कोरोना संक्रमित होने पर आइसीयू में थे भर्ती, अब हो गए ब्लैक फंगस के शिकार, दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती जा रही मरीजों की संख्या, स्थिति चिंताजनक
इस बीमारी के मरीज कोरोना की पहली लहर में भी मिले थे। इसलिए दवाई की कमी नहीं हुई। बीमारी पहले की तरह ही अधिकतर डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित मरीजों को ही हो रही है। अधिकांश वे मरीज हैं जो कोरोना संक्रमित होने पर आइसीयू में भर्ती रहे हैं
नई दिल्ली, [राहुल चौहान]। कोरोना संकट के साथ ही राजधानी दिल्ली सहित एनसीआर में म्यूकोरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। डाक्टरों के मुताबिक इलाज में देरी होने पर इस बीमारी से बचना मुश्किल होता है। दिल्ली सहित एनसीआर के अस्पतालों में अभी तक करीब 350 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इससे ब्लैक फंगस को लेकर स्थिति चिंताजनक हो गई है। डाक्टरों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में मरीज भर्ती होने से दवाई की भी कमी हो गई है। इसलिए म्यूकोरमायकोसिस से निपटना चुनौतीपूर्ण हो गया है। इस बीमारी से हाल ही में कई मरीजों की मौत भी हो चुकी है।
हालांकि इस बीमारी के मरीज कोरोना की पहली लहर में भी मिले थे। लेकिन तब उनकी संख्या कम थी। इसलिए दवाई की कमी नहीं हुई। बीमारी पहले की तरह ही अधिकतर डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित मरीजों को ही हो रही है। इनमें अधिकांश वे मरीज हैं जो कोरोना संक्रमित होने पर आइसीयू में भर्ती रहे हैं या उन्हें ज्यादा स्टेरायड दिया गया है। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है। आज भी यह बीमारी उन्हीं मरीजों को हो रही है जिनकी डायबिटीज या कोरोना संक्रमित होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। बीमारी के लक्षण के तौर पर नाक से खून के साथ पानी गिरना, आधे सिर में दर्द रहना, नाक और आंख में सूजन, दांत में दर्द आदि होते हैं।
एम्स में नाक, कान, गला (ईएनटी) विभाग के विभागाध्यक्ष डा आलोक ठक्कर का कहना है कि इस बीमारी के लिए सही शब्द म्यूकोरमायकोसिस ही है। ब्लैक फंगस सही शब्द नहीं है। उनका कहना है इससे पहले म्यूकोरमायकोसिस के साल भर में 20-25 मामले आते थे। लेकिन फिलहाल एक सप्ताह में ही 100 से ज्यादा मरीज एम्स में आ चुके हैं। प्रतिदिन 20-25 मरीजों को देख रहे हैं। इनमें अधिकतर मरीजों की डायबिटीज अनियंत्रित है। साथ ही इन्होंने स्टेरायड का ज्यादा सेवन किया है। इन सभी का यहां इलाज चल रहा है। वहीं, तीन मरीजों के दिमाग तक बीमारी पहुंच गई तो उनकी भी सर्जरी की तैयारी की जा रही है। इस बीमारी के इलाज में कम से कम एक महीने का समय लगता है।
