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कोविड के मुश्किल समय में जरूरी है बचत का फॉर्मूला, पैरेंट्स करें बच्चे को जागरूक

दोस्तो कोविड के मुश्किल समय में हर किसी को समय और पैसे का महत्व अच्छी तरह समझ में आ गया। यह सबक बच्चे किशोर और युवा भी जानने सीखने लगे हैं। तभी तो इस मुश्किल दौर में उन्होंने भी अपना रहे हैं ‘जीरो वेस्ट’ का फॉर्मूला।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 01:44 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 01:44 PM (IST)
कोविड के मुश्किल समय में जरूरी है बचत का फॉर्मूला, पैरेंट्स करें बच्चे को जागरूक
कोविड के मुश्किल समय में हर किसी को समय और पैसे का महत्व अच्छी तरह समझ में आ गया।

नई दिल्ली, अंशु सिंह। ग्यारहवीं के स्टूडेंट विशाल को मिलने वाली पॉकेट मनी का अधिकांश हिस्सा दोस्तों के साथ पार्टी करने, खाने-पीने में ही खर्च हो जाता था। महीने के आखिर तक उनके पास कुछ भी सेविंग नहीं होती थी। उलटा पैरेंट्स से मांगना ही पड़ता था। लेकिन बीते कुछ महीनों में उनके ऐसे सारे खर्चे कम हो गए हैं। कमाल की बात यह रही कि पॉकेट मनी में कटौती के बावजूद उन्होंने कुछ सेविंग भी कर ली। गुरुग्राम की 12वीं की स्टूडेंट नेत्रा का पसंदीदा टाइम पास शॉपिंग करना रहा है।

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कई बार बिना जरूरत की चीजें भी खरीद लिया करती थीं। लेकिन बीते दिनों उन्हें कुछ स्वैच्छिक अभियानों में हिस्सा लेने का अवसर मिला, जहां उन्होंने फंड इकट्ठा कर उससे जरूरतमंदों की मदद की। इससे उन्हें पैसे के असल मूल्य का पता चला। नेत्रा कहती हैं,‘मुझे अंदाजा ही नहीं था कि आर्थिक संकट क्या होता है? दो-तीन हजार रुपये खर्च करना मामूली बात थी। लेकिन संकट की इस घड़ी में मैंने जाना कि इससे तो किसी गरीब का पूरा घर चलता है। अब तय कर लिया है कि कभी फिजूलखर्च नहीं करूंगी।’ वहीं, इंजीनियरिंग के स्टूडेंट प्रदीप पटवर्धन कहते हैं, ‘मेरी पूरी जीवनशैली ही बदल गई है। क्या खाना है, कहां जाना है, क्या खरीदना है, सब कुछ अब बहुत सोच-समझकर करना पड़ रहा। पहले वीकेंड्स पर कहीं भी घूमने निकल जाता था। वह सब बंद हो चुका है। मैंने पढ़ाई के लिए स्टडी लोन लिया हुआ है। पैरेंट्स पर और बोझ नहीं डाल सकता हूं। लिहाजा, बदली परिस्थितियों में पहले से कहीं अधिक बचत का खयाल रखना पड़ता है।’

हर हाल में रह रहे खुश : हालांकि कोविड ने बहुत कुछ बदल दिया है। फिर वह जीने का अंदाज ही क्यों न हो। यह तो आप भी मानते ही हैं। इसने हमें अपनी सेहत का खयाल रखना और साथ ही बचत करना सिखाया है। जैसे, हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव में रहने वाले आकाश एक साल पहले ही मुंबई जॉब के लिए शिफ्ट हुए थे। लेकिन नौकरी छूटने के कारण अब उन्हें वापस घर लौटना पड़ा है। वह बताते हैं,‘मैं हर हाल में खुश रहने वाला इंसान हूं। अपनी काबिलियत पर विश्वास है। जब हालात सुधरेंगे, तो नौकरी फिर से मिल जाएगी। अभी गांव में रहकर ही ट्रैवलिंग के शौक को पूरा कर रहा हूं। साइकिल से निकल पड़ता हूं आसपास के इलाकों की खाक छानने। घूमना का घूमना हो जाता है और पैसे भी खर्च नहीं होते।‘ वैसे, आकाश इन दिनों गांव के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने से लेकर उन्हें योग एवं मेडिटेशन भी सीखाते हैं। इनकी मानें, तो कोविड का सबसे अधिक असर युवाओं की मानसिक स्थिति पर हुआ है। लेकिन सकारात्मक रहकर किसी भी विपदा से लड़ा जा सकता है। मार्टिन लूथर किंग ने भी कहा है,‘मैं जानता हूं कि कल दुनिया टुकड़ों में बंट जाएगी, लेकिन मैं फिर भी सेब का अपना पौधा जरूर लगाऊंगा।‘ यानी उम्मीद कभी हारनी नहीं चाहिए।

