कोरोना काल में स्मारकों के संरक्षण कार्य में आई कमी, ASI की बढ़ गई चिंता
पिछले दिनों दिल्ली में 500 साल पुराने सलीमगढ़ किले के इकलौते गुंबद के ढहने के बाद अब पुरातत्वविदों में इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या स्मारकों के संरक्षण पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है?
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा किए जाने वाले स्मारकों के संरक्षण कार्य में कोरोना काल में खासी कमी आई है। पुरातत्वविद् इसे स्मारकों के उचित रखरखाव के लिए सही नहीं मान रहे हैं। पिछले दिनों दिल्ली में 500 साल पुराने सलीमगढ़ किले के इकलौते गुंबद के ढहने के बाद अब पुरातत्वविदों में इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या स्मारकों के संरक्षण पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है? उनका कहना है कि जहां एक ओर स्मारकों के ढांचे के संरक्षण कार्य में कमी आई है, वहीं इनमें सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया गया है, जबकि संरक्षण कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनके अनुसार, यह स्थिति स्मारकों के अस्तित्व के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
एएसआइ के दिल्ली, पटना, चंडीगढ़, शिमला व श्रीनगर मंडल में पिछले साल पूर्व वर्षों की अपेक्षा संरक्षण कार्य में कमी आई है, यही वजह है कि इस साल इन मंडलों का खर्च भी कम हुआ है। पुरातत्वविद इसे लेकर खासे चिंतित हैं। उनका मानना है कि स्मारकों के संरक्षण कार्य में तेजी लाई जानी चाहिए। यही नहीं, वे यह भी मानते हैं कि अब एएसआइ में स्मारकों के ढांचे पर ध्यान देने के बजाय, वहां बाग-बगीचे, चारदीवारी आदि बनाने का काम हो रहा है, जिसमें एएसआइ की तुलना में निजी कंपनियों द्वारा कई कई गुना अधिक राशि पीने के पानी की व्यवस्था व शौचालय आदि बनाने पर खर्च हो रही है।
किस मंडल के तहत कितने स्मारकों में हुआ संरक्षण कार्य
देशभर में एएसआइ के कुल 3693 स्मारक हैं। इनमें से श्रीनगर मंडल में 2018-19 में 12, 19-20 में नौ और 2020-21 में पांच स्मारकों में संरक्षण कार्य हुआ है। पटना मंडल में 2018-19 में 29 स्मारकों में संरक्षण कार्य हुआ। इसके अगले साल 13 और पिछले साल नौ स्मारकों में काम हुआ। देहरादून मंडल में 43 स्मारकों में संरक्षण कार्य कराया गया है। दिल्ली में सबसे अधिक 174 स्मारक हैं, लेकिन तीन साल में मात्र 18 स्मारकों में संरक्षण का काम हुआ है। दिल्ली में स्मारकों पर खर्च होने वाली राशि में भी कमी आई है। वर्ष 2017 में जहां 37 करोड़ रुपये की राशि यहां खर्च हुई थी, वह 2020-21 में 24 करोड़ रुपये रह गई है।
एएसआइ के पूर्व अधिकारी व्यवस्थाओं से नाराज
एएसआइ की पहचान स्मारकों से है। शुरू से स्मारकों के संरक्षण पर ही काम होता रहा है, लेकिन अब हम देख रहे हैं कि स्मारकों के संरक्षण की जगह पैदल चलने के रास्ते, चारदीवारी व बाग-बगीचे बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। जिस पैसे में एएसआइ शौचालय बना देता था, उससे पांच गुना तक अधिक पैसे में निजी कंपनियां बना रही हैं। यह बंद होना चाहिए। स्मारकों को बचाना है तो उनके संरक्षण कार्य को प्राथमिकता देनी होगी।
-पदम श्री डा. केके मोहम्मद, पूर्व निदेशक, एएसआइ
स्मारकों के संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत है। दूसरी बात है स्मारकों से ठेके की प्रथा समाप्त होनी चाहिए। हमारा काम रफूगर का है। यह काम ठेकेदारों से न कराकर एएसआइ को स्वयं करना चाहिए।
-सैयद जमाल हसन, पूर्व निदेशक, एएसआइ
पिछले साल कोरोना के कारण नहीं हो सका अधिक काम
देहरादून मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद आरके पटेल कहते हैं कि एएसआइ में होने वाला संरक्षण कार्य कोई विकास कार्य नहीं है। किस स्मारक में कितना काम कराने की जरूरत है, खर्च भी उसी पर निर्भर कहता है। पूर्व के कुछ वर्षों में कुछ स्मारकों में बड़े स्तर पर काम किया गया है, इसलिए खर्च बढ़ा, जबकि पिछले साल कोरोना के कारण कुछ मंडलों में इतना काम नहीं हो सका, इसलिए खर्च भी घटा है। वहीं, दिल्ली मंडल को लेकर एएसआइ मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बजट की कोई समस्या नहीं है। कोरोना के चलते काम प्रभावित हुआ है, जिसके कारण खर्च भी घटा है। यह कहना गलत है कि एएसआइ का ध्यान स्मारकों पर नहीं है।