दिल्ली के सत्यम और लिबर्टी सिनेमाघरों में हुए विस्फोटों का आरोपित 17 साल बाद बरी, पढ़िए पटियाला हाउस कोर्ट ने क्या कहा?
एचएस गिल पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्याकांड का भगोड़ा है। अभियोजन पक्ष कहना था कि बलजीत सिंह ने जसवंत सुरेंद्र सिंह बिक्कर सिंह और त्रिलोचन सिंह को संगठन में भर्ती करने के बाद प्रशिक्षित किया था। ये लोग आतंकी वारदात को अंजाम देने की साजिश रच रहे थे।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिबर्टी और सत्यम सिनेमाघरों में वर्ष 2005 में हुए दो विस्फोटों के मामले में आरोपित त्रिलोचन सिंह को पटियाला हाउस कोर्ट ने 17 साल बाद बरी कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेद्र राणा ने कहा कि त्रिलोचन को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सह-अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया था। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि आरोपित प्रतिबंधित आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सदस्य था।
अदालत ने सुरेश कुमार बुभारमल कलानी बनाम महाराष्ट्र सरकार के एक मामले में दिए गए निर्णय का हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने निर्णय दिया था कि एक आरोपित के कुबूलनामे के आधार पर दूसरे आरोपित पर बिना पर्याप्त साक्ष्य के आरोप तय नहीं किए जा सकते हैं। अदालत ने कहा कि जाहिर है, आरोपित त्रिलोचन सिंह के खिलाफ रिकार्ड में लाए गए साक्ष्य निर्णायक प्रकृति के नहीं हैं। अदालत ने इन टिप्पणियों के साथ त्रिलोचन को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अत्याचार अधिनियम की धारा-18 और 20 के साथ शस्त्र अधिनियम की धारा-25 के तहत आरोपों से बरी कर दिया।
हथियार बरामदगी भी नहीं साबित कर सकी पुलिस
अदालत ने कहा कि जहां तक त्रिलोचन सिंह से पिस्टल, मैगजीन और 12 कारतूस बरामद होने का आरोप है, तो यह बरामदगी भी संदेह के घेरे में है। अदालत ने कहा कि बचाव पक्ष ने दावा किया कि आरोपित बलजीत सिंह से मिली जानकारी पर पुलिस त्रिलोचन के हरियाणा के पंचकूला स्थित गांव गई थी। हालांकि, बलजीत ने अपने बयान में दावा किया था कि त्रिलोचन का घर पंजाब के डेरा बस्सी में है, जबकि उसका गांव पंचकूला में है।
इस संबंध में पुलिस कोई रिकार्ड नहीं पेश कर सकी कि डेरा बस्सी जाने की जहमत उठाए बगैर वह पंचकूला स्थित गांव कैसे पहुंची। इससे साफ होता है कि पुलिस की जांच में कुछ लिंक गायब हैं और अभियोजन पक्ष के बयान में संदेह की गुंजाइश है।
इन्हें ठहराया जा चुका है दोषी
इस मामले में अदालत पंजाब के मोहाली स्थित कुर्ली गांव निवासी बलजीत सिंह उर्फ बाहू को 16 सितंबर, 2014, पंजाब के संगरूर स्थित मौर गांव निवासी बिक्कर सिंह उर्फ बंत सिंह को 16 फरवरी, 2012, संगरूर स्थित कशा भूरल गांव निवासी दया सिंह लाहोरिया और संगरूर स्थित चन्नावल गांव निवासी सुखविंदर सिंह उर्फ सुखी को छह जून, 2019 और स्विटजरलैंड के जुचविल निवासी गुरुदेव सिंह उर्फ टोनी को सात मार्च, 2012 को दोषी ठहराया जा चुका है। इनके अलावा पंजाब के मुख्तसर स्थित सोहनेवाला गांव निवासी जसतंत सिंह उर्फ काला, पंजाब के लुधियाना स्थित खानपुर गांव निवासी कुलविंदरजीत सिंह उर्फ हैप्पी और जालंधर के कसुपुर गांव निवासी सुरेंद्र सिंह उर्फ फौजी को 22 फरवरी, 2012 को दोषी ठहराया गया था।
यह है मामला
बम विस्फोटों के पीछे मुख्य आरोपित जगतार सिंह हवारा के फोन काल की जांच में कुछ अंतरराष्ट्रीय मोबाइल नंबर सामने आए थे। ये नंबर जांच में एचएस गिल व दो अन्य लोगों के पाए गए थे। एचएस गिल पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्याकांड का भगोड़ा है। अभियोजन पक्ष कहना था कि बलजीत सिंह ने जसवंत, सुरेंद्र सिंह, बिक्कर सिंह और त्रिलोचन सिंह को संगठन में भर्ती करने के बाद प्रशिक्षित किया था। ये लोग आतंकी वारदात को अंजाम देने की साजिश रच रहे थे। अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि दोषी कुलविंदरजीत सिंह ने तीन पिस्तौल और कुछ गोला-बारूद अन्य सदस्यों को, जबकि कुछ गोला-बारूद त्रिलोचन सिंह को दिए थे।