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कोरोना के कारण थम गया गांधीवादी मुसद्दीलाल गुप्ता का 'चरखा', 78 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

गांधीवादी मुसद्दीलाल लाल गुप्ता (78 वर्ष) का कोरोना संक्रमण से निधन हो गया। लाकडाउन से पहले तक वे घर के पास स्थित डीयर पार्क में जाकर चरखा चलाते थे। एक छोटा पोर्टेबल चरखा हमेशा अपने पास रखते थे।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 27 May 2021 07:29 PM (IST)Updated: Thu, 27 May 2021 07:29 PM (IST)
कोरोना के कारण थम गया गांधीवादी मुसद्दीलाल गुप्ता का 'चरखा', 78 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
गांधीवादी मुसद्दीलाल लाल गुप्ता की फाइल फोटोः जागरण

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। चरखा चलाने व खुद के सिले कपड़े पहनने वाले गांधीवादी मुसद्दीलाल लाल गुप्ता (78 वर्ष) का कोरोना संक्रमण से निधन हो गया। मुसद्दीलाल अपने तीन बेटों-बहुओं व छह पोते-पोतियों के साथ सफदरजंग एन्क्लेव में रहते थे। पहली मई को कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन लंबे संघर्ष के बाद सोमवार को उनका निधन हो गया। अगले ही दिन यानी मंगलवार को उनका जन्मदिन था। मुसद्दीलाल ने अन्ना आंदोलन, यमुना बचाओ यात्रा समेत कई आंदोलनों में भाग लिया था। गोहत्या के विरोध में वे जंतर-मंतर पर 2011 से 2018 तक धरने पर बैठे और चरखा चलाते रहे।

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आंदोलनों के दौरान वे नारेबाजी करने के बजाय शांति से अपना चरखा चलाकर संदेश देते थे। मूलरूप से राजस्थान के अलवर जिले के निवासी व महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित मुसद्दीलाल कैग में अकाउंट आफिसर के पद से रिटायर हुए थे। उनकी बहू कल्पना खंडेलवाल ने बताया कि वे बचपन से ही गोसेवा में जुटे थे। ग्वालियर में तैनाती के दौरान उन्होंने छह-सात गाय पाल रखी थीं। शाम को आफिस से लौटने के बाद वे गायों की सेवा में जुट जाते थे।

गायों के लिए खुद ही अनाज पीसते थे और हरा चारा काटते थे। 78 साल की आयु में भी वे रोजाना सुबह चार बजे उठते थे। व्यायाम व वाक करने के बाद वे सुबह पांच बजे चरखा चलाने बैठ जाते थे। कल्पना ने बताया कि चरखा कातकर जो सूत तैयार होता था उसे वे महाराष्ट्र के वर्धा जिले के नलवाड़ी गांव स्थित ग्राम सेवा मंडल भेजते थे। वहां से उन्हें इससे कपड़ा बुनकर भेज दिया जाता था। उसे दर्जी से कटवाकर खुद अपने हाथों से सिलकर पहनते थे। उन्होंने पूरे जीवन खुद तैयार किए गए सूत से बुने कपड़े ही पहने।

लाकडाउन से पहले तक वे घर के पास स्थित डीयर पार्क में जाकर चरखा चलाते थे। एक छोटा पोर्टेबल चरखा हमेशा अपने पास रखते थे। वे घर में एक हथकरघा भी लगाना चाहते थे, ताकि खुद ही कपड़ा बुन लें, लेकिन घर काफी छोटा होने के कारण यह संभव नहीं हो सका।

कल्पना ने बताया कि पहली मई को उन्हें सर्दी, खांसी व बुखार की शिकायत होने पर सीजीएचएस डिस्पेंसरी में कोरोना की आरटीपीसीआर जांच कराई गई तो वे कोरोना नेगेटिव निकले, लेकिन दो दिन बाद ही उनका आक्सीजन लेवल गिरने लगा। काफी प्रयास के बाद दिल्ली में बेड न मिलने पर उन्हें अलवर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया तो जांच में उनकी कोरोना की रिपोर्ट पाजिटिव आई। पता चला कि उन्हें गंभीर कोविड निमोनिया हो गया है। इलाज के दौरान 24 मई को उनका निधन हो गया।


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