टोक्यो ओलंपिक में शामिल हुआ सर्फिंग, बढ़ी भारत की परियों की उम्मीदें...
सर्फिंग में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़कर अब महिलाएं भी इसमें आगे आ रही हैं। टोक्यो ओलंपिक में पहली बार शामिल हुए सर्फिंग इवेंट में दुनिया की कुल 20 महिला सर्फर्स ने क्वालिफाई भी कर लिया है। इससे भारत की महिला सर्फर्स के आत्मविश्वास को बल मिला है।
नई दिल्ली, अंशु सिंह। कर्नाटक के उडुपी जिले का एक छोटा-सा गांव कोडी बेंगारे आज खास बन चुका है और इसकी वजह बनी हैं देश की पहली महिला सर्फर इशिता मालवीय। उन्होंने यहां एक सर्फिंग क्लब शुरू किया है और लोगों का समंदर से एक नया रिश्ता जोड़ा है यानी जो मछुआरे पहले सिर्फ मछली आदि पकडऩे के लिए समंदर में जाते थे, जिन्हें पानी में तैरने से डर लगता था, इशिता ने उनके उस भय को बाहर निकाला। उन्हें सर्फिंग की ट्रेनिंग दी।
आज गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग महिलाएं तक सर्फिंग करने में पीछे नहीं हैं। ‘मैं 2007 में मुंबई से पढ़ाई के लिए कर्नाटक के मणिपाल आई थी। यहां एक जर्मन दोस्त मिला, जिसके पास सर्फ बोर्ड था। उसने हमें कृष्णा आश्रम का पता बताया, जहां सर्फिंग सीखने के लिए कम से कम 10 लोगों को साथ लाना होता था।
हमने वही किया और देखते ही देखते हमारी जिंदगी बदल गई,’कहती हैं इशिता। वह आगे बताती हैं,‘जब हमने शुरुआत की थी,तो परिवार से लेकर समाज तक सभी को लगा कि मैं समय बर्बाद कर रही हूं। लेकिन सर्फिंग ने मुझे सिखाया कि धैर्य कैसे रखना है। समय के साथ कैसे चलना है। दुनियावी बातों को कैसे नजरअंदाज करना है।' इशिता को समंदर और सर्फिंग से ऐसा लगाव रहा कि उन्होंने किसी बात की परवाह किए बगैर न सिर्फ इस स्पोर्ट्स को बढ़ावा दिया, बल्कि समंदर किनारे बसे आम ग्रामीणों और उनके बच्चों को भी जीने की नई राह दिखाई। वह बताती हैं,‘हम सर्फिंग सिखाने के साथ ही बच्चों को समुद्र और उसके किनारों की स्वच्छता के बारे में जागरूक भी करते हैं। इसका परिणाम यह है कि आज वे खुद ही पूरे आत्मविश्वास के साथ तटों पर गंदगी फैलाने वालों को ऐसा करने से रोकते हैं।'
देश की पहली महिला स्टैंडअप पैडलर: मेंगलुरु के निकट मुल्की की तनवी जगदीश को बचपन से ही पानी से बेहद लगाव रहा है। सप्ताहांत में पापा के साथ समंदर किनारे जातीं, तो वहां से लौटने का मन ही नहीं होता था। दादा जी को यह सब देखकर लगा कि कुछ तो बात है। उन्होंने तनवी को सर्फिंग के लिए प्रेरित किया। उन्हें सर्फ आश्रम (मंत्रा सर्फिंग क्लब) लेकर गए। इस तरह, मात्र नौ साल की उम्र से उन्होंने सर्फिंग शुरू कर दी। बताती हैं तनवी,‘मैं छुट्टियों में उनके पास जाती और ट्रेनिंग करती। मां को पता नहीं था। उन्हें जिज्ञासा होती थी कि आखिर मेरी स्किन डार्क क्यों हो रही है? बाल क्यों कम हो रहे हैं? एक दिन अचानक उन्होंने मुझे समुद्र में देख लिया। वह उनके लिए किसी झटके से कम नहीं था। उन्होंने मुझे सर्फिंग करने से साफ मना कर दिया। फिर मुझे भाई और दोस्तों की मदद लेनी पड़ी, जिन्होंने उन्हें समझाने का प्रयास किया। आखिरकार वह मान गईं और तब मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।' इसके बाद, तनवी ने खूब मेहनत की और देश की पहली पेशेवर महिला स्टैंडअप पैडलर बनीं। वह बताती हैं, ‘मैंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन देश का प्रतिनिधित्व करूंगी। जब फिजी के इंटरनेशनल सर्फिंग एसोसिएशन ने मुझे वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, तो