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लोकसभा के पूर्व महासचिव से जुड़ी जानकारी देने के आदेश पर रोक

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान तत्कालीन जनरल सेक्रेटरी टीके विश्वनाथन के कार्यकाल को लोकसभा स्पीकर द्वारा बढ़ाने से जुड़ी सूचना देने के संबंध में एकल पीठ के फैसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 07:59 PM (IST)Updated: Thu, 22 Aug 2019 06:31 AM (IST)
लोकसभा के पूर्व महासचिव से जुड़ी 
जानकारी देने के आदेश पर रोक
लोकसभा के पूर्व महासचिव से जुड़ी जानकारी देने के आदेश पर रोक

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान लोकसभा के तत्कालीन महासचिव टीके विश्वनाथन का कार्यकाल लोकसभा अध्यक्ष स्पीकर द्वारा बढ़ाने से जुड़ी सूचना देने के संबंध में एकल पीठ के फैसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने 2 जुलाई के आदेश पर रोक लगाते हुए सूचना मांगने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता को नोटिस जारी कर जवाब देने के आदेश दिए हैं। यह आदेश लोकसभा सचिवालय की उस चुनौती याचिका पर आया, जिसमें उसने सूचना देने के संबंध में एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी। लोकसभा सचिवालय ने दलील दी है कि महासचिव से जुड़ी जानकारी को आरटीआइ एक्ट के तहत छूट दी गई है।

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जुलाई में न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी)को निर्देश दिया था कि वह चार सप्ताह के अंदर याचिकाकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए। पीठ ने कहा था कि मामले में यह तो साफ है कि जिस सूचना को देने से इन्कार किया गया है वह महासचिव के कार्यकाल को बढ़ाने के मुद्दे पर तत्कालीन नेता सदन डॉ. मनमोहन सिंह, तत्कालीन लोकसभा नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और तत्कालीन अध्यक्ष मीरा कुमार के बीच हुए संवाद और परामर्श से जुड़ा था। महासचिव का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला प्रशासनिक विभाग का मुखिया या सभी कमेटी का प्रमुख होने के नाते अध्यक्ष ने लिया था। कार्यकाल बढ़ाने का फैसला सदन में नहीं हुआ था। ऐसे में यह विधायी या किसी संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है।

सुभाष चंद्र अग्रवाल ने अक्टूबर 2010 में लोकसभा महासचिव टीके विश्वनाथन का कार्यकाल बढ़ाने के संबंध में 14 बिदुओं पर आरटीआइ के तहत सीआइसी से जवाब मांगा था। सीआइसी और लोकसभा सचिवालय ने दलील दी थी कि सदन की संवैधानिक प्रक्रिया का निर्वहन करने के दौरान अध्यक्ष द्वारा किए गए संवाद व परामर्श को सार्वजनिक करना ठीक नहीं है क्योंकि यह संसदीय विशेषाधिकार का हनन होगा।


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