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बढ़ती जनसंख्या की वजह से दिल्ली में पानी की समस्या गंभीर, जल निकायों को किया जाए विकसित

Water Crisis in Delhi राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की निरंतर बढ़ती जनसंख्या के बीच हमें यह भी जानना चाहिए कि सभी तक पेयजल पहुंचाने की दिशा में हम कितना आगे बढ़ पाए हैं ताकि इसका समुचित समाधान हो सके।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 12:44 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 12:44 PM (IST)
बढ़ती जनसंख्या की वजह से दिल्ली में पानी की समस्या गंभीर, जल निकायों को किया जाए विकसित
जल संरक्षण की दिशा में जागरूक बने।

अजीत कुमार। दिल्ली में जल संकट वैसे तो हर वर्ष गर्मी की समस्या है, पर इसका दुष्प्रभाव साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि बढ़ती जनसंख्या की वजह से दिल्ली में पानी की समस्या गंभीर होती जा रही है। अगर हम आंकड़ों पर गौर करें तो यह बात काफी हद तक सच भी है। जैसे दिल्ली की जनसंख्या में बीते दो दशकों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। परंतु केवल जनसंख्या में वृद्धि ही दिल्ली में साल दर साल गहराते जल संकट का कारण नहीं है।

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विश्व के किसी भी शहर एवं खासकर राजधानी क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, पर इससे उपजने वाली विभिन्न समस्याओं एवं जल संकट का मूल आबादी की बजाय, आबादी द्वारा चुनी गई सरकार एवं उसके लिए कार्य करने वाली संस्थाएं हैं, जोकि जीवन के मूल तत्वों में से एक जल भी उपलब्ध नहीं करवा पाती है।

दिल्लीवासियों को जलापूर्ति करने की मुख्य जिम्मेदारी दिल्ली जल बोर्ड की है, जो दिल्ली सरकार के अंतर्गत है। अत: अपनी भूमिकाओं को समझते हुए वर्तमान सरकार ने इसके लिए कुछ प्रमुख कदम भी उठाए, जिसके अंतर्गत दिल्ली के प्रत्येक घरों में 700 लीटर मुफ्त पानी की व्यवस्था की गई। परंतु इसके बावजूद दिल्लीवासियों को दैनिक स्तर पर पानी की अनुपलब्धता एवं गंदे पानी से दो चार होना पड़ता है।

दिल्ली के ज्यादा से ज्यादा घरों में जलापूर्ति के लिए दिल्ली सरकार ने ‘दिल्ली स्लम एंड जेजे रिहैबिलिटेशन एंड रीलोकेशन पालिसी 2015’ को अनुमति प्रदान की ताकि इन क्षेत्रों में विभिन्न वित्तीय फंडों के द्वारा पाइप लाइन के माध्यम से जलापूर्ति की व्यवस्था करवाई जा सके। साथ ही सरकार ने ऐसे वाटर टिटमेंट प्लांट को भी आरंभ करने का निर्णय लिया जो लंबे समय से काम नहीं कर रहे थे या किसी कारणवश बंद थे। इनके आधुनिकीकरण पर भी जोर दिया गया। अन्य राज्यों पर निर्भरता को कम करने एवं भूजल स्तर में वृद्धि करने के लिए ‘सिटी आफ लेक’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई, जिसके तहत झील, बावरियों आदि के पुनरुत्थान पर जोर दिया गया। यमुना के जलग्रहण क्षेत्रों में जल संग्रहणीय झीलों व तालाबों को विकसित करने की भी योजनाएं बनाई गई, ताकि भूजल का स्तर बढ़ सके एवं दिल्ली सरकार दिल्ली में जल स्वराज लाने में सफल हो सके। ये सभी प्रयास वर्तमान की जल संकट के स्थिति के मद्देनजर फिलहाल तो जुमला की भांति ही प्रतीत हो रहे हैं।

इन सभी से इतर दिल्ली को जल स्वराज की ओर ले जाने के लिए इस प्रकार के कुछ प्रयासों को अमल में लाया जा सकता है। नए सिरे से आकलन करने की आवश्यकता है ताकि राजधानी में पानी की उपलब्धता, विभिन्न स्तरों पर खपत, जल गुणवत्ता समेत सभी अन्य आयामों की जानकारी मिल सके। पानी के वितरण एवं प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं को बनाने में इससे काफी मदद मिल सकती है। पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर एक समग्र बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा। उपयोग किए जा चुके पानी को दोबारा से उपयोग में लाए जाने लायक बनाने के लिए भी नई तकनीकों के साथ काम करना चाहिए।

दिल्ली के कई क्षेत्रों में अभी तक सीवेज की व्यवस्था नहीं है जिसे दूर करने की आवश्यकता है। संबंधित अधिकारियों की कार्य स्थिति एवं उनकी क्षमता के साथ ही जलापूर्ति से जुड़ी एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के साथ ही संबंधित बुनियादी ढांचे के समग्र रखरखाव आदि पर भी विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह काम केवल अकेले सरकार के बूते का नहीं है, इसलिए सभी व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह जल संरक्षण की दिशा में जागरूक बने।

[शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय]


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