दिल्ली-आगरा की सड़कों पर फिर अपने गांव जाते दिख रहे हैं दूसरे राज्यों के मजदूर
जाने वाले ज्यादातर मजदूर दिल्ली और हरियाणा में अस्थायी कर्मी के रूप में काम करते हैं। परिवार के साथ पैतृक गांव जाने के पीछे मजदूरों की चिंता अपने रोजगार को लेकर भी है क्योंकि दिल्ली में लॉकडाउन चल रहा है।
नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क। दूसरे राज्यों खासतौर पर बिहार व मध्य प्रदेश के मजदूर फिर अपने पैतृक गांव की ओर रुख करने लगे हैं। जाने वाले ज्यादातर मजदूर दिल्ली और हरियाणा में अस्थायी कर्मी के रूप में काम करते हैं। परिवार के साथ पैतृक गांव जाने के पीछे मजदूरों की चिंता अपने रोजगार को लेकर भी है क्योंकि दिल्ली में लॉकडाउन चल रहा है। हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने साफ तौर पर कहा है राज्य में लॉकडाउन नहीं लगेगा। मनोहर लाल ने तो मजदूरों से यह भी अपील की है कि उन्हें सरकार हर संभव सहायता उपलब्ध कराएगी। इस दौर में वे अपने स्थानों पर रहें मगर मजदूर कोरोना से बचने के लिए अपने पैतृक गांव जा रहे हैं। दिल्ली से आगरा मार्ग पर निजी बस सहित ऐसे अनेक वाहन दिखाई देते हैं जो मजदूरों को लेकर बिहार या मध्य प्रदेश के झांसी संभाग में जा रहे हैं। हां, उत्तर प्रदेश जाने वाले वाहनों में ज्यादातर मजदूर ऐसे हैं जो अपने पैतृक गांव में होने वाले पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने जा रहे हैं।
झूठ बोलने के पीछे छिपी है मजदूरों की चिंता
दिल्ली-हरियाणा की बदरपुर सीमा पर एक ही क्षेत्र के मजदूर मिलकर किराये पर निजी वाहन कर रहे हैं। मसलन बिहार के मधुबनी जिला के आसपास के क्षेत्र के मजदूर एक ही बस में सवार हो रहे हैं। इन मजदूरों के साथ कुछ निजी वाहन चालक धोखाधड़ी भी कर रहे हैं। कई ऐसे भी मजदूर हैं जिनसे बस में बैठाने के लिए तथाकथित निजी वाहन चालक-परिचालक पैसे ले लेते हैं और बाद में रफूचक्कर हो जाते हैं। बदरपुर बार्डर पर बुधवार सायं ऐसी धोखाधड़ी के शिकार परेशान मजदूर भी पुलिस सहायता की दरकार करते नजर आए।
बिहार के मधुबनी के रहने वाले रणजीत मिश्रा का कहना था कि उनके परिवार में शादी है इसलिए वे घर जा रहे हैं। युवा मजदूर सुरेश कुमार शर्मा बताते हैं कि वे दिल्ली प्रेम नगर में मजदूरी करते थे मगर अब लाकडाउन के चलते वे वापस घर जा रहे हैं।
रणजीत मिश्रा के कथन पर भी उसके साथी मजदूर श्याम पासवान बताते हैं कि वे शादी-विवाह होने की बात इसलिए कह रहे हैं ताकि प्रशासन उन्हें रोके नहीं। वे सुन रहे हैं कि जब बड़े लोगों के इलाज के लिए अस्पतालों में जगह नहीं है तो वे कहां इलाज कराएंगे। यही चिंता उन्हें उनके घर की ओर जाने पर विवश कर रही है।