कोरोना संक्रमण के साथ, अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए बंद न हो कोई अस्पताल
इंडियन मेडिकल काउंसिल के संयुक्त सचिव डा अनिल गोयल ने बताया कि अस्पतालों में 50 फीसद बेड कोरोना के लिए आरक्षित हों और 50 फीसद दूसरी बीमारियों के लिए। संक्रमण न फैले इसके लिए जगह अलग-अलग की जा सकती हैं।
पूर्वी दिल्ली, स्वदेश कुमार। जब कोरोना का संक्रमण राजधानी में पहुंचा था तब परिस्थितियां अलग थीं। सरकार की पहली कोशिश संक्रमण पर लगाम लगाने की थी। इसके लिए कोविड विशेष अस्पताल बनाए गए। फिर जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता गया, निजी अस्पतालों में भी बेड आरक्षित होने लगे। कोविड के लिए बेड, वेंटिलेटर सहित अन्य संसाधन पूरी तरह से लगा दिए गए। लेकिन अब दूसरी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की समस्या बढ़ने लगी है। इस पर भी हमें ध्यान देना होगा। ह्रदय, किडनी और लिवर के साथ कैंसर मरीजों को भी आपातकालीन और ओपीडी की सेवाओं की जरूरत है। इन्हें अधिक समय तक टाला नहीं जा सकता है। क्योंकि ये भी जानलेवा बीमारियां हैं।
अगर प्राथमिक चरण में ही इन बीमारियों की पहचान हो जाए तो इनका इलाज भी समय से शुरू हो सकता है। अभी राजधानी में कई जगहों पर डायलिसिस सुविधा बंद है। योजनाबद्ध (पूर्व में निर्धारित किए गए) आपरेशन नहीं हो रहे हैं। क्योंकि बड़े आपरेशन सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में ही संभव हैं जिन्हें फिलहाल पूरी तरह से कोविड विशेष बना दिया गया है। इनमें जीटीबी, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी, लोकनायक अस्पताल शामिल हैं। इनके अलावा आरएमएल, एम्स जैसे अस्पतालों में भी योजनाबद्ध आपरेशन नहीं हो पा रहे हैं।
आलम यह है कि कैंसर के मरीज भी आपरेशन के लिए भटक रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। इनके अलावा प्रसव के मामलों में भी दिक्कत आ रही है। स्वामी दयानंद अस्पताल में रोजाना 40 से 50 गर्भवतियों के आपरेशन हो रहे हैं। इसमें भी जो गंभीर स्थिति में आ जाती हैं उन्हें यमुनापार से बाहर दूसरे अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है। अब निजी अस्पतालों में 80 फीसद बेड कोरोना के लिए आरक्षित किए जा रहे हैं। इससे दूसरी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की समस्याएं और बढ़ेंगी। ऐसे में पहली कोशिश होनी चाहिए कि कोरोना और दूसरी बीमारियों के मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सामजस्य बैठाया जाए। हर अस्पताल में इनके इलाज की सुविधा हो।
इसके बाद जिसके मरीज अधिक हों, उसे उसी हिसाब से बेड उपलब्ध कराए जाएं। यह व्यवस्था सरकारी नहीं, निजी अस्पतालों में भी लागू होनी चाहिए। इन अस्पतालों में सभी बीमारियों के लिए इमरजेंसी सेवाएं भी 24 घंटे चलनी चाहिए। इसके साथ कोरोना के अलावा दूसरी बीमारियों से हो रही मौतों का भी रिकार्ड रखा जाए। तभी संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
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