यह बीमारी नाक से शुरू होकर आंख और फिर मस्तिष्क में पहुंचती है। नाक और आंख तक पहुंचने तक मरीज के ठीक होने की पूरी संभावना होती है। लेकिन मस्तिष्क में पहुंचने पर बहुत कम संभावना रह जाती है। डाक्टर ठक्कर ने बताया कि म्यूकोरमायकोसिस के इलाज में अधिकतर इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है। पहले कम मरीज आने के चलते इंजेक्शन की मांग कम होती थी। इसलिए उत्पादन भी कम होता था लेकिन अब अचानक मरीज बढ़ने से इंजेक्शन की मांग बढ़ी है। इस वजह से बाजार में इंजेक्शन की कमी है। लेकिन अब कंपनियों द्वारा इंजेक्शन का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है तो जल्दी ही इंजेक्शन की कमी दूर हो जाएगी।
वहीं, सर गंगाराम अस्पताल में ईएनटी के विभाग के चेयरमैन डा अजय स्वरूप ने बताया कि उनके यहां अभी तक ब्लैक फंगस के 60 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इनमें से 40 की सर्जरी की जा चुकी है। अधिकतर मरीजों की नाक और आंख की सर्जरी हुई है। डा स्वरूप ने बताया कि इस बीमारी के अधिकतर मामलों में सर्जरी करनी ही पड़ती है। उन्होंने यह भी बताया कि ब्लैक फंगस के इलाज के लिए सिर्फ एम्फोटेरिसिन-बी नाम का इंजेक्शन ही इस्तेमाल होता है। इसके अलावा और कोई दवाई नहीं है। फिलहाल मामले बढ़ने से इसकी काफी कमी है। बड़ा अस्पताल होने के कारण गंगाराम में कुछ स्टाक था। इस वजह से अभी तक मरीजों के इलाज में कोई परेशानी नहीं हुई है।
हालांकि, बाजार में और छोटे अस्पतालों में इंजेक्शन की काफी कमी है। अब सरकार एक फार्मूले के तहत अस्पतालों को इंजेक्शन उपलब्ध कराने के लिए कदम उठा रही है। ब्लैक फंगस के एक मरीज को कम से कम इंजेक्शन के सात डोज देने पड़ते हैं। एक इंजेक्शन की कीमत चार से सात हजार रुपये तक होती है। इसलिए इसका इलाज काफी महंगा है।
वहीं, आकाश हेल्थकेयर के चिकित्सा निदेशक डा आशीष चौधरी का कहना है कि उनके यहां दिल्ली से बाहर के रेफर्ड किए गए गंभीर मरीज ज्यादा आ रहे हैं। इनमें हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मरीज शामिल हैं। ये वे मरीज हैं जो कोरोना संक्रमित होने पर छोटे अस्पतालों में इलाज कराके ठीक हुए। फिर घर पर रहने के एक दो सप्ताह के बाद इनमें ब्लैक फंगस के लक्षण दिखने पर इन्हें हमारे यहां रेफर किया गया।
केस स्टडी- दिल्ली
दिल्ली के द्वारका स्थित आकाश अस्पताल में ईएनटी के विभागध्यक्ष डा अभिनीत कुमार ने बताया कि उनके यहां अभी तक म्यूकोरमायकोसिस के तीन मरीज भर्ती हुए हैं। इनमें से एक महिला मरीज 60 साल से अधिक उम्र की थीं। उनको कोरोना संक्रमित रहने के दौरान ही ब्लैक फंगस की बीमारी हो गई। उनका डायबिटीज भी पहले से अनियंत्रित था। इस वजह से उनकी मौत हो गई।
वहीं, दो अन्य मरीजों का इलाज चल रहा है। इनमें से दोनों को डायबिटीज है। साथ ही इन्हें कोरोना नेगेटिव होने के बाद बीमारी हुई है। एक की आंख तक फंगस पहुंचने के कारण सर्जरी कर एक आंख निकाल दी गई है। वहीं, दूसरे मरीज की सर्जरी कर फंगस का लोड कम किया गया है। अब इंजेक्शन के माध्यम से बचे हुए फंगस को हटाया जा रहा है। दोनों मरीजों को ठीक होने में करीब दो महीने का समय लगेगा।
नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम में भी ब्लैक फंगस के मामले