पैरेंट्स से बढ़ी मांग : दिलचस्प यह है कि निश्चित पॉकेट मनी के अलावा किशोर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए पैरेंट्स से अलग से पैसे की मांग भी करते हैं। सर्वे में 50 फीसद किशोरों ने कहा कि मांगने पर पैरेंट्स उन्हें मना नहीं करते हैं। देश के किशोरों की खरीदारी एवं खर्च की आदतों को लेकर नियोबैंक ‘फैमपे’ द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार,किशोर सबसे अधिक खाने-पीने, कपड़े एवं एक्सेसरी पर खर्च करते हैं। इसमें लड़कियां अपेक्षाकृत कपड़ों पर ज्यादा खर्च करती हैं, जबकि लड़के खाने-पीने व गैजेट खरीदने को प्राथमिकता देते हैं। फैमपे के सह-संस्थापक संभव जैन के अनुसार,खरीदारी के लिए अधिकांश युवा अपने पैरेंट्स के डेबिट या क्रेडिट का इस्तेमाल करते हैं,जो कई बार जोखिम भरा हो सकता है। जैसे कुछ समय पहले किसी किशोर ने पैरेंट्स के फोन में मौजूद एप से छह हजार रुपये का ट्रांजैक्शन उनकी जानकारी के बिना कर लिया। इसी प्रकार, एक अन्य युवा द्वारा अभिभावकों के बैंक अकाउंट से अपनी ऑनलाइन गेम अकाउंट को अपग्रेड करने का मामला भी सामना आया था, जिसमें वह 16 लाख रुपये खर्च कर चुका था।

बचत को लेकर करना होगा प्रोत्साहित : हम सभी जानते हैं कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है, जिसकी करीब 65 फीसद आबादी वर्किंग एज ग्रुप में आती है। इसका जीडीपी की विकास दर में करीब 2 फीसदी की भागीदारी है। लेकिन कोविड ने आर्थिक विकास की गति को धीमा कर दिया है। किशोरों-युवाओं की पढ़ाई से लेकर उनकी जॉब पर खतरा मंडरा रहा है। डिजिटल वेल्थ मैनेजमेंट सर्विस कंपनी ‘स्क्रिपबॉक्स’ के एक हालिया सर्वे के अनुसार, 35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में निवेश के प्रति खास गंभीरता अथवा रुचि नहीं दिखाई दी। उन्हें वित्तीय प्रबंधन को लेकर विशेष जानकारी भी नहीं। बेशक पैसे बैंक में पड़े होते हैं, लेकिन उसे वे सही जगह निवेश नहीं करते। समाजशास्त्री सुरेश कुमार की मानें, तो आज यह जरूरी हो गया है कि युवाओं को वित्तीय प्रबंधन की जानकारी दी जाए। बचत की आदत, आमदनी व पॉकेट मनी के सही इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने से उनमें निश्चित तौर पर जागरूकता आएगी। कहते भी हैं कि बूंद-बूंद करके ही घड़ा भरता है।

हाइलाइट

  • देश की कुल आबादी में वर्किंग युवाओं की संख्या 65 फीसद है।
  • ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक सर्वे अनुसार, महज 31 फीसद युवाओं के पास कोई न कोई हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी है।
  • 37 फीसद युवा पर्याप्त फंड न होने को लेकर चिंतित हैं। 54 फीसद आर्थिक संकट को लेकर घबराए हुए हैं।
  • फैमपे के सर्वे के अनुसार, 84 फीसद किशोर ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं। इनमें 52 फीसदी पेमेंट के लिए पैरेंट्स का डेबिट व क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं।

बचत के लिए पैरेंट्स करें बच्चे को जागरूक : फैमपे के सह-संस्थापक कुश तनेजा ने बताया कि आज के किशोर-युवा पहले की पीढ़ी से कहीं अधिक टेक सैवी हैं। ऐसे में अगर उन्हें डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम का हिस्सा बनाया जाए और फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन से लेकर प्रबंधन के बारे में जागरूक किया जाए, तो निश्चित ही वे कहीं अधिक जिम्मेदारी के साथ खर्च करेंगे।

मैंने देखा है कि पैरेंट्स बच्चों से जितना पढ़ाई को लेकर बातें करते हैं, उतना पैसे या सेविंग्स को लेकर नहीं करते। जबकि अच्छा यह होगा कि किशोरों को उनकी बढ़ती उम्र में वित्तीय प्रबंधन व बचत के बारे में बताया जाए। इससे उनमें निर्णय क्षमता का भी विकास होगा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी नेशनल स्ट्रेटेजी फॉर फाइनेंशियल एजुकेशन के तहत अगले पांच वर्षों में वित्तीय शिक्षा देने का निर्णय लिया है।

वित्तीय प्रबंधन के हैं फायदे अनेक : एक्टर कौशांबी भट्ट ने बताया कि एक्टर्स को काम नहीं मिलता, तो अवसाद में जाना आम बात है। शुरुआत में कई बार ऐसा होता है कि दो-दो महीने अच्छा काम नहीं मिलता। मैंने भी फिल्म या टीवी में मनमाफिक काम न मिलने पर गुजराती कॉमर्शियल थियेटर किए, ताकि मुंबई में सर्वाइव कर सकूं। इसलिए सात-आठ महीने नाटक करके फाइनेंशियल बैकअप तैयार कर लेती हूं।

मेरे हिसाब से सभी को ऐसा जरूर करना चाहिए। कोविड के दौरान मुझे कुछ समय के लिए वापस अपने घर अहमदाबाद लौटना पड़ा था। लेकिन मैंने इस समय का सार्थक रूप से उपयोग किया। अपनी सेहत का खयाल रखा। घर पर रहते हुए मैंने झरोखा नाम से यूट्यूब चैनल भी शुरू किया। अच्छी बात यह रही है कि महामारी के दौरान भी काम की कमी नहीं रही।

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