आखिरकार दिल्ली मेट्रो ने यात्रियों को उपभोक्ता की श्रेणी में माना
फरवरी 2015 में आरटीआइ के जवाब में दिल्ली मेट्रो ने कहा था कि यह जानकारी हमारे पास लिखित रूप में उपलब्ध नहीं है। वहीं 17 मार्च 2015 को कहा गया था कि यह सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 2 (च) के तहत सूचना के परिभाषा में नहीं आती है।
संजय सलिल, बाहरी दिल्ली लंबे अर्से के बाद आखिरकार दिल्ली मेट्रो ने यात्रियों को उपभोक्ताओं की श्रेणी में मान लिया है। सूचना के अधिकार के तहत दिए गए जबाव में दिल्ली मेट्रो ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसकी यात्री सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 के दायरे में आती हैं। ऐसे में अब मेट्रो यात्रियों को भी वे सभी अधिकार व मुफ्त पानी, शौचालय समेत अन्य जरूरी सुविधाएं हासिल हो जाएंगी, जो मौजूदा अन्य परिवहन व्यवस्था से जुड़े सेवा प्रदाताओं की ओर से उनमें सफर करने वाले लोगों को मिलती हैं। इतना ही नहीं सफर के क्रम में किसी प्रकार के नुकसान व अधिकारों से वंचित होने की स्थित में यात्री सीधे उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटा सकेंगे। दिल्ली मेट्रो यात्रियों को अब तक उपभोक्ता नहीं मानता रहा था। जिससे उन्हें अब तक उपभोक्ता के अधिकारों से वंचित होना पड़ रहा था। दिल्ली में मेट्रो का परिचालन वर्ष 2002 में शुरू हुआ था। इसमें प्रतिदिन औसतन 65 ला यात्री सफर करते हैं। लेकिन दिल्ली मेट्रो बतौर सेवा प्रदाता यात्रियों को उपभोक्ताओं की श्रेणी में नहीं रखता था। चूंकि भारतीय रेल, राज्य परिवहन निगम की बसों आदि में सफर करने वाले यात्री उपभोक्ता की श्रेणी में हैं। ऐसे में दिल्ली मेट्रो में भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू हो, इसके लिए कादीपुर के सामाजिक कार्यकर्ता हरपाल ¨सह राणा वर्षों से प्रयासरत थे। इसके लिए उन्होंने दो दर्जन से अधिक बार आरटीआइ के जरिए जानकारी मांगी थी कि क्या मेट्रो रेल यात्री उपभोक्ता के दायरे में आते हैं या नहीं। दिल्ली सरकार से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को अब तक करीब दो सौ पत्र लिखकर इस बाबत मांग की थी।