Move to Jagran APP

Oxygen Emergency: क्या होती है मेडिकल ऑक्सीजन, जिसको लेकर अस्पताल और मरीजों के परिजन दोनों परेशान

Oxygen Emergency कोरोना संक्रमित मरीज को बचाने के लिए मेडिकल ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। उसकी सांसें बंद हो रही होती है तो इसे अस्पताल में आक्सीजन देकर बचाया जाता है। इसकी हर ओर कमी पड़ी हुई है जिसको लेकर हाहाकार मचा हुआ है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 21 Apr 2021 02:36 PM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 01:49 PM (IST)
Oxygen Emergency: क्या होती है मेडिकल ऑक्सीजन, जिसको लेकर अस्पताल और मरीजों के परिजन दोनों परेशान
मेडिकल आक्सीजन के सिलेंडर लोगों के जीवन को बचाने में काम आते हैं।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की हालत काफी गंभीर हो जाती है। ऐसे में उनको अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ता है वहां उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए ऑक्सीजन देनी पड़ती है। ऑक्सीजन के बारे में सुना तो सभी ने होगा मगर बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि ये मेडिकल ऑक्सीजन (Medical Oxygen) होती क्या है। आखिर गंभीर होने पर इसे मरीजों को क्यों देना पड़ता है जबकि वो पहले से ऑक्सीजन ले रहे होते हैं। हम आपको बताते हैं कि आखिर क्यो होती है ये मेडिकल ऑक्सीजन, कैसे बनती है और आखिरी समय में मरीज की जान बचाने के लिए कैसे किया जाता है इस्तेमाल।

loksabha election banner

क्या होती है और कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन (Medical Oxygen)

जानकारी के अनुसार ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद है। हवा में 21 प्रतिशत ऑक्सीजन होती है और 78 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। इसके अलावा एक प्रतिशत अन्य गैसें होती हैं। इनमें हाइड्रोजन, नियोन और कार्बन डाईऑक्साइड भी होती है। पानी में भी ऑक्सीजन होती है। पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा अलग-अलग जगहों पर अलग हो सकती है। 10 लाख मॉलिक्यूल में से ऑक्सीजन के 10 मॉलिक्यूल होते हैं। यही वजह है कि इंसान के लिए पानी में सांस लेना कठिन है, लेकिन मछलियों के लिए आसान।

प्लांट में कर देते हैं ऑक्सीजन अलग

ऑक्सीजन प्लांट में, हवा में से ऑक्सीजन को अलग कर लिया जाता है। इसके लिए एयर सेपरेशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। यानि हवा को कंप्रेस किया जाता है और फिर फिल्टर किया जाता है ताकि अशुद्धियां उसमें से निकल जाएं। अब इस फिल्टर हुई हवा को ठंडा किया जाता है। इसके बाद इस हवा को डिस्टिल किया जाता है ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन लिक्विड बन जाती है और इसी स्थिति में ही उसे इकट्ठा किया जाता है। आजकल एक पोर्टेबल मशीन आती है, जिसको मरीज के पास रख दिया जाता है। ये मशीन हवा से ऑक्सीजन को अलग करके मरीज तक पहुंचाती रहती है।

कैप्सूलनुमा टैंकर से पहुंचती है अस्पताल

मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े से कैप्सूलनुमा टैंकर में भरकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। अस्पताल में इसे मरीजों तक पहुंच रहे पाइप्स से जोड़ दिया जाता है लेकिन हर अस्पताल में तो ये सुविधा होती नहीं है। इसी वजह से अस्पतालों के लिए इस तरह के सिलेंडर बनाए जाते हैं। इन सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरी जाती है और इनको सीधे मरीज के बिस्तर के पास तक पहुंचाया जाता है।

देश में मेडिकल ऑक्सीजन की स्थिति

देश में मेडिकल ऑक्सीजन के 10-12 ही बड़े निर्माता हैं और 500 से अधिक छोटे गैस प्लांट में इन्हें बनाया जाता है। जानकारी के अनुसार गुजरात का आईनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स भारत में मेडिकल ऑक्सीजन का सबसे बड़ा निर्माता है। इन दिनों जब देश में मेडिकल आक्सीजन की कमी पड़ी है तो सुप्रीम कोर्ट ने भी आइनाक्स को लगातार इसे उत्पादित करने के निर्देश दिए हैं जिससे कमी न पड़ने पाए। इसके बाद दिल्ली स्थित गोयल एमजी गैसेस, कोलकाता के लिंडे इंडिया और चेन्नई का नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड शामिल हैं। अब कोरोना के मामले बढ़ने से ऑक्सीजन की मांग तेजी से बढ़ रही है। कई राज्यों में ऑक्सीजन की कमी की खबरों के बीच केंद्र सरकार इसकी सप्लाई के लिए उद्योग जगत से बात की है।

आवश्यक दवाओं में शामिल

यह एक आवश्यक दवा है इस वजह से इसे साल 2015 में जारी अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया है। इसे हेल्थकेयर के तीन लेवल- प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शीयरी​ के लिए आवश्यक करार दिया गया है। यह WHO की भी आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल है। प्रोडक्ट लेवल पर मेडिकल ऑक्सीजन का मतलब 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन होता है, जिसमें नमी, धूल या दूसरी गैस जैसी अशुद्धि न हों।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.