यूपी और यमुना विकास प्राधिकरण ने हाई कोर्ट के आदेश को दी चुनौती
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार का एक आदेश रद करते हुए कहा था कि भू-आवंटियों से अतिरिक्त मुआवजे की रकम नहीं वसूली जा सकती। अब येडा-सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। यमुना एक्सप्रेस-वे के दोनों ओर टाउनशिप और इंस्टीट्यूशनल एरिया बसाने के लिए अधिगृहीत जमीन का बढ़ा मुआवजा देने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। यमुना विकास प्राधिकरण (येडा) और उत्तर प्रदेश सरकार ने भूस्वामी किसानों को 64.7 फीसद बढ़ा मुआवजा देने का आदेश रद करने व अथॉरिटी द्वारा आवंटी संस्थानों और बिल्डरों को भेजा गया डिमांड आदेश रद करने के हाई कोर्ट के 28 मई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर बिल्डरों और इंस्टीट्यूशंस को नोटिस जारी किया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार का 29 अगस्त, 2014 का आदेश रद करते हुए कहा था कि भू-आवंटियों से अतिरिक्त मुआवजे की रकम नहीं वसूली जा सकती। येडा और सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है।
शुक्रवार को येडा और प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट का आदेश सही नहीं है। उन्होंने कहा कि ग्रेटर नोएडा के किसानों को हाई कोर्ट की पूर्णपीठ के गजराज सिंह मामले में 2011 में दिए फैसले के आधार पर 64.7 फीसद बढ़ा मुआवजा मिला है, ऐसे में यमुना एक्सप्रेस-वे के आसपास की जमीन के किसानों को बढ़ा मुआवजा नहीं मिलना उनके साथ अन्याय होगा। किसानों की ओर से डॉ. सूरत सिंह पेश हुए। कोर्ट ने बहस सुनने के बाद याचिकाओं पर नोटिस जारी करके नौ अक्टूबर तक जवाब मांगा है।
याचिका में कहा गया है कि गौतमबुद्ध नगर जनपद में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और येडा तीन विकास प्राधिकरण हैं और पिछले दो दशक में प्रदेश सरकार ने यहां के नियोजित विकास के लिए बहुत सी जमीनें अधिगृहीत की हैं। सैकड़ों याचिकाओं के जरिये अधिग्रहण को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई और गजराज सिंह के मामले में हाई कोर्ट ने व्यावहारिक नजरिया अपनाते हुए जिस जमीन पर तीसरे पक्ष के हित सृजित नहीं हुए थे, उसका अधिग्रहण रद कर दिया था। जहां तीसरे पक्ष के हित सृजित हो चुके थे, वहां अधिग्रहण को सही ठहराया और 64.7 फीसद बढ़ा मुआवजा देने का आदेश दिया।
येडा ने कहा है कि जब यह मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन था, उसी वक्त येडा के भूमि अधिग्रहण के भी सैकड़ों मामले लंबित थे। सरकार ने मुआवजे में वृद्धि की बढ़ती मांग को देखते हुए कैबिनेट मंत्री की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी गठित की थी। कमेटी ने रिपोर्ट में बराबरी का सिद्धांत अपनाते हुए इन किसानों को भी बढ़ा मुआवजा देने की सिफारिश की ताकि विरोध समाप्त हो और बिना व्यवधान के काम शुरू हो सके।
सरकार ने रिपोर्ट स्वीकार कर बढ़ा मुआवजा देने का आदेश जारी किया था। साथ ही येडा से अतिरिक्त मुआवजा आवंटियों से वसूलने को कहा था। गजराज सिंह के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सावित्री देवी मामले में मुहर लगाई है। येडा और सरकार का कहना है कि हाई कोर्ट ने ताजा फैसले में जमीनी हकीकत और कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर लिए गए सरकार के नीतिगत निर्णय के पीछे के कारणों पर ध्यान नहीं दिया। येडा के पास अतिरिक्त मुआवजा देने की क्षमता नहीं है। अतिरिक्त मुआवजे की रकम भू-आवंटियों को ही वहन करनी चाहिए, जो जमीन के वास्तविक लाभार्थी हैं।
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