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Delhi High Court News: वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे को अदालत के अधिकार क्षेत्र से रखा जाए बाहर

Delhi High Court News पुरुष कल्याण ट्रस्ट की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जे साई दीपक ने न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे को अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए।

By Vineet TripathiEdited By: JP YadavPublished: Fri, 28 Jan 2022 09:04 AM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 09:04 AM (IST)
Delhi High Court News: वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे को अदालत के अधिकार क्षेत्र से रखा जाए बाहर
Delhi High Court News: वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे को अदालत के अधिकार क्षेत्र से रखा जाए बाहर

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं का विरोध करते हुए पुरुष कल्याण ट्रस्ट की तरफ से दिल्ली हाई कोर्ट में दलीलें पेश की गई। ट्रस्ट की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जे साई दीपक ने न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ के समक्ष कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे को अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि जब विधायिका कार्य नहीं करती है, तो मेरा निश्चित रूप से मानना है कि न्यायपालिका एक सलाह जारी कर सकती है या कम से कम अपना मन स्पष्ट कर सकती है, लेकिन इस मुद्दे का अंतिम परिणाम क्या होना चाहिए और उस नीति के संबंध में अंतिम स्थिति क्या होनी चाहिए यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं रखा जाना चाहिए। मामले में आज भी सुनवाई जारी रहेगी।

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सुनवाई के दौरान उन्होंने दलील दी कि इस मामले पर अदालत का इसलिए निर्णय लेने के लिए कहा जा रहा है क्योंकि विधायिका ने इस मुद्दे पर कार्रवाई नहीं की है। लेकिन अगर यह न्यायपालिका के लिए एक रेखा को पार करने का कारण बन जाता है, तो यह एक बहुत ही खतरनाक मिसाल बन जाएगा। हालांकि, पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जिसने इसी तरह की चुनौती याचिका पर नोटिस जारी किया है। पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे अन्य अदालतों के सामने नहीं आ रहे हैं।

पीठ ने कहा कि हमारे लिए हर मुद्दा अहम है। यह हमारे सामने एक मसला है, इसे यहीं पर छोड़ दें। पीठ ने जब सवाल उठाया कि मौजूदा कानून होने पर अदालतें कुछ नहीं कर सकती तो इसके जवाब में दीपक ने कहा कि अगर कुछ नहीं है तो कुछ किया जा सकता है, वह भी सिर्फ सुप्रीम कोर्ट कर सकता है, लेकिन अगर कुछ है तो सवाल यह होगा कि उस चीज को खत्म करने का क्या असर होगा। उन्होंने आगे कहा कि अगर अदालतों द्वारा किसी प्रविधान को हटाने का प्रभाव धारा 377 जैसी किसी चीज को अपराध से मुक्त करना है, तो यह एक अलग स्थिति है। 


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