अफगानिस्तान में तालिबान का कहर- दूसरे दूतावासों के बाहर पहुंच अफगानी नागरिक मांग रहे वीजा
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानी नागरिक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। भारत में रह रहे जिन अफगानी नागरिकों की वीजा अवधि जल्दी ही खत्म होने वाली है वे अब दिल्ली स्थित दूसरे देशों के दूतावासों में वीजा देने की गुहार लगा रहे हैं।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अफगानी नागरिक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। भारत में रह रहे जिन अफगानी नागरिकों की वीजा अवधि जल्दी ही खत्म होने वाली है वे अब दिल्ली स्थित दूसरे देशों के दूतावासों में वीजा देने की गुहार लगा रहे हैं। इसी के चलते बृहस्पतिवार को बड़ी संख्या में अफगानी नागरिक वीजा के लिए आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान, चीन व अन्य देशों के दूतावासों पर पहुंचे।
यहां पहुंचे नागरिकों में से एक सोहेल ने बताया कि इस महीने के अंत में भारत में उनकी वीजा अवधि खत्म हो रही है। इसलिए वह आस्ट्रेलिया के दूतावास पर वीजा के लिए आए हैं। अगर उन्हें आस्ट्रेलिया का वीजा मिल जाता है तो वे वहां चले जाएंगे। साथ ही वह भारत सरकार को भी वीजा अवधि बढ़ाने के लिए आवेदन कर चुके हैं। वहीं, अन्य देशों के दूतावास में भी संपर्क कर रहे हैं। जिस देश का वीजा जल्दी मिल जाएगा वे वहीं चले जाएंगे। इसी तरह वीजा के लिए पहुंचे अन्य अफगानियों का भी यही कहना था कि वे पिछले तीन-चार दिन कई दूतावासों के चक्कर काट रहे हैं।
उधर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को लेकर रूस, चीन और पाकिस्तान ने अपनी नीति साफ कर दी है। तीनों देशों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तालिबान शासन को जायज ठहराया है। हालांकि, भारत अभी तक इस पूरे मामले में मौन है। अफगानिस्तान मामले में भारत बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। भारत, अफगानिस्तान में नई स्थिति का गइराई से विश्लेषण कर रहा है। भारत यह जानता है कि तालिबान के समक्ष भी अभी कई तरह की चुनौतियां हैं। तालिबान को अफगानिस्तान के अंदर ही कई तरह की बाधाओं को पार करना होगा। आखिर तालिबान शासन को लेकर रूस, चीन और पाकिस्तान का क्या स्टैंड है, तालिबान के समक्ष क्या नई चुनौती है। अफगानिस्तान पर नई नीति को लेकर आखिर भारत क्यों मौन है।
भारत की दोहरी चुनौती
इस मामले में प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अफगानिस्तान में भारत एक तरह से दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारत को एक तरफ जहां जम्मू-कश्मीर में फिर से आतंकवाद पनपने का भय है, वहीं दूसरी और तालिबान के मसले पर चीन और पाकिस्तान की ओर से उसे एक नई तरह की कूटनीतिक चुनौतियां भी मिल रही है। अब इस धड़े में रूस भी शामिल हो गया है। इस तरह यह चुनौतियां दो मोर्चे पर है। खासकर यह चुनौती तब और भी बड़ी हो जाती है, जब भारत ने अफगानिस्तान में विकास योजनाओं पर लंबा निवेश किया है। ऐसे में भारत अफगानिस्तान की समस्या से पूरी तरह मुंह भी नहीं मोड़ सकता है।