Corona Impact: लॉकडाउन के चलते साफ हो रहा यमुना का मैला आंचल, भविष्य के लिए सकारात्मक संदेश
Corona Impact लॉकडाउन के दौरान यमुना का पानी काफी साफ हुआ है और इससे भविष्य के लिए भी सकारात्मक संदेश मिल रहे हैं।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। Corona Impact: कृष्ण की दुलारी रही यमुना का मैला आंचल अब साफ होने लगा है। लॉकडाउन के एक माह में ही नदी की 75 फीसद तक गंदगी कम हो गई है। हालांकि हाल ही में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने यमुना के 33 फीसद तक साफ होने की बात कही थी, लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हर बैराज पर यमुना का साफ पानी बहता हुआ नजर आ रहा है। इसकी वजह सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान यमुना में डाली जाने वाली गंदगी में कमी आना है।
वैज्ञानिक डॉ. यशपाल यादव के नेतृत्व में सीपीसीबी की टीम ने लॉकडाउन के दौरान पल्ला से वजीराबाद बैराज (22 किमी), वजीराबाद से निजामुद्दीन ब्रिज (13.5 किमी) और निजामुद्दीन ब्रिज से ओखला बैराज (7.5 किमी) के हिस्से से पानी के नमूने उठाए। इनकी तुलना लॉकडाउन से पूर्व के आंकड़ों से की गई। इसमें अभूतपूर्व परिणाम सामने आए। तीनों ही हिस्सों में पानी की गुणवत्ता काफी हद तक बेहतर हो गई।
रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन से पहले पल्ला बैराज पर डिजोल्व डिमांड (डीओ) 71.1 मिलीग्राम प्रति लीटर और बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 163 मिलीग्राम प्रति लीटर थी। लेकिन अब यह क्रमश: 8.3 और 89 मिलीग्राम प्रति लीटर रह गई है यानी डीओ में 51 जबकि बीओडी में 75 फीसद कमी दर्ज की गई है। इसी तरह से ओखला बैराज पर बीओडी में 77, नजफगढ़ ड्रेन पर 29 और शाहदरा ड्रेन पर 45 फीसद तक की कमी देखने को मिली है। इससे यमुना साफ नजर आ रही है।
यमुना साफ होने की प्रमुख वजह
- 22 नालों का सीवेज छोड़कर और कोई कचरा लॉकडाउन के दौरान यमुना में नहीं जा रहा।
- दिल्ली के 28 औद्योगिक क्षेत्रों से प्रतिदिन निकलने वाला 213 मिलियन गैलन पूर्णतया बंद है।
- यमुना में पूजा सामग्री डालने, नहाने, कपड़े धोने और सॉलिड वेस्ट डालने की प्रक्रिया भी बंद है।
- हरियाणा से नियमित तौर पर पानी भी छोड़ा जा रहा है, जो पहले से जमा गंदगी को भी बहा ले जा रहा है।
लॉकडाउन के दौरान यमुना का पानी काफी साफ हुआ है और इससे भविष्य के लिए भी सकारात्मक संदेश मिल रहे हैं। यह स्थिति आगे भी बनी रहे, इसे लेकर ठोस प्लानिंग बनाए जाने की जरूरत है।
-डा. प्रशांत गार्गवा, सदस्य सचिव, सीपीसीबी