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कोर्ट ने कहा हवालात में युवक की मौत के मामले में पुलिस दर्ज करे मुकदमा, आदेश बरकरार

तीन साल पहले हवालात में युवक की मौत के मामले में पुलिस को मुकदमा दर्ज करना होगा। निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए सत्र न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की सब इंस्पेक्टर की उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 03:29 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 03:29 PM (IST)
कोर्ट ने कहा हवालात में युवक की मौत के मामले में पुलिस दर्ज करे मुकदमा, आदेश बरकरार
सत्र न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

पूर्वी दिल्ली, [आशीष गुप्ता]। तीन साल पहले हवालात में युवक की मौत के मामले में पुलिस को मुकदमा दर्ज करना होगा। निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए सत्र न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की सब इंस्पेक्टर की उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मुकदमा दर्ज करने के आदेश को भावनात्मक बताया गया था।

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सत्र न्यायालय ने कहा कि पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बीच युवक हवालात में आत्महत्या करने के लिए खिड़की के जरिये छत तक पहुंच गया। उसने फांसी लगा ली और किसी की नजर नहीं पड़ी। इससे पुलिस की कहानी पर संदेह होता है। सच्चाई सामने लाने के लिए स्वतंत्र जांच जरूरी है।

करावल नगर थाने में दर्ज यौन उत्पीड़न के मामले में युवक दीपक उर्फ पोपा को 14 जनवरी 2018 को हिरासत में लिया गया था। उसे थाने की हवालात में रखा गया था। अगले ही दिन वह हवालात में शाल से बने फंदे पर झूलता हुआ मिला। पुलिस ने आत्महत्या बताकर युवक की मौत के मामले को रफा-दफा कर दिया था। मृतक के पिता श्याम सुंदर ने महानगर दंडाधिकारी की कोर्ट में अर्जी दायर कर जांच कराने की मांग की थी।

आरोप लगाया था कि यौन उत्पीड़न मामले के जांच कर रहे सब इंस्पेक्टर और एक कांस्टेबल ने उनसे रुपये की मांग की थी। आरोप लगाया था कि दोनों पुलिसकर्मियों की मांग पूरी नहीं की गई तो उन्होंने दीपक को तब तक पीटा, जब तक वह मर नहीं गया। उसकी मौत को आत्महत्या दिखाने के लिए शव को फंदे पर लटका दिया। महानगर दंडाधिकारी की कोर्ट ने बीती 17 फरवरी को मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था।

इस आदेश को चुनौती देने के लिए आरोपित सब इंस्पेक्टर (अब स्पेशल ब्रांच में तैनात हैं) ने सत्र न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार की कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए मुकदमा दर्ज करने के आदेश को बरकरार रखा है।


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