TRP के लिए टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग पर बोले सूचना एवं प्रसारण मंत्री, जिम्मेदारीपूर्वक हो पत्रकारिता
जावड़ेकर ने कहा कि पहले पित पत्रकारिता फिर पेड न्यूज व फेक न्यूज अब टीआरपी की पत्रकारिता हो रही है। उन्होंने टीआरपी आंकने के तंत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि देशभर में कुछ हजार टेलीविजन से चैनलों की लोकप्रियता आंकी जा रही है।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कथित मौत व हाथरस युवती हत्याकांड में जिस तरह से टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग पर सवाल उठे, उसमें चैनलों के भीतर से ही गुणवत्ता नियंत्रण के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग होने लगी है। हालांकि, सरकार ने इस तरह के किसी भी कदम से साफ इनकार किया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि सरकार चैनलों के लिए स्व: नियंत्रण पर विश्वास करती है। वह किसी का अधिकार हथियाना नहीं चाहती है। वह प्रेस की आजादी के पक्ष में है, लेकिन यह चैनलों को खुद तय करना होगा कि यह आजादी कैसे बनी रहे। कैसे जिम्मेदारीपूर्वक पत्रकारिता हो। इन दो माह में जिस प्रकार से टीआरपी के नाम पर पत्रकारिता हुईं, उसे हम सभी ने देखा है। उन्होंने कहा कि लोकप्रियता गिनने का तरीका हो, लेकिन इसके नाम पर उकसावे वाली पत्रकारिता नहीं होनी चाहिए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ये बातें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) सभागार में आइजीएनसीए व पांचजन्य द्वारा आयोजित स्वर्गीय माणिकचंद्र वाजपेयी (मामा जी) के विशेषांक विमोचन एवं जन्मशती समापन समारोह के दौरान कही। इसमें बतौर मुख्य अतिथि सर संघचालक मोहन भागवत के साथ ही हरियाणा व त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी, आइजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय व सदस्य सचिव सच्चिदानंदचि जोशी समेत अन्य ने भी संबोधित किया।
जावड़ेकर ने कहा कि पहले पित पत्रकारिता, फिर पेड न्यूज व फेक न्यूज अब टीआरपी की पत्रकारिता हो रही है। उन्होंने टीआरपी आंकने के तंत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि देशभर में कुछ हजार टेलीविजन से चैनलों की लोकप्रियता आंकी जा रही है। इस तरीके पर चैनलों को स्वयं से पुनर्विचार की आवश्यकता है। टीआरपी के अनावश्यक बोझ को बंद करने या सुधार के साथ इसे नया रूप देना होगा। इसके साथ ही टीवी चैनलों के एसोसिएशन को और प्रभावी बनाना होगा, इसमें सभी चैनलों को लाना होगा।
भागवत ने भी इशारों में चैनलों के स्वयं नियंत्रण पर जोर देते हुए कहा कि यह हमें खुद तय करना होगा कि हमें बाहरी छलावे से बचते हुए कैसे अपने पथ पर टिके रहना है। इसमें समझदारी ही अपनी ताकत है। उन्होंने माणिकचंद्र के जीवन का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस सामान्य रहन-सहन में उन्होंने असाधारण कार्य किए। वह अखबारों के संपादक रहे। उस तरह का जीवन हमें अपने पत्रकारिता के जीवन में उतारना होगा।
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