दिल्ली के साथ ही एनसीआर के अन्य शहरों में भी म्यूकोरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले सामने आए हैं। इनमें कई मरीजों की मौत भी हुई है। नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद व गुरुग्राम में अभी तक ब्लैक फंगस के कुल 137 मामले का चुके हैं। इनमें से नोएडा में चार, गुरुग्राम में दो और फरीदाबाद में एक मरीज की मौत भी हो चुकी है। हालांकि, प्रशासन ने इन मरीजों की ब्लैक फंगस से मौत की पुष्टि नहीं की है। जबकि गुरुग्राम में 25 और फरीदाबाद में छह व मरीज ठीक हुए। बाकी चारों शहरों में अन्य मरीजों का विभिन्न अस्पतालों में इलाज चल रहा है। इनमें आठ का इलाज नोएडा व ग्रेटर नोएडा के यथार्थ अस्पताल, तो वहीं एक मरीज का इलाज सेक्टर-51 के नियो अस्पताल में चल रहा है।
पहले नोएडा में सिर्फ कैलाश, यथार्थ, जेपी, फोर्टिस, मैक्स, अपोलो समेत अन्य निजी अस्पतालों में ही ब्लैक फंगस के इलाज की सुविधा मिल रही थी, लेकिन अब सरकारी अस्पताल में भी इलाज की सुविधा शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जबकि फरीदाबाद के एसएसबी मल्टीस्पेशलिटी, गुरुग्राम के फोर्टिस और गाजियाबाद के हर्ष पालिक्लिनिक में अधिकतर मरीजों का इलाज हो रहा है।
केस स्टडी-1
पहले कोरोना फिर ब्लैक फंगस की चपेट में आई अलवर निवासी महिला को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में रविवार को भर्ती किया गया था। मंगलवार को महिला की मौत हो गई। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि महिला ब्लैक फंगस से भी पीडि़त थी पर मौत हार्ट अटैक से हुई। सिविल सर्जन डा विरेंद्र यादव ने कहा कि सभी अस्पतालों को आदेश जारी किए गए हैं कि कोरोना मरीज का इलाज करने के साथ ब्लैक फंगस बीमारी के लक्षणों का ध्यान रखा जाए। उन मरीजों का अधिक ध्यान रखा जाए, जो वेंटिलेटर पर व आइसीयू में भर्ती है। क्योंकि जिस मरीज को लंबे समय तक आक्सीजन दी जा रही है उसे ब्लैक फंगस बीमारी होने का खतरा अधिक है।
केस स्टडी-2
फरीदाबाद के एसएसबी मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल के ईएनटी विशेषज्ञ डा प्रशांत भारद्वाज ने बताया कि एक 68 वर्षीय महिला में 26 अप्रैल को कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी। वह घर पर ही इलाज ले रही थी और डाक्टर की सलाह पर स्टेरायड ले रही थी। उनकी शुगर भी बढ़ी हुई थी। उन्हें शुरूआत में कम दिखाई देने लगा, कान सुन्न रहता था। इसके बाद नाक से खून भी निकलने लगा। 11 मई को अस्पताल पहुंची। जांच के दौरान ब्लैक फंगस की पुष्टि हुई। फंगस की वजह से दाहिने मैक्सिलरी साइनस की हड्डी को हटाया गया है। अभी उन्हें मानिटर किया जा रहा है।
केस स्टडी-3
गाजियाबाद के हापुड़ रोड स्थित हैदरनगर निवासी मुकेश को ब्लैक फंगस हो गया। आंख के पास सूजन आने पर उनका बेटा शैंकी तुरंत ईएनटी विशेषज्ञ के पास पहुंचा। इस पर डाक्टर ने मरीज के आपरेशन की तैयारी शुरू कर दी। 41 वर्षीय मुकेश एक महीने पहले संक्रमित हो गए थे और दवाओं का सेवन करने के बाद ठीक हो गए। शुगर बढ़ने पर शरीर में सूजन फैलने लगी। आंख पर सूजन के साथ काला उभार आया तो चिकित्सक के पास पहुंचे। चिकित्सक बृजपाल त्यागी का कहना है कि समय पर आपरेशन करना ही इसका बचाव है।