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सबसे बड़ी समस्या मौजूदा सरकार काम से ज्यादा हो-हल्ला मचाने में विश्वास रखती है

आपदा की स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन कानून के रूप में तंत्र बना हुआ है। ऐसी आपात स्थिति से निपटने के लिए सारी एजेंसियां एकजुट हो जाती हैं। व्यवस्था केंद्र से लेकर जिला स्तर तक है ताकि बेहतर समन्वय के साथ प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाई जा सके।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 30 Jun 2021 01:41 PM (IST)Updated: Wed, 30 Jun 2021 01:41 PM (IST)
सबसे बड़ी समस्या मौजूदा सरकार काम से ज्यादा हो-हल्ला मचाने में विश्वास रखती है
आपदा का न हो राजनीतिकरण, एकजुट होकर बनानी होगी रणनीति।

नई दिल्ली, नेमिष हेमंत। आपदा की स्थिति से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन कानून के रूप में बेहतर तंत्र बना हुआ है। ऐसी आपात स्थिति से निपटने के लिए सारी एजेंसियां एकजुट हो जाती हैं। यह व्यवस्था केंद्र से लेकर जिला स्तर तक है ताकि बेहतर समन्वय के साथ प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाई जा सके। इसके लिए अलग से फंड की भी व्यवस्था है। इस महामारी में भी सभी एजेंसियां बेहतर तरीके से आपना काम कर रही हैं।

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बस अकेले दिल्ली का मामला ही थोड़ा अलग है। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि मौजूदा सरकार काम से ज्यादा हो-हल्ला मचाने में विश्वास रखती है। आक्सीजन के मामले में भी यही हुआ। कई ऐसी चीजें होती हैं, जिसका सरकार अपने स्तर पर प्रबंधन करती है। उसे सार्वजनिक नहीं किया जाता है, लेकिन इस सरकार ने ऐसा किया।

विषय-वस्तु की हो बेहतर जानकारी

आक्सीजन को लेकर दिल्ली सरकार की तरफ से लगातार जो बयान दिए गए वो पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित थे। किसी भी महामारी या आपदा के समय बयान देते वक्त जिस गंभीरता और सूझबूझ की जरूरत होती है उसका अभाव देखने को मिला। दरअसल अन्य राज्यों में सरकार की तरफ से बात करने के लिए प्रवक्ता होते हैं। केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी प्रवक्ता है। ये वरिष्ठ आइएएस अधिकारी होते हैं। उन्हें इसका बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि ऐसा कोई बयान न दें, जिससे सरकार असहज हो।

कोई ऐसा संदेश न दें जिससे आम लोगों में भ्रम फैले। इसलिए वह पूरी तैयारी के साथ आते हैं, लेकिन यहां तो विधायकों को ही प्रवक्ता बना दिया गया है। जिन्हें न तो इस तरह की कार्यप्रणाली का अनुभव है और न ही विषय वस्तु की जानकारी है। उनके सारे बयान राजनीतिक होते हैं। वे हर चीज में केंद्र की आलोचना करते हैं, जबकि उस समय बेहतर व्यवस्था बनाकर समन्वय के साथ चलने का था। बयानबाजी से समन्वय बिगड़ा।

एकजुट होकर करनी होगी तैयारी

अब अगली लहर की बात हो रही है। कोई कह रहा है छह से आठ हफ्ते में तीसरी लहर आ जाएगी तो कोई अक्टूबर-नवंबर में आने की बात कह रहा है। हालांकि किसी भी आपदा या महामारी में पहले से स्थिति का एकदम सही आकलन नहीं कर सकते। सिर्फ कयास लगा सकते हैं कि ऐसा हो सकता है और उसी आधार पर आगे की तैयारी भी करते हैं। दूसरी लहर के बारे में भी किसी ने नहीं सोचा था कि स्थिति इतनी खराब होगी। ऐसी स्थिति में महामारी से निपटने और बेहतर प्रबंधन के लिए जरूरी है कि एकजुट होकर काम किया जाए ताकि आम जनता को कोई परेशानी न हो।

जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग लें जिम्मेदारी

सरकार के पास आक्सीजन की जरूरत तय करने को लेकर कोई फार्मूला ही नहीं था। कभी 700 तो कभी 900 मीटिक टन प्रतिदिन की जरूरत बताते रहे। दिल्ली में आक्सीजन की कमी बताकर कभी सुप्रीम कोर्ट जा रहे थे तो कभी हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में जो लोग जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए हैं उन्हें ही कोई फैसला लेने देना चाहिए। यह उनकी जवाबदेही है। मान लें दिल्ली में आक्सीजन को लेकर अगर गड़बड़ी निकलती है तो कोर्ट किसको जिम्मेदार ठहराएगा। प्रवक्ता बने उन विधायकों को, जो अगले चुनाव तक ही हैं।

(ओमेश सहगल, पूर्व मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार।)


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