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वनक्षेत्र का 30 फीसद ही दिल्ली के फेफड़ों में भर रहा प्राणवायु

ब्रिटिश हुकूमत ने देश को आर्थिक ही नहीं पर्यावरण की ²ष्टि से भी खासा नुकसान पहुंचाया है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 08:22 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 06:07 AM (IST)
वनक्षेत्र का 30 फीसद ही दिल्ली के फेफड़ों में भर रहा प्राणवायु

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली:

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दिल्ली के रिज में यूं तो 7,777 हेक्टेयर में वनक्षेत्र फैला है, लेकिन केवल 30 फीसद ही दिल्ली के फेफड़ों में प्राणवायु भर रहा है।

वजह, अंग्रेजों के बोए हुए विलायती कीकर न सिर्फ जहरीला रसायन छोड़ दूसरे पेड़-पौधों को पनपने से रोक रहे हैं, बल्कि भूजल को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। जंगल का क्षेत्र बढ़ाने के लिए अंग्रेज मैक्सिको से कीकर के बीज लाए थे, इसीलिए इन्हें विलायती पेड़ कहा जाता है। चूंकि इन्हें बढ़ने के लिए सींचने की जरूरत नहीं होती, इसलिए इसका दायरा भी स्वत: बढ़ता जाता है। रिज क्षेत्र में 70 फीसद तक इन्हीं का कब्जा है। इसकी जड़े भी बहुत सख्त होती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, विलायती कीकर इलेलोपैथी नाम का रसायन छोड़ता है। यह रसायन इसके आसपास किसी अन्य वनस्पति के पेड़-पौधों को पनपने ही नहीं देता। इस रसायन की वजह से ही जमीन की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित होती है और भूजल का स्तर भी नीचे चला जाता है। यह ऑक्सीजन भी नाममात्र की ही छोड़ता है।

दूसरी तरफ, जलाशयों में जलकुंभी भी देखने में भले अच्छी लगे, लेकिन यह भी जलीय वनस्पति की दुश्मन है और अंग्रेजों द्वारा ही लाई गई थी। 80 के दशक में डीडीए द्वारा यमुना किनारे लगाए गए सुबबूल के पेड़ भी सख्त होने के कारण रखरखाव के बिना बढ़ते जाते हैं और आसपास के पेड़-पौधों को भी नुकसान पहुंचाते है। कमोबेश यही स्थिति सफेदे के पेड़ों की है। भीतर का एक सच यह भी

जल्द व स्थायी हरियाली के लिए वन विभाग भी इन घुसपैठिए पौधों के बीज बोता रहा है। दरअसल, आजादी के बाद वन विभाग के अधिकारियों ने इन्हें शॉर्ट कट के रूप में लेना शुरू कर दिया। वार्षिक पौधारोपण का लक्ष्य पूरा करने व बाद में जवाबदेही से बचने के लिए वे अन्य पौधों के साथ-साथ विलायती कीकर के बीज भी डालते रहे। चूंकि पौधारोपण मानसून पूर्व और उसके दौरान ही होता है। इसलिए विलायती कीकर के बीज एक बार डाल दिए जाने के बाद कोई ध्यान देने की जरूरत नहीं पड़ती। मानसून में ही यह खुद ब खुद पनप जाते हैं और बाद में बढ़ते जाते हैं। इसी हरियाली को दिखाकर वन विभाग के अधिकारी यह साबित करते रहे हैं कि उनकी ओर से लगाए गए पौधों में ज्यादातर जीवित हैं। सड़कों के किनारे ये पौधे लगाने चाहिए

सड़कों के किनारे छायादार और ऑक्सीजन देने वाले पीपल, बरगद, नीम, अर्जुन और जामुन के पौधे लगाने चाहिए। रेलवे लाइन के किनारे बबूल रोपना सर्वाधिक उपयुक्त रहता है। कृषि वानिकी में आर्थिक उपयोग के लिए आम, अमरूद, आंवला के अलावा पोपलर के वृक्ष लगाना पर्यावरण संगत है। धरती, जल, वायु और स्वास्थ्य सभी का दुश्मन विलायती कीकर रिज एरिया में तो बहुतायात से फैला ही है, दिल्ली के दूसरे क्षेत्रों में भी इसका फैलाव देखा जा सकता है। दुख की बात यह है कि इसे खत्म करने की दिशा में बनी योजनाएं फाइलों से ही बाहर नहीं निकल पा रही। जलकुंभी, सुबबूल और सफेदे के पेड़ भी जहां कहीं देखे जा सकते हैं।

-डॉ. एके सिंह, वैज्ञानिक प्रभारी, कमला नेहरू रिज रिज क्षेत्र से विलायती कीकर को हटाने के लिए पूरा बायोडायवर्सिटी प्लान तैयार है। इसे दिल्ली कैबिनेट की मंजूरी मिलने का इंतजार है। इन घुसपैठिए पेड़ों की जगह चरणबद्ध तरीके से घास, झाड़ियां और जड़ी बूटियां लगाई जाएंगी। यमुना किनारे सुबबूल लगाना भी बंद कर दिया गया है। जलकुंभी पहले की तुलना में काफी कम रह गई है। सफेदे के पेड़ भी अब नहीं रोपे जा रहे हैं।

-ईश्वर सिंह, प्रधान, मुख्य वन संरक्षक, दिल्ली सरकार


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