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इंदिरा गांधी के दफ्तर से 5 लोग आधी रात क्यों आए थे ओम के घर, 40 साल बाद खुला राज

एक दिन आधी रात को करीब पांच आदमी साउथ एक्सटेंशन स्थित ओम अरोड़ा के दक्षिण दिल्ली स्थित घर आए। दरवाजा खोला तो पता चला कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से एक निवेदन लेकर आए हैं।

By Jp YadavEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 02:01 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 06:33 PM (IST)
इंदिरा गांधी के दफ्तर से 5 लोग आधी रात क्यों आए थे ओम के घर, 40 साल बाद खुला राज
इंदिरा गांधी के दफ्तर से 5 लोग आधी रात क्यों आए थे ओम के घर, 40 साल बाद खोला राज

नई दिल्ली [रितु राणा]। देश की राजधानी दिल्ली की सबसे चर्चित मार्केट कनाट प्लेस तो घूमते होंगे। घूमते हुए वहां की दुकानों से नजरें भी टकराती होंगी। उन दुकानों के बीच वैरायटी बुक डिपो (वीबीडी) का रुख कभी किया है। अगर नहीं तो एक बार जाकर देखें। अगर आप किताबों के शौकीन हैं खासकर अंग्रेजी किताबों को पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं तो यहां आपकी हर तलाश पूरी हो जाएगी। कनाट प्लेस के एन ब्लाक इनर सर्किल स्थित यह दुकान दिल्ली के सबसे पुराने पुस्तक वितरकों में से एक है। इसकी प्रसिद्धि देशभर में है। राजनेता हों या बड़े सेलिब्रिटी हर किसी की किताबों की तलाश यहां से पूरी होती है। इस दुकान के मालिक ओम अरोड़ा का कहना है कि वर्ष 1982 में एक दिन आधी रात को इंदिरा गांधी के दफ्तर से करीब पांच आदमी साउथ एक्सटेंशन स्थित हमारे घर आए। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी भगवान श्री कृष्ण की पुस्तक की 300 प्रतियां एशियाई खेलों के लिए आए प्रतिनिधियों को भेंट करना चाहती हैं।

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अब तक टिकी टेकचंद की दुकान

वर्ष 1935 में स्वर्गीय टेकचंद ने इस दुकान की शुरुआत की थी। टेकचंद का व्यवसाय पाकिस्तान के कोहाट स्थित छावनी क्षेत्र में एक छोटी सी दुकान से शुरू हुआ था। दुकान के मालिक ओम अरोड़ा की मानें तो बंटवारे के बाद उनके पिता पाकिस्तान से दिल्ली आ गए और 1948 में सबसे पहले बाबा खड़ग सिंह मार्ग में फुटपाथ पर पुस्तकों का एक स्टाल लगाया। उस समय वे भारत में एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें वीमेन एंड होम पत्रिका आयात करने का लाइसेंस दिया गया था। उन्हें लगभग छह हजार प्रतियां मिलती थीं और वे सब तीन-चार दिनों के भीतर बिक भी जाती थीं। वर्ष 1983 में ओम अरोड़ा ने दुकान को कनाट प्लेस में शिफ्ट कर लिया। अब उनके साथ उनके दामाद नकुल अग्रवाल भी यह व्यवसाय संभाल रहे हैं।

यात्रा और वास्तु के लिए लोग खींचे चले आते हैं

दुकान में प्रवेश करते ही रैक से लेकर फर्श तक सिर्फ और सिर्फ किताबें ही नजर आती हैं। यहां स्कूल, बुक सेलर्स, यूनिवर्सिटी, जनरल बुक्स, काफी टेबल, पिक्चर सहित अंग्रेजी पुस्तक और प्रतियोगी किताबों के अलावा करीब 50 हजार से अधिक पुस्तकों का विशाल भंडार है। अगर आप बच्चों के लिए किताबें लेना चाहते हैं तो यह दुकान बिल्कुल उपयुक्त है। यहां वास्तुकला, यात्रा और कला पर काफी-टेबल किताबें लोग ज्यादा पसंद करते हैं। 2006 में प्रकाशित रितु कुमार की कास्ट्यूम्स एंड टेक्सटाइल्स आफ रायल इंडिया उनकी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक है। बीसवीं सदी के सातवें दशक में जेम्स हेडली चेज और पेरी मेसन के उपन्यास और आठ के दशक में मिल्स एंड बूंस से लेकर आर्ची कामिक्स तक की संपूर्ण सूची उनके पास है। वैसे तो ये पूरे भारत में किताबों का वितरण करते हैं, लेकिन अमेरिकन कंपनी आर्ची कामिक्स को ये वर्ष 1971 से ही किताबें वितरित करते हैं।

आधी रात को इंदिरा गांधी ने मंगवाई थी पुस्तकें

ओम कहते हैं 1982 की बात है। एक दिन आधी रात को करीब पांच आदमी साउथ एक्सटेंशन स्थित हमारे घर आए। दरवाजा खोला तो पता चला कि वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से एक निवेदन लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी भगवान श्री कृष्ण की पुस्तक की 300 प्रतियां एशियाई खेलों के लिए आए प्रतिनिधियों को भेंट करना चाहती हैं। फिर कनाट प्लेस जाकर अपने गोदाम से 300 प्रतियां मैंने उन्हें सौंप दीं। दिल्ली के सबसे पुराने वितरकों में से होने के कारण नेता से लेकर बड़े बड़े सेलिब्रिटी तक उन्हें जानते हैं।

खुलने का समय

सोमवार से शनिवार तक सुबह नौ से शाम छह बजे के बीच कभी भी यहां आ सकते हैं। रविवार को अवकाश रहता है।

ऐसे पहुंचे

राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर उतरकर पांच से 10 मिनट में यहां पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा बसों के जरिये यहां पर दिल्ली के किसी भी कोने से पहुंच सकते हैं।

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