वहां जाने के लिए न मेरे पास पैसे थे और न ही पर्याप्त उपकरण। दोस्तों, परिजनों के अलावा सर्फिंग स्कूल वालों ने फंड रेज किया, तब मैं फिजी जा सकी। वहां सभी ने भारत से आई लड़की का दिल खोलकर स्वागत किया, क्योंकि पहली बार भारत की ओर से प्रतिनिधित्व हुआ था। हालांकि वहां मैं 16वें स्थान पर रही, लेकिन सबने खूब मनोबल बढ़ाया।' नार्थ कैरोलिना की अप्रिल जिल इनकी प्रेरणा रही हैं, जिन्होंने इन्हें इस स्पोर्ट्स से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बारीकी से अवगत कराया। इनके कोई प्रोफेशनल ट्रेनर नहीं हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दोस्तों से सीखती हैं। 2006 में तनवी ने लगातार तीन गोल्ड मेडल जीते थे। उसके बाद यूएस में दो कांस्य पदक जीते। इसके अलावा, 2017 में नेशनल स्टैंडअप पैडलबोर्डिंग कॉम्पिटिशन जीता और अगले साल, 2018 में छह नेशनल इवेंट्स भी अपने नाम किए।
सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों से सामना: ‘सर्फिंग करोगी, तो सांवली हो जाएगी। फिर कौन शादी करेगा? पानी में कोई अनहोनी घट गई, तो क्या होगा?' इस तरह के कई सवालों से दो-चार होना पड़ता है महिला सर्फर्स को। इसके बावजूद कोई आगे बढऩा चाहती हैं, तो उनकी आर्थिक स्थिति आड़े आ जाती है। इस स्पोर्ट्स को मान्यता न मिलने के कारण उन्हें स्पांसर भी नहीं मिलते। 2018 के एक वाकये को याद करते हुए तनवी बताती हैं, ‘मैं वर्ल्ड कप में सिर्फ इसलिए हिस्सा नहीं ले सकी, क्योंकि मेरे पास फंड्स नहीं थे। अगली आस छह महीने बाद सिंगापुर में होने वाली एशियन सीरीज (ओशन कप) से थी। उसके लिए कड़ी मेहनत की थी। कॉलेज के साथ-साथ समंदर में आठ-आठ घंटे अभ्यास करती थी। फंड्स और स्पांसररशिप के लिए भी तमाम लोगों से बात की, बैंकों के चक्कर भी लगाए। कुछ इंतजाम हुआ और तब मैं सिंगापुर जा सकी। वहां कांस्य पदक भी जीता।' दरअसल, यह देश की विडंबना है कि करीब सात हजार पांच सौ किलोमीटर से भी लंबी तटीय रेखा होने के बावजूद इस स्पोर्ट्स को उतना प्रोत्साहन नहीं मिल सका है। इसके अलावा, यहां अब तक एक सुरक्षित बीच कल्चर भी विकसित नहीं हो सका है। लोग मौज-मस्ती के लिए समुद्र तटों पर आते हैं और वहां कचरा छोड़ चले जाते हैं। इतना ही नहीं, उनके दिमाग की गंदगी (फब्तियां कसना) भी महिला सर्फर्स की मुश्किलों को बढ़ाती है। सर्फिंग के लिए उन्हें शॉर्ट्स पहनने होते हैं, जिस पर पुरुष छींटाकशी करते हैं। इसलिए वे अकेले अभ्यास के लिए जाने से परहेज करती हैं। छठी कक्षा से सर्फिंग कर रहीं सिंचना गौड़ा कहती हैं कि अगर हमारे समाज की मानसिकता बदल जाए और लोग लड़कियों को सर्फिंग में आने से हतोत्साहित करना छोड़ दें, तो स्थिति कहीं अधिक बेहतर होगी।
भ्रम तोड़कर बनीं सर्फ इंस्ट्रक्टर: ओरोविल की सुहासिनी दामियान ने 2014 में पहली सर्फिंग प्रतियोगिता में भाग लिया था। तब वह अकेली लड़की थीं। आयोजक असमंजस में थे कि लड़कों के साथ उन्हें कैसे टीम में शामिल करें। वह बताती हैं, ‘मैं तभी यह जान पाई कि इस स्पोर्ट्स में कितनी कम लड़कियां हैं। इसके बाद ही मैंने ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को इसके प्रति प्रेरित करने का फैसला लिया। एक इंस्ट्रक्टर के रूप में उन्हें ट्रेन करती हूं। आगे अपने अपैरल ब्रांड के जरिये लड़कियों की आर्थिक मदद करने, उन्हें स्पांसर करने का इरादा भी है।' उनकी मानें, तो फिलहाल संख्या जरूर थोड़ी बढ़ी है, लेकिन लड़कों की तुलना में अब भी बहुत कम