कई जगह महिलाएं एक अच्छे जीवन वंचित हैं। उन्हें अक्सर कमतक आंका जाता है, जिसकी वजह से यह आगे नहीं बढ़ पातीं और समाज के खोखले रीति-रिवाजों और रूढ़िवादी सोच के तले दब जाती हैं। ऐसे में महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के मकसद से 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन्हें जागरूक करने और एक अच्छे जीवन की ओर अग्रसर करने का दिन है।

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क्या है पितृसत्तामक समाज?

हम में से ज्यादातर लोग पितृसत्तामक समाज का हिस्सा है, जहां एक विशेष लिंग को महत्वता देते हुए समाज में सबसे ऊपर बताया गया है। यह एक ऐसा समाज, जो पुरुषों को ज्यादा अहमियत देता है और पुरुषों को महिलाओं पर शासन करने की शक्ति देता है। पितृसत्ता एक ग्रीक शब्द है, जिसका मतलब है "पिता द्वारा शासन" होता है। यह एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें पुरुषों की प्राथमिक सत्ता होती है और महिलाएं हर तरह से किसी न किसी पुरुष के अधीन रहती है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर महिलाओं और पुरुषों का यह किरदार अगर बदल दिया जाए, तो क्या है। ऐसा समाज जहां मातृसत्ता चलती हो। यह सुनने किसी कल्पना की तरह जरूर लग रहा होगा, लेकिन हमारे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो ऐसे समाज का जीवंत उदाहरण पेश करते हैं। यह लोग पितृसत्तामक समाज में जीने की जगह मातृसत्ता का चुनाव करते हैं। महिला दिन के मौके पर आज हम आपको बताएंगे भारत के कुछ ऐसे ही समाज के बारे में, जहां 'मातृसत्तात्मक' शैली का पालन करते हुए अपना जीवन यापन करते हैं।

खासी जनजाति

भारत का पूर्वोत्तर राज्य मेघालय देश के सबसे बड़े मातृसत्तात्मक समाज का उदाहरण है। इस समूह में रहने वाले लोग मुख्य रूप से अपनी मां का नाम धारण करते हैं और इनके परिवार में बेटियों को भी विरासत हासिल होती है। साथ ही यह समाज मातृस्थानीय संस्कृति का भी पालन करता हैं, जिसका मतलब है कि बच्चे मां के परिवार के साथ ही रहते हैं। महिला चाहे कितनी भी बार शादी कर ले, बच्चे उसके साथ रहते हैं और उसका नाम लेते हैं। इतना ही नहीं इस समुदाय में शादी के बाद महिलाओं की जगह पुरुषों को पत्नी के साथ ससुराल में जाकर रहना पड़ता है। साथ ही घर का सारा काम पुरुष करते हैं और महिलाएं बाहर के सारे कामों की जिम्मेदारी उठाती हैं।

गारो जनजाति

यह भारत की एक प्रमुख जनजाति है, जो मुख्य रूप से मेघालय राज्य के गारो पर्वत के निवासी आदिवासी हैं। खासी जाति के पड़ोसी होने की वजह से गारो जनजाति की संस्कृति भी उन्हीं के समान है यानी कि यहां मातृसत्तात्मक समाज है। यहां घर की मां गारो परिवार की मुखिया होती है, लेकिन भरण-पोषण की जिम्मेदारी पिता की होती है। यहां बच्चे अपनी मां का ही नाम लेते हैं। साथ ही परंपरागत रूप से, घर सबसे छोटी बेटी (नोकमे-चिक) को अपनी मां से संपत्ति विरासत में मिलती है। यहां भी शादी के बाद पुरुष अपनी पत्नी के घर में रहता है।

नायर जनजाति

दक्षिण भारत में भी कुछ ऐसी जनजातियां पाई जाती हैं, जहां मातृसत्ता चलती है। केरल की नायर और एझावा इन्हीं समुदायों में से एक हैं। ये जनजातियां भारत की आजादी से बहुत पहले मातृसत्तात्मक व्यवस्था में रहती थीं। मातृसत्तात्मक समाज का पालन करते हुए यहां लोग परिवार में सबसे बड़ी महिला सदस्य के अधीन रहते हैं, जिन्हें थरावद कहा जाता है। वहीं, पति आमतौर पर अलग-अलग कमरों में या बिल्कुल अलग-अलग घरों में रहते हैं और अपने बच्चों के प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। इस समुदाय की सभी पीढ़ियां कुलमाता के परिवार का नाम हासिल करती हैं और उनकी संपत्ति को ही पैतृक मानती हैं।

तुलुवा जनजाति

एक अन्य दक्षिणी राज्य, कर्नाटक में, तुलुवा जातीय समूह के दो प्रमुख समुदाय, बंट और बिलावा, मातृवंशीय समाज का पालन करते हैं। इसे अलियासंताना के नाम से जाना जाता है, जिसकी उत्पत्ति एक कहानी से हुई है। इसके अनुसार, एक राक्षस राज्य को सूखे से बचाने के लिए राजा से अपने बेटे की बलि मांगता है। राजा ने इनकार कर दिया, लेकिन राजा की बहन ने अपने बेटे की बलि दे दी। राक्षस बहन के साहस से प्रसन्न हुआ और उन्हें माफ कर दिया। इस कहानी ने तुलुवा समूह को भारत में मातृसत्तात्मक समाजों में से एक बनने के लिए प्रेरित किया। बंट और बिलावा समुदायों में, विरासत बहन, यानी सबसे बड़ी महिला सदस्य के जरिए चलती है।

बोंडा जनजाति

ओडिशा की बोंडा जनजाति भी मातृसत्तात्मक समाजों का एक उदाहरण है। इन्हें ऑस्ट्रोएशियाटिक जनजातियों के एक समूह का सदस्य माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे भारत के पहले वन निवासी हैं। कई वर्षों के बाहरी हस्तक्षेपों के बावजूद बोंडा लोगों ने अपनी पहचान और संस्कृति बरकरार रखी है। मुख्य रूप से वनवासी यह समुदाय भी मातृसत्तात्मक समाज में रहता है। यहां महिलाएं खुद से कम से कम 5-10 साल छोटे पुरुषों से शादी करना पसंद करती हैं, ताकि बूढ़े होने पर पुरुष उनके लिए कमा सकें।

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Pic Credit: Facebook


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