बजट पेश करने के दौरान मनीष सिसोदिया ने पढ़ी 110 साल पहले लिखी गई एक अंग्रेजी कविता
पर्यटन कला और संस्कृति से जुड़े कुछ प्रस्ताव सदन में रखने का समय आया तो मनीष सिसोदिया ने मशहूर अंग्रेजी फिल्म डेड पोएट्स सोसायटी के एक दृश्य का जिक्र करते हुए फिल्म के नायक प्रो. जोन कीटिंग का वह कोट भी सुनाया।
नई तिल्ली [संजीव गुप्ता]। वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते समय दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया का एक नया अंदाज भी देखने को मिला। उन्होंने अपने भाषण में कई बार कविताओं की पंक्तियों के साथ देश-दुनिया के प्रमुख लोगों की कही बातों का भी जिक्र किया। एक जगह तो उन्होंने एक अंग्रेजी फिल्म के दृश्य का उदाहरण भी दिया। आजादी के 75वें वर्ष को लेकर देशभक्ति बजट की विशेषताएं बयां करते हुए उन्होंने कहा कि भगत सिंह के प्रेरक जीवन पर कार्यक्रमों के लिए अलग से दस करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, ताकि देश के युवा उनसे प्रेरणा ले सकें। फिर उन्होंने कविता की पंक्तियां पढ़ीं-
हम मरेंगे भी तो, दुनिया में जीने के लिए,
सबको जीना सिखा जाएंगे, मरते-मरते,
ये न समझो भगत फांसी पर लटकाया गया,
सैकड़ों भगत बना जाएंगे, मरते-मरते।
आजाद भारत की रूपरेखा बनाने वाले बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को भी बजट में तव्वजो दी गई है। उनके जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भी दस करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। इस आशय की जानकारी देते हुए भी मनीष सिसोदिया ने कविता की पंक्तियां पढ़ीं -
रुतबा मेरे सिर को, तेरे संविधान से मिला है ये सम्मान भी मुझे तेरे संविधान से मिला है,
औरों को जो मिला है मुकद्दर से मिला है, हमें तो मुकद्दर भी तेरे संविधान से मिला है
स्वास्थ्य सेवाओं का जिक्र करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा कि किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कभी ऐसा दौर आएगा, लेकिन हमारे शायर वक्त से आगे चलते हैं। बशीर बद्र साहेब ने कोरोना के दौर के लिए पहले ही शेर लिख दिया था -
कोई हाथ भी न मिलाएगा, गर गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो
प्रदूषण मुक्त दिल्ली के लिए मौजूदा वाहनों को ई-वाहनों में तब्दील करने की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए सिसोदिया ने 30 जुलाई 1898 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में छपा वह अंग्रेजी विज्ञापन पढ़कर सुनाया, जिसमें घोड़ों की जगह मोटर वाहनों की शुरुआत के पक्ष में लिखा गया था।
पर्यटन, कला और संस्कृति से जुड़े कुछ प्रस्ताव सदन में रखने का समय आया तो मनीष सिसोदिया ने मशहूर अंग्रेजी फिल्म डेड पोएट्स सोसायटी के एक दृश्य का जिक्र करते हुए फिल्म के नायक प्रो. जोन कीटिंग का वह कोट भी सुनाया, जिसमें वह कला-संस्कृति को जीवन के लिए अहम बताते हैं। अंत में मनीष सिसोदिया ने रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा 110 साल पहले लिखी गई एक अंग्रेजी कविता भी पढ़कर सुनाई और उसका हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।
जहां मन हो भय से मुक्त और सर हो फा से ऊंचा
जहां ज्ञान हो मूर्खताओं से आजाद
जहां न हो दुनिया बिखरी हुई और बंटी हुई
संकीर्ण और घटिया सोच की दीवारों के बीच
जहां सच की गहराई से बाहर निकलें शब्द
जहां कोशिशें बिना थके फैलाएं अपनी बाहें
सबसे बेहतरीन को पाने की खातिर
जहां मुर्दा आदतों की सूखी रेत में
उम्मीदों की निर्मल धाराएं न भटकें अपनी राहें
जहां खुले विचार और कर्मों की ओर मन बढ़ता रहे आगे
हे परमपिता परमेश्वर आजादी के उसी स्वर्ग में मेरे देश को जागृत कर।