एक बार फिर चर्चा में आया अर्बन नक्सल, जानें- कहां से आया ये शब्द और क्या है इसका मतलब
लंबे खिंचते जा रहे किसान आंदोलन को लेकर अब चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं। सरकार चर्चा के लिए तैयार है फिर भी गतिरोध जारी है। आंदोलन को मिल रही फंडिंग और बाहरी मदद के चलते एक बार फिर अर्बन नक्सल की चर्चा जोरों से चल पड़ी है।
जेएनएन, नई दिल्ली। 1967 में पश्चिम बंगाल के एक गांव नक्सलबाड़ी में जमींदारों के खिलाफ हथियारबंद आंदोलन हुआ था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम से अलग हुए एक धड़े ने नक्सल मूवमेंट के जनक माने जाने वाले चारू मजूमदार के नेतृत्व में यह संघर्ष चलाया था। उनका मानना था सीपीएम राजनीति इच्छा को लेकर मकसद से भटक गई है। बाद में नक्सलबाड़ी आंदोलन का दमन हो गया। हालांकि इस विचारधार से जुड़े लोग नक्सल कहलाए। वे खुद को नक्सलवादी धारा से जुड़ा मानते थे, इसलिए उन्हें नक्सल कहा गया।
2004 के डॉक्युमेंट के मुताबिक में सामने आई रणनीति : 2004 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) का एक दस्तावेज आया। इसमें अर्बन प्रॉसपेक्टिव शब्द का उल्लेख किया गया और इसकी व्याख्या की गई। रणनीति के तहत शहरी क्षेत्रों में नेतृत्व तलाशने की कोशिश की जाती है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि माओवादी शहरों में अपना नेतृत्व तलाश रहे हैं।
विवेक अग्निहोत्री की पुस्तक : 2017 में मशहूर फिल्म डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने एक आर्टिकल लिखा। जिसमें अर्बन नक्सल शब्द का इस्तेमाल किया था। उसके बाद इसी नाम से पुस्तक लिखी। उद्घाटन के दौरान यह बात सामने आई कि दुनिया में मौजूद कम से कम 21 ऐसे संगठन हैं जो भारत में शिक्षाविदों की शक्ल में लोगों को भेजते हैं, जो माओवादी का अध्ययन कर अपने देश लौट जाते हैं। वे माओवाद का समर्थन करने के साथ-साथ उनकी फंडिंग का भी ध्यान रखते हैं।
2018 में पुणो पुलिस ने जनवरी में भीमा-कोरगांव दंगों के मामले में देश के अलग-अलग हिस्सों से वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, स्टेन स्वामी, साई बाबा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण परेरा सहित 20 लोगों को गिरफ्तार किया था। इसमें से कुछ को जमानत पर छोड़ा गया है। जून में भी इसी तरह पांच लोगों को भीमा-कोरेगांव से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था। पुलिस के मुताबिक, इन लोगों के पास से एक पत्र बरामद हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश की बात सामने आई।
कवि वरवर राव: वरवर राव तेलुगु वामपंथी कवि और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। साल 1986 के रामनगर साजिश कांड सहित कई अलग-अलग मामलों में साल 1975 और 1986 के बीच उन्हें कई बार गिरफ्तार और फिर रिहा किया गया। साल 2005 में फिर जेल भेज दिया गया। उनके ऊपर माओवादियों से कथित तौर पर संबंध होने के भी आरोप लगते रहे हैं। 2018 में भीमा कोरेगांव दंगे में गिरफ्तार किया गया। अभी जेल में हैं।
सुधा भारद्वाज: पेश से वकील सुधा भारद्वाज ने करीब तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ में रहकर काम किया है। उन्होंने सुधा पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाया। अगस्त 2018 में पुणो पुलिस ने उन्हें भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया था।
स्टेन स्वामी: रांची में पत्थलगढ़ी और विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के संस्थापक सदस्य रहे हैं 83 वर्षीय स्टेन स्वामी। भीमा कोरेगांव मामले में पुलिस ने उनके रांची स्थित घर पर छापा मारकर कंप्यूटर की हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडम जब्त कर लिया था।
गौतम नवलखा: भीमा कोरेगांव में गिरफ्तार 20 लोगों में सबसे गंभीर आरोप गौतम नवलखा पर लगे हैं। एनआइए ने अपने चार्जशीट में बताया है कि गौतम नवलखा के पाकिस्तान की इंटर-सíवसेज इंटेलिजेंस से कनेक्शन सामने आया है। आइएसआइ के सक्रिय एजेंट गुलाम नबी फई के संपर्क में था।
अरुण परेरा: पेशे से वकील पुणो निवासी अरुण परेरा कॉलेज के दिनों से ही जन आन्दोलनों में सक्रिय रहे हैं। वर्ष 2007 में उन्हें प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) की प्रचार एवं संचार शाखा से जुड़ा होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन पर आरोप था कि वे धमाका करने की साजिश कर रहे थे। हालांकि 2014 में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया था। आंदोलन में साजिश रचने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
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