उपहार अग्निकांड- निचली अदालत से सुनाई गई सजा को निलंबित कराने की मांग वाली याचिका पर हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
सत्र अदालत ने तीन दिसंबर को एक मजिस्ट्रेट अदालत से सुबूतों से छेड़छाड़ मामले में अंसल बंधुओं को सुनाई गई सात-सात सजा देने के फैसले को निलंबित करने से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही उन्हें जमानत देने से भी इन्कार कर दिया था।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। उपहार अग्निकांड से जुड़े सुबूतों से छेड़छाड़ करने के मामले में निचली अदालत से सुनाई गई सजा को निलंबित कराने की मांग वाली सुशील और गोपाल अंसल की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने इस दौरान सभी पक्षों की दलीलें भी सुनीं। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ के समक्ष बृहस्पतिवार को अंसल बंधुओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि दोष सिद्धि के बाद बेगुनाही के अनुमान जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन हमारी न्याय प्रणाली प्रथम दोष सिद्धि को अंतिम नहीं मानती।
उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता प्रक्रिया की धारा-389 की उपस्थिति (अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करना, जबकि सजा की निलंबन अपील लंबित है) का अर्थ यह है कि अपील लंबित रहने के दौरान निरंतर कारावास का कोई प्राविधान नहीं है। सिंघवी ने अदालत से व्यक्तिगत स्वतंत्रता, कोरोना की वास्तविकता और याचिकाकर्ताओं की बढ़ती उम्र को ध्यान रखते हुए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने का अनुरोध किया। वहीं, इससे पहले अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि सुबूतों के साथ छेड़छाड़ में शामिल होने के कारण मुकदमे में देरी के लिए अंसल भाई खुद जिम्मेदार हैं। ऐसे में अब वे जेल की अवधि को निलंबित करने की मांग नहीं कर सकते।
इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने दलील दी कि कार्यवाही में कोई वास्तविक देरी नहीं हुई है और न ही देरी से उनको कोई लाभ हुआ है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2021 में पटियाला हाउस की सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद सात-साल की सजा को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। साथ ही उन्हें जमानत देने से इन्कार कर दिया था। अब सुशील और गोपाल अंसल ने उम्र का हवाला देकर सजा निलंबित करने की मांग की है।
सत्र अदालत ने तीन दिसंबर को एक मजिस्ट्रेट अदालत से सुबूतों से छेड़छाड़ मामले में अंसल बंधुओं को सुनाई गई सात-सात सजा देने के फैसले को निलंबित करने से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही उन्हें जमानत देने से भी इन्कार कर दिया था। इसके बाद सत्र अदालत के फैसले को अंसल बंधुओं ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।