दिल्ली-एनसीआर के सुधार गृहों में क्या है सुरक्षा के इंतजामात, जानें आंकड़ों की जुबानी
आश्रय और सुधार गृहों को संचालित करने की अनुमति तो दे दी जाती है पर वहां बच्चे कैसे हाल में रहते हैं उनके साथ किस तरह का बर्ताव हो रहा है इसकी निगरानी में सख्ती क्यों नहीं बरती जाती?
नई दिल्ली, जेएनएन। उम्मीद अमन होम, खुशी रेनबो होम.. ऐसे आकृष्ट करते नामों में एक सुधार की किरण नजर आती है। लेकिन हालात बिलकुल इसके विपरीत होते हैं। इससे बड़ी व्यथा क्या होगी कि ऐसे ही नामों से संचालित हो रहे सुधार गृहों और आश्रय गृहों में रह रहे किशोर-किशोरियों को नागरिक कानून संशोधन बिल के लिए हुए धरने की जमात में जबरन ले जाकर बैठा दिया गया था। और तो और यहां बच्चों का यौन शोषण हो रहा था।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा इन बाल सुधार केंद्रों का ढांचा, उसका स्वरूप बाल सुधार के अनुकूल तैयार किया गया है। लेकिन अक्सर जिन संस्थाओं द्वारा इनका संचालन होता है वे सामाजिक सरोकार की आड़ में बच्चों का गलत कामों में इस्तेमाल करती हैं, उन्हें अपराध की दलदल में धकेलती हैं। भटके हुए या किसी वजह से घर परिवार से बिछड़े बच्चों को, अपराध के दलदल में फंसे किशोरों को इन शिक्षा-दीक्षा व संस्कारों से पल्लवित करने, मानसिक विकास हेतु जिस मंशा के साथ सुधार गृह में रखा जाता है, वहां वैसा नहीं होता जैसा सोचा जाता है। उसके सिवाय बाकी सब होता है। अव्यवस्था अपने चरम पर रहती है।
गौतमबुद्ध नगर के हालात तो ऐसे बदतर हैं कि यहां सुधार गृह की क्षमता 100 ही है लेकिन उससे दोगुनी संख्या में किशोर-किशोरियों को रखा गया है। सोचिये वहां उनके रखरखाव पर कितना बड़ा प्रश्नचिन्ह है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन बाल गृहों में अनियमितता और अव्यवस्था की शिकायत मिलती है उन पर कठोर कार्रवाई क्यों नहीं होती? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है:
अव्यवस्थाओं के आश्रय स्थल: किशोर-किशोरियों को अपराध अथवा गुमनामी के दलदल से बाहर निकाल कर उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और बेहतर नागरिक बनाने के लिए बाल सुधार व बाल आश्रय गृहों में रखा जाता है। लेकिन यहां उन्हें बेहतर इंसान बनाने अथवा उनके जीवन स्तर पर में सुधार लाने के लिए जोप्रविधान बने हुए हैं उनका किस हद तक पालन होता है ये किशोर-किशोरियों के सुधार गृहों से भागने और उनके शोषण की खबरों से पता चलता है। दिल्ली-एनसीआर के सुधार गृहों में क्या हैं सुरक्षा के इंतजामात, स्वास्थ्य और शिक्षा से लेकर अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए कैसी है व्यवस्था, नियमों के पालन में कहां है खामी जानेंगे आंकड़ों की जुबानी :
सुरक्षा के प्रविधान
- जेजे एक्ट 2015 के अनुसार सभी सरकारी और गैर सरकारी बाल गृहों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए
- बालक-बालिकाओं के अनुपात में पर्याप्त संख्या में सुरक्षा गार्ड, मुख्य परिचारिका आदि की हो तैनाती
- सुरक्षा के लिहाज से सभी बाल गृहों में लगे हों सीसीटीवी
क्या है व्यवस्था
- हर बाल गृह में है एक कमेटी, जिसमें जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, महिला एवं बाल विकास विभाग, बाल गृह अधीक्षक और बच्चे होते हैं शामिल
- बच्चे अधीक्षक को बताई जाती है समस्या
- अधीक्षक समस्या के निवारण के लिए बाल कल्याण समिति, महिला एवं बाल विकास विभाग, जिला बाल संरक्षण इकाई और पुलिस को देते हैं रिपोर्ट
फिर कहां है खामी
- डीसीपीसीआर द्वारा निगरानी के लिए दो साल पहले बनाई गई जिला स्तरीय कमेटी अब हो चुकी है भंग
- निगरानी के अभाव में कर्मचारी नियमों की करते हैं अनदेखी
- सुविधाओं के क्रियान्वयन में बरती जा रही है लापरवाही काउंर्संलग की व्यवस्था
- बाल कल्याण समिति के आदेश पर बाल गृह लंबे समय तक रहने वाले बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए स्कूल में दिलाते हैं दाखिला
- कुछ समय के लिए आए बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा के सहारे किया जाता है शिक्षित
- बच्चों के सामाजिक व मानसिक विकास के लिए काउंसलर की भी है व्यवस्था
सुधार गृहों में हुई घटनाएं
जनवरी 2021 : किंग्सवे कैंप स्थित बाल सुधार गृह में हाउस फादर और नशा मुक्ति केंद्र के केयर टेकर की पिटाई कर छह नाबालिग हुए फरार।
फरवरी 2021 : पुलिस ने महरौली में बाल सुधार गृह चलाने वाली दो संस्थाओं के खिलाफ दर्ज किया मुकदमा। वहां बच्चे और बच्चियों के साथ हो रहा था यौन शोषण। आतंकी संगठन से फंड लेने का भी है आरोप।
अगस्त 2020 : नोएडा में आइसोलेशन वार्ड की जाली तोड़कर तीन किशोर सुधार गृह से हो गए थे फरार।
सितंबर 2018 : शौचालय की जाली तोड़कर नोएडा से तीन किशोर सुधार गृह से भाग निकले थे।