बॉलीवुड के किस एक्टर को पसंद हैं पहाड़गंज के लजीज छोले-भटूरे, खोले दिल्ली को लेकर कई राज
विंदू दारा सिंह अब एक टेक थियेटर से बतौर प्रोड्यूसर बने हैं। हाल ही में उनके हास्य नाटक 'गोलमाल-द प्ले' ने दिल्ली को खूब गुदगुदाया।
नई दिल्ली (जेएनएन)। फिल्मी जगत के बड़े-बड़े धुरंधरों ने अपने संघर्ष को यहीं दिल्ली के सबसे नाट्य गढ़ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय यानी एनएसडी में ही पटकनी दी। मतलब फिल्मी दुनिया के हर चमकते सितारे ने बॉलीवुड यानी मुंबई की दुनिया में चमक बिखेरने का हुनर यहीं से सीखा। हर सितारा फिर यहां से सीधे मुंबई जाकर ही अपने अभिनय की चमक बिखेरता है। कभी-कभार भूले-भटके साल भर में एकआध नाटक अपने जुड़ाव की रस्म अदायगी करता है। लेकिन विंदू दारा सिंह फिल्मी दुनिया में खुद को आजमाने के बाद अब एक टेक थियेटर से बतौर प्रोड्यूसर दे रहे हैं। हाल ही में उनके हास्य नाटक 'गोलमाल-द प्ले' ने दिल्ली को खूब गुदगुदाया। हंसी की चिकोटी ऐसी थी कि बीते शनिवार को कमानी आडिटोरियम शो हाउसफुल रहा। दिल्ली के इस प्यार को और अपने इस न्यू टेक से जुड़ी कई बातें विंदू दारा सिंह ने दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता संजीव कुमार मिश्र से साझा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
1.दिल्ली में शो हाउसफुल रहा। बतौर प्रोड्यूसर पहले शो का अनुभव कैसा रहा?
-यह नाटक हास्य के जरिए शिक्षा व्यवस्था की आंख खोलने वाली तस्वीर लोगों के सामने पेश करती है। कहानी एक बच्चे के स्कूल में दाखिला कराने के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है। बच्चे के दाखिले के लिए अभिभावकों को गजब पापड़ बेलने पड़ते हैं। मेरी दिली ख्वाहिश थी कि मंडी हाउस में शो हो, क्योंकि मंडी हाउस थियेटर का गढ़ है और थियेटर दिल्ली का पहला प्यार है ये किसी से छिपा नहीं है। दिल्ली में हाउसफुल शो के बाद हम उत्साहित हैं। हम जुलाई में लगातार तीन दिनों तक दिल्ली-नोएडा-गुरुग्राम में नाटक मंचन की योजना बना रहे हैं। इसके लिए मारवाह स्टूडियो, कमानी और श्रीराम ऑडिटोरियम से लगातार संपर्क में हैं।
3.क्या यह सच है कि दिल्ली में मंचन के 12 दिन पहले ही डेट तय हुई थी? नाटक के स्टार कास्ट की प्रतिक्रिया क्या थी?
-जी हां, यह बिल्कुल सच है। 12 दिन पहले ही दिल्ली में नाटक के मंचन की योजना बनी। अब जरा सोचिए कि उस समय एक प्रोड्यूसर के दिमाग में क्या चल रहा होगा। मैंने यूनिट को बताया तो लगभग सभी ने एक स्वर में कहा कि विंदू लॉस ना करियो, बहुत महंगा पड़ेगा। लेकिन मंडी हाउस में शो को लेकर मैं उत्साहित था। मैंने अपने दोस्तों को फोन किया उन्हें सारी बात बताई। बस फिर क्या था किसी ने कलाकारों के रहने का इंतजाम किया तो किसी दोस्त ने आने और खाने की व्यवस्था की। इस तरह दिल्ली में कम समय में नाटक का मंचन मुमकिन हो सका।
3.आपकी जिंदगी का फलसफा क्या है?
-देखिए, जिंदगी कभी रुकती नहीं है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप जिंदगी को कैसे देखते हैं। अब यदि दूसरे की बीएमडब्ल्यू, ऑडी देखेंगे तो कभी खुश नहीं रह सकेंगे। इसलिए यह कोशिश करिए कि ऊपरवाले ने जो जिंदगी दी है उसे हंसते हुए जिएं। एक गरीब का बच्चा जो सड़क पर भीख मांग रहा है वो हमसे ज्यादा खुश दिखाई देता है। इसलिए यह जिंदगी जीने के अपने तरीके पर निर्भर करता है।
4.'गोलमाल द प्ले' के मंचन में पूरी टीम जुटी है? तो क्या पुरानी दिल्ली की रामलीला में इस बार आप नजर नहीं आएंगे?
-हम रामलीला कैसे छोड़ देंगे। सभी कलाकार पुरानी दिल्ली की रामलीला में जरूर हिस्सा लेंगे। दरअसल, यह रामलीला मुझे मेरी दिल्ली से जोड़े रखती है। दिल्ली मेरे दिल के करीब है। हौजखास में हमारा बहुत बड़ा बंगला था। गर्मी की छुट्टियों में हम यहीं आकर रहते थे। फिर उसे तोड़कर एक फ्लैट बनाया गया। बाद में उसे बेचकर हम चंडीगढ़ में सैटल हो गए। लेकिन आज भी पुरानी दिल्ली की रामलीला के बहाने दिल्ली से मेरा जुड़ाव रहता है। मैं जब भी दिल्ली आता हूं तो पंडारा रोड जाकर खाना जरूर पसंद करता हूं। पुरानी दिल्ली में वैष्णव शाकाहारी होटल का खाना बेहद पसंद है। पुरानी दिल्ली में पाइनएप्पल मिलता है, जिसे मैं किसी को भेज कर खास तौर से मंगवाता हूं। पाइनएप्पल के अंदर वे लोग पता नहीं कौन-सा मसाला डालते हैं जो मेरे दिल को छू जाता है। पहाड़गंज के छोले-भटूरे खूब पसंद है।