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शौर्य गाथाः साथी पर गिराया बम तो नायक सुमेर सिंह ने दुश्मनों का निकाला दम

अपनी आंखों के सामने साथी सिपाहियों की शहादत देखकर सुमेर सिंह ने तब तक हार नहीं मानी जबतक दुश्मनों का पूरी तरह से खात्मा न कर दिया। सुमेर सिंह ने बहादुरी का परिचय देते हुए ऊंची पहाड़ियों को पार कर दुश्मन के पोस्ट को तहस नहस कर दिया।

By Mangal YadavEdited By: Published: Fri, 06 Aug 2021 11:15 AM (IST)Updated: Fri, 06 Aug 2021 11:15 AM (IST)
शौर्य गाथाः साथी पर गिराया बम तो नायक सुमेर सिंह ने दुश्मनों का निकाला दम
नायक सुमेर सिंह की फाइल फोटोः सौ. परिजन

नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। ‘वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं। वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं। कवि गोपाल प्रसाद व्यास की ये पंक्तियां उन देश के वीर योद्धाओं के नाम हैं, जिन्होंने अपना रक्त देकर देश की रक्षा की है। ऐसे ही वीर सिपाहियों में से एक हैं नायक सुमेर सिंह। अपनी आंखों के सामने साथी सिपाहियों की शहादत देखकर सुमेर सिंह ने तब तक हार नहीं मानी, जबतक दुश्मनों का पूरी तरह से खात्मा न कर दिया।

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कारगिल युद्ध में अहीर रेजिमेंट के नायक सुमेर सिंह ने बहादुरी का परिचय देते हुए ऊंची पहाड़ियों को पार कर दुश्मन के पोस्ट को तहस नहस कर दिया। उनकी वीरता की कहानी देश के युवाओं के लिए प्रेरक है।

72 घंटे चलने के बाद पहुंचे सियाचिन

कारगिल युद्ध के दौरान जब सुमेर सिंह लेह में ट्रेनिंग के बाद आराम कर रहे थे, तब उन्हें पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ की सूचना मिली। उन्हें सियाचिन ग्लेशियर जाने का आदेश भी मिला। नायक सुमेर सिंह के साथ छह सिपाही थे। माइनस तापमान में पांच कदम चलते ही सांस फूलने लगती थी, लेकिन खुद से ज्यादा अपने हथियार को गर्म रखने की चुनौती थी। 72 घंटे चलकर वह 5685 प्वाइंट पर पहुंचे।

सुमेर सिंह ने बताया कि ऊंची पहाड़ियों पर लगातार चलने के बाद सुबह चार बजे 32 जवान सियाचिन पहुंचे। बीच में ही अचानक दुश्मन की ओर से फायरिंग हुई और एक जवान दुलारे शहीद हो गए। उसके बाद सुबह करीब 8-9 बजे पोस्ट को कैप्चर कर लिया था। दिनभर बीच बीच में फायरिंग होती रही। शाम को सात बजे पाकिस्तान की ओर से गोलाबारी शुरू हुई। पहली बमबारी में ही दस जवान जवान शहीद हो गए। और 17 जवान घायल हो गए। उन्होंने बताया, ‘मेरे साथी साधुराम नजदीक बैठे थे, तबीयत ठीक नहीं होने की सूचना कमांडर को देने को कह रहे थे, तभी सामने से हुई बमबारी में वह शहीद हो गए। शहीदों के शरीर के टुकड़े यहां वहां फैले थे। वह मंजर देखते ही हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।’

इस बीच टेलीफोन वायर भी उड़ गए थे, लेकिन किसी तरह हमने मेजर केएस मेहरा से संपर्क किया और उन्हें जानकारी दी कि हमारे जवान घायल हो गए हैं। केवल पांच बचे हैं। सुमेर सिंह ने कहा ‘साथियों की मौत का बदला लेने के लिए इतना जोश आया कि हम बिना रुके आगे बढ़े और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। दुश्मन के पोस्ट पर कब्जा जमा लिया। उनके पोस्ट को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। वहां से बड़ी मात्र में बारूद, गोला हथियार को इकट्ठा किया।’ उन्होंने बताया ‘ खड़ी पहाड़ी पर चढ़कर दुश्मनों पर वार करना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि एक बम जब पत्थरों से टकराता तो पत्थर के कई टुकड़े भी हथियार की तरह बरसते।

इन चुनौतियों को पार करते हुए हम दुश्मनों तक पहुंचे और उनका खात्मा कर दिया। पूरी रात बमबारी को झेलते रहे और सुबह चार बजे और हमारे साथी आए तो हमारा जोश और भी दोगुना हो गया था।’ हरियाणा के भिवानी जिले के चरखी दादरी स्थित अचिना गांव के रहने वाले सुमेर पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं। तीन भाई भी सेना में हैं। वह कहते हैं ‘गांव के हर घर से दो फौजी हैं। कारगिल युद्ध के दौरान परिवार से कोई संपर्क नहीं था। घरवालों ने यही सोचा कि मैं भी वापस नहीं आऊंगा। ’


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