Move to Jagran APP

रीतिकाल काल स्त्री के जीवन का मुखर काव्य: प्रो. मुकेश गर्ग

हिदी साहित्य में रीतिकाल को आलोचकों ने केवल श्रृंगार का काव्य कहकर उसकी भ‌र्त्सना की।

By JagranEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 08:37 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 08:37 PM (IST)
रीतिकाल काल स्त्री के जीवन का मुखर काव्य: प्रो. मुकेश गर्ग

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

loksabha election banner

हिदी साहित्य में रीतिकाल को आलोचकों ने केवल श्रृंगार का काव्य कहकर उसकी भ‌र्त्सना की। कुछ आलोचकों ने इसे अंधकार काल भी कहा। स्त्री पक्ष से देखें तो इस काल में स्त्री को केवल भोग विलास की वस्तु कहकर व्याख्यायित किया गया। यह बातें दिल्ली विश्वविद्यालय हिदी विभाग के पूर्व प्रो. मुकेश गर्ग ने हंसराज कॉलेज और कैंपस कॉर्नर द्वारा 'रीतिकाल : मुखर होती स्त्री का दस्तावेज' विषय पर आयोजित वेबिनार में भाग लेते हुए कही। प्रो. मुकेश गर्ग ने इन सारी धारणाओं को तोड़ते हुए इस काल को स्त्री के जीवन का मुखर काव्य बताया। उन्होंने कहा कि स्त्री को यहां भोग की दृष्टि से नहीं बल्कि प्रेम और स्नेह की ²ष्टि से देखा गया है। मुकेश गर्ग ने कहा कि कबीर और तुलसी की कविताओं को स्त्री के लिए बहुत बेहतर नहीं माना जाता है। उन्होंने कहा कि रीति काल में स्त्री उन्मुक्त होकर समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करती है। रीति काल के कवियों ने स्त्री का जो चित्रण किया और लक्षण ग्रंथ लिखे उनकी भी व्याख्या ठीक से नहीं हुई। उन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण बिदुओं पर बात करते हुए कहा कि इस काल में स्त्री को भोग की वस्तु कहा गया जबकि पूरे रीति काल में किसी भी स्त्री से उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर प्रेम नहीं किया गया। वहीं, इस मौके पर प्राचार्य रमा शर्मा, डॉ. महेंद्र प्रजापति, कार्यक्रम संयोजक डॉ. प्रभांशु ओझा व अंकिता चौहान ने भी अपने विचार रखे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.