है। दरअसल, लड़कियों को इस स्पोर्ट्स में लाना आसान नहीं है। अव्वल तो उनमें समंदर (पानी) का डर होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अधिकतर लड़कियां तैरना नहीं जानती हैं। दूसरा, उन्हें पैरेंट्स का सपोर्ट नहीं मिल पाता। सुहासिनी खुद को खुशकिस्मत मानती हैं कि उन्हें माता-पिता ने कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। वह नई-नई चीजें करती रहीं, विभिन्न प्रकार की नृत्यशैलियां सीखीं, फुटबाल, बास्केटबाल जैसे स्पोर्ट्स खेले। यहां तक कि जब कभी किसी स्पोर्ट्स में लड़कियों की टीम बनाने की बात आई और पर्याप्त लड़कियां नहीं मिलीं, तो उन्होंने लड़कों के साथ ही टीम बना ली। सर्फिंग चुनने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। वह बताती हैं,‘मैं बचपन से ही बच्चों को समंदर किनारे मस्ती करते, सर्फिंग करते देखती आ रही थी। मेरा भी मन होता था ऐसा करने का। लेकिन पैरेंट्स को बताया नहीं। जब बड़ी हुई,तो अपने मंगेतर से कहा कि मुझे भी सर्फिंग करनी है। उन्होंने 10 दिन का कोर्स करने का सुझाव दिया। इसके बाद मैंने पुडुचेरी स्थित कलियाले सर्फ क्लब से ट्रेनिंग ली और आखिरकार 2011 से सर्फिंग की शुरुआत हुई।'उनका कहना है कि इस महीने टोक्यो में होने जा रहे ओलंपिक में बेशक भारत की ओर से शायद कोई महिला प्रतिनिधित्व न हो। लेकिन 2024 या 2028 में जरूर हमारी कोशिश रहेगी।
प्रेरणा बन बदल रहीं तस्वीर: मेंगलुरु की सर्फर अनीशा नायक कहती हैं,‘जब हम कुछ नया करते हैं,तो विरोध होता है। तब खुद का निश्चय पक्का होना चाहिए। जैसे मुझे पता था कि मैं क्या करना चाहती हूं। मेरे लिए मेरी खुशी ज्यादा मायने रखती है। सर्फिंग मेरी जिंदगी है।' वैसे, सर्फिंग में आने से पहले अनीशा एक तैराक थीं। जब उसमें एकाकीपन आने लगा, तो उन्होंने थोड़ा ब्रेक लेने का फैसला लिया। इसी दौरान किसी से सर्फिंग के बारे में पता चला और उन्होंने सप्ताहांत में पर उसे ट्राई करना शुरू किया। मजा आने लगा और इस तरह करीब छह साल पहले सर्फिंग की शुरुआत हुई। बताती हैं अनीशा,‘मैंने मेंगलुरु के निकट मुल्की स्थित क्लब से बकायदा प्रशिक्षण लिया है। देश-विदेश की सर्फिंग प्रतियोगिता में भाग लेती हूं। मेरा सपना सर्फ स्कूल्स का एक चेन शुरू करना है। उस पर काम जारी है।' जिज्ञासु स्वभाव और शोध में दिलचस्पी रखने वाली अनीशा कहती हैं कि सर्फिंग से बहुत कुछ सीखने को मिला है। कई बार जब सही लहरें नहीं मिलतीं, तो निराशा होती है। क्योंकि इंतजार करना पड़ता है। उस स्थिति में धैर्य ही एकमात्र उपाय होता है। अनीशा को लगता है कि जितनी अधिक लड़कियां अपनी खुशी और जुनून के साथ इस स्पोर्ट्स में आएंगी, उससे अन्य को भी प्रेरणा मिलेगी। सर्फिंग स्पोर्ट्स ही ऐसा है कि जो मन को सुकून देता है। इसमें समंदर के साथ अठखेलियां करने का अपना रोमांच है। जब लहरों के साथ सर्फ करते हैं, तो वह एहसास जादुई होता है।
समंदर-सर्फिंग ने बढ़ाया आत्मविश्वास: आज दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों में बहुत से क्लब, स्कूल खुल गए हैं, जो लड़के-लड़कियों को सर्फिंग की ट्रेनिंग दे रहे हैं। वहीं, इस समय देश में नेशनल और ओपन, दो श्रेणियों में सर्फिंग की प्रतियोगिता होती है। ओपन कैटेगरी में देश-विदेश के सर्फर्स हिस्सा लेते हैं। लड़कियों को इससे पहचान मिलती है। अंतरराष्ट्रीय पेशेवर सर्फर्स से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। गेम की तकनीक, ट्रिक्स आदि के बारे में अच्छी जानकारी मिल