Corona Vaccine News: मौजूद संसाधन टीका तो पहुंचा देंगे लेकिन लगाने के लिए सबकी हां जरूरी
नई दिल्ली के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के पूर्व महानिदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद ने बताया कि अनुभव बताते हैं कि टीके के प्रति जागरूकता की बड़ी कमी रही है। सामाजिक व धार्मिक अंधविश्वास भी आड़े आते रहे हैं।
नई दिल्ली, रणविजय सिंह। कोविड-19 महामारी को शुरू हुए करीब एक साल होने जा रहे हैं, रोजमर्रा की मुश्किलों के बीच यह बड़ी चुनौती सामने आ गई। तेज संक्रमण के बीच खुद और परिजनों को इससे बचाने की पहली अनिवार्यता थी। साथ ही परिवार चलाने के लिए आर्थिक जरूरतों को भी पूरा करना था। तमाम एहतियातों और जागरूकता के साथ हमने इसे पूरा किया और अभी यह प्रयास जारी है। दूसरी चुनौती हमारे विज्ञानियों के समक्ष थी। वैक्सीन बनाने की। समय लगा, लेकिन उनका भगीरथ प्रयास रंग लाया और कुछ ही दिनों में देसी वैक्सीन अंतिम परीक्षणों के बाद इस्तेमाल के लिए हाजिर होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस महामारी को लेकर विशाल आबादी वाले देश भारत के संदर्भ में जो सबसे बड़ी चुनौती होगी, वह इसके वितरण की है। अगर हमने प्रभावी तरीके से इस वैक्सीन के वितरण की वैतरणी पार कर ली, तो फिर समझो इस महामारी का अंत आ चुका है।
भले ही हमारे पास दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम का अनुभव है, लेकिन हर्ड इम्युनिटी हासिल करने के लिए देश की 60-70 फीसद आबादी तक वैक्सीन पहुंचाना हंसी-ठट्टा नहीं है। छोटे-छोटे देशों के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती आसान रहने वाली है, लेकिन 130 करोड़ आबादी के लिए यह आसान काम नहीं होगा। करीब 1.4 अरब खुराक का प्रबंधन, टीकाकरण कार्यक्रम का वित्तपोषण, कोल्ड स्टोरेज की उपलब्धता, केंद्र और राज्यों में समन्वय स्थापित करना, आवागमन, लाभार्थियों का चिह्नीकरण, लोगों में मन में उपजी आशंकाओं को दूर करना, आपाधापी और कालाबाजारी जैसे मामलों को रोकना इसी बड़ी चुनौती के हिस्से हैं। ब्रिटेन में टीकाकरण शुरू हो चुका है। कई और देश जल्द टीकाकरण शुरू करने जा रहे हैं। भारत भी इस प्रक्रिया की जल्द शुरुआत को लेकर आश्वस्त है। ऐसे में देश में सुचारु टीकाकरण के प्रति सरकार की इस आश्वस्ति की पड़ताल आज हम लोगों के लिए बड़ा मुद्दा है।
देश में कोरोना का टीका अगले कुछ सप्ताह में उपलब्ध हो जाएगा। इसलिए टीके के वितरण और उसे चरणबद्ध तरीके से हर व्यक्ति तक पहुंचाने की तैयारियां जोर शोर से चल रही है। वैसे भी देश में युनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया के सबसे बड़े जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। टीके के उचित भंडारण और परिवहन सुविधा के लिए देश में पर्याप्त इंतजाम है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण संस्थान (एनआइएचएफडब्ल्यू) में बने राष्ट्रीय कोल्ड चेन और टीका प्रबंधन संसाधन केंद्र के जरिये सभी कोल्ड चेन की ऑनलाइन निगरानी की जाती है। इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलीजेंस नेटवर्क (ई-विन) के जरिये टीके के स्टॉक, उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाने और भंडारण तक के तापमान की जिला स्तर तक निगरानी संभव है।
पोलिया का टीका घर-घर हर बच्चे तक पहुंचाकर और इस बीमारी को खत्म कर भारत अपने मजबूत टीकाकरण कार्यक्रम का पराक्रम दिखा चुका है। इसलिए टीके को हर व्यक्ति तक पहुंचने में ज्यादा बाधा नहीं आएगी। यह टीके के उपलब्धता पर निर्भर करेगा। यह सही है कि देश की आबादी बहुत अधिक है। इसलिए कुछ मुश्किलें आएंगी लेकिन असल समस्या शुरुआत में यह आ सकती है कि टीका पहले लगवाए कौन। अभी लोग भले ही टीका का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, लेकिन टीका आम लोगों के लिए उपलब्ध होने पर पता चलेगा कि कितने लोग उसके लिए तैयार होते हैं। नया टीका होने के कारण उसके दीर्घकालिक असर से सभी अनजान हैं। इसलिए टीका लगवाने से पहले भी लोग कई बार सोचेंगे। अमेरिका में 30 फीसद नर्सों ने टीका लेने से इंकार कर दिया है। यह समस्या यहां भी आ सकती है। यदि स्वास्थ्य कर्मचारी ऐसे सोचेंगे तो आम जनता क्या करेगी?
इस बात की पूरी आशंका है कि लोग पहले तुम, पहले तुम की रणनीति अपना सकते हैं। टीके के प्रति लोगों में विश्वास धीरे-धीरे आएगा। इसलिए शुरुआत में टीके के लिए खास भीड़ होने की उम्मीद नहीं है। सामान्य टीकाकरण अभियान के अनुभव बताते हैं कि लोगों में टीके के प्रति जागरूकता की बड़ी कमी रही है। सामाजिक कारणों व धार्मिक अंधविश्वास भी आड़े आते रहे हैं। पोलिया उन्मूलन अभियान में भी यह समस्या आई थी। इसलिए लोगों को जागरूक करना और उन्हें टीके के बारे में सही जानकारी देनी होगी।
जब लोगों में टीके के प्रति विश्वास आएगा तभी वे टीका लगवाने के लिए आगे आएंगे। इसलिए टीका उपलब्ध होने के पांच से छह माह बाद ही टीकाकरण अभियान जोर पकड़ पाएगा। इसमें स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं व धर्म गुरुओं की मदद लेनी पड़ सकती है। पहली बार वयस्क लोगों को टीका लगाया जाना है। बड़ी आबादी को जब टीका लगाया जाएगा तो कुछ लोगों में मामूली दुष्प्रभाव भी दिख सकता है। उस स्थिति से निपटने और लोगों को सही जानकारी उपलब्ध कराने की चुनौती का सामना करने के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।
दूसरी बात यह है कि कोरोना से संक्रमित करीब 80 से 85 फीसद लोगों को कोई खास लक्षण नहीं होता। काफी संख्या में लोग कोरोना से संक्रमित भी हो चुके हैं। इसलिए टीके की जरूरत भी सभी को नहीं है। इसलिए यह प्राथमिकता भी तय करनी होगी कि टीके की वास्तविक जरूरत है किसे। इसके लिए जरूरी है कि कोरोना के गंभीर संक्रमण से पीड़ित होने वाले लोगों व मरने वालों के डाटा का आकलन किया जाए। जिस आयु वर्ग व पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों की करोना से मौतें अधिक हुईं उन्हें पहले टीका दिया जाना चाहिए।
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