दिल्ली में क्यों बढ़ रहे टीबी के मरीज? डॉक्टरों ने जताई दवा प्रतिरोधक बीमारी बढ़ने की आशंका
पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डा. विकास मौर्या कहा कि कई पुराने मरीज भी आ रहे हैं जिन्हें कोरोना होने के बाद दोबारा टीबी की बीमारी हो गई। क्योंकि स्टेरायड के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने से टीबी के बैक्टीरिया दोबारा सक्रिय हो गए।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना का संक्रमण कम होने के बाद टीबी के मामले बढ़ रहे हैं। इस वजह से पिछले साल के मुकाबले इस साल अब तक टीबी के 14.07 फीसद मरीजों की पहचान अधिक हुई है। खास तौर पर निजी अस्पतालों में मरीज अधिक बढ़े हैं। स्थिति यह है कि निजी अस्पतालों ने पिछले साल के मुकाबले टीबी के 43.23 फीसद मरीजों का अधिक पंजीकरण किया है। डाक्टरों का कहना है कि कोरोना के दौरान टीबी की बीमारी को लोगों ने नजरअंदाज किया। अब गंभीर संक्रमण के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं।
टीबी की देर से पहचान और इलाज में देरी से दवा प्रतिरोधक व बहु-दवा प्रतिरोधक (एमडीआर/मल्टी ड्रग रजिस्टेंट) टीबी की बीमारी बढ़ने का खतरा है।
पिछले साल 23 अगस्त तक दिल्ली में टीबी के 56,658 मरीजों की पहचान की गई थी, जबकि इस साल अब तक 64,632 मरीज सामने आ चुके हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल दिसंबर में कोरोना का संक्रमण कम होने के बाद इस साल जनवरी से मार्च के बीच टीबी के अधिक मरीज अस्पताल पहुंचे। लेकिन अप्रैल में दूसरी लहर के कारण टीबी के मरीज घट गए। बाद में संक्रमण कम होने पर अस्पताल में टीबी के मरीज दोबारा बढ़ गए। पिछले साल लाकडाउन में ज्यादातर अस्पतालों के बंद होने के कारण टीबी के नियंत्रण का कार्यक्रम प्रभावित हुआ था। ज्यादातर स्वास्थ्य कर्मी कोरोना के खिलाफ अभियान में जुटे थे।
आकाश हेल्थकेयर के मेडिसिन विभाग की विशेषज्ञ डा. परिणीता कौर ने कहा कि पिछले साल अस्पतालों में कोरोना के मरीज ही ज्यादा देखे जा रहे थे। कोरोना का संक्रमण होने के डर से टीबी के मरीज भी अस्पताल जाने से घबरा रहे थे। चिंता की बात यह है कि हाल के दिनों में टीबी के ऐसे मरीज अधिक देखे गए हैं, जिनमें टीबी का संक्रमण फेफड़े के अलावा पेट, मस्तिष्क या शरीर के दूसरे अंगों में भी फैल चुका था। ऐसी स्थिति में इलाज थोड़ा मुश्किल होता है और दवा लंबे समय तक चलती है। 20 से 25 साल के युवा व बच्चे भी टीबी की बीमारी के साथ पहुंच रहे हैं।
इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि बच्चे लंबे समय से घर में हैं, खेलकूद बंद है और जंक फूड अधिक खा रहे हैं। इस वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हुई है और बीमार होने पर सही समय पर डाक्टर से दिखाया नहीं गया। कई बार लंबे समय तक बुखार होने पर टाइफाइड समझकर इलाज किया जाता है। लेकिन, बाद में टीबी की बीमारी गंभीर हो जाती है। इसलिए 10 दिन से अधिक बुखार होने पर टीबी की कल्चर जांच जरूर करानी चाहिए।
गंभीर संक्रमण
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डा. विकास मौर्या कहा कि कई पुराने मरीज भी आ रहे हैं, जिन्हें कोरोना होने के बाद दोबारा टीबी की बीमारी हो गई। क्योंकि स्टेरायड के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने से टीबी के बैक्टीरिया दोबारा सक्रिय हो गए। कई मरीज दोनों फेफड़े व एक से अधिक अंगों में टीबी के संक्रमण के साथ मरीज पहुंच रहे हैं।