जाती है। कुछ जुनूनी लड़कियों ने तो इसे करियर के रूप में भी लेना शुरू कर दिया है। सर्फिंग से उनका व्यक्तित्व निखरा है। वे सजग हुई हैं। सिंचना बताती हैं कि पहले वे अनजान लोगों से बात नहीं कर पाती थीं। सर्फिंग ने उनमें आत्मविश्वास भरा है। पहचान मिलने से गर्व महसूस होता है। आगे बढऩे की प्रेरणा मिलती है। इन्हें खुशी है कि धीरे-धीरे ही सही लड़कियां इस स्पोर्ट्स में आगे आ रही हैं। तनवी तो समंदर को अपनी मां ही समझती हैं। उन्हें भरोसा है कि वह हमेशा उनकी रक्षा करेंगी। वह हर दिन सुबह साढ़े पांच बजे समुद्र तट पर पहुंच जाती हैं और घंटों अभ्यास करती हैं। समंदर और सर्फिंग ने आत्मविश्वास दिया है। वह मानती हैं कि दुनिया वाले कुछ भी सोचें, सृष्टि अपना चमत्कार करती है।
तैराक से बनी सर्फिंग चैंपियन: मेंगलुरु की सर्फर सिंचना गौड़ा ने बताया कि राज्यस्तर की तैराक रही हूं। शुरू में पता नहीं था कि सर्फिंग क्या होती है? एक बार कोच के मित्र (जो एक सर्फर थे) आए और मेरी ऊर्जा व शक्ति को देखकर सर्फिंग आजमाने की सलाह दी। मैं बीच पर पहुंची। अभ्यास किया। इससे बहुत अच्छा महसूस हुआ। उस अनुभव को शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इसके छह महीने बाद ही एक प्रतियोगिता में हिस्सा लेना था। मैंने कड़ी मेहनत की और एक मुश्किल प्रतिस्पर्धा में दूसरे स्थान पर रही। हौसला बढ़ा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तक करीब नौ प्रतियोगिताओं (राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय) में शामिल हो चुकी हूं। राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पांच स्वर्ण और तीन रजत पदक जीते हैं। 2015 में चेन्नई में आयोजित एशियन सर्फिंग चैंपियनशिप के सेमीफाइनल तक पहुंची थी। सर्फिंग में संतुलन (लहरों के मध्य सर्फ बोर्ड पर बैलेंस) का बहुत महत्व है। जब पानी के नीचे जाते हैं, तो अपने सांसों को कुछ समय के लिए थामना पड़ सकता है। इसके लिए नियमित योगाभ्यास करती हूं। जहां तक सर्फिंग के अभ्यास की बात है, तो इसके लिए सप्ताहांत को तय कर रखा है। वैसे, सब कुछ लहरों पर निर्भर होता है। इसलिए मौसम की भविष्यवाणी सुनना भी जरूरी होता है।
स्टैंडअप पैडलिंग के प्रति कर रहीं जागरूक: स्टैंडअप पैडलर तनवी जगदीश ने बताया कि सर्फिंग छोटे बोर्ड पर की जाती है, जबकि स्टैंडअप पैडलिंग में बड़े बोर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है। आपके पास पैडल होते हैं,जिन्हें मूव करना होता है। इसमें हमें पेट के सहारे बोर्ड पर लेटना होता है और हाथ से पैडलिंग करनी होती है। सर्फिंग से मैंने सीखा है कि कैसे हमेशा मजबूत और शांत रहते हुए धैर्य रखना है। इसने मुझे शारीरिक के साथ भावनात्मक रूप से भी मजबूत बनाया है। अच्छा इंसान बनने में मदद की है। अभी ट्रेनिंग पर ध्यान देने के साथ ही देश के अलग-अलग राज्यों में एसयूपी (स्टैंडअप पैडलिंग) कैंप लगा रही हूं, ताकि इस स्पोर्ट्स को ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकूं। स्टैंडअप पैडलिंग ऐसा स्पोर्ट्स है, जो समंदर,नदी,तालाब,झील,स्विमिंग पूल कहीं भी खेला जा सकता है। काडल (माल्पे बीच रोड, कर्नाटक) में सेंटर फॉर एसयूपी-सर्फ चलाती हूं और वहां स्टैंडअप पैडलिंग की ट्रेनिंग देती हूं। साथ ही 2024 के वर्ल्ड कप की तैयारी भी कर रही हूं। मेरे लिए यह गर्व की बात है कि ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को सर्फिंग व स्टैंडअप पैडलिंग में प्रशिक्षित कर पा रही हूं।