नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को नहीं मिली स्टेशनरी, अखबार पर कर रहे पढ़ाई
प्रिंसिपल ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस बार स्टेशनरी देने से साफ मना कर दिया है जबकि किताबें भी सिर्फ 50-60 प्रतिशत बच्चों को ही दी गई हैं। वहीं निगम के शिक्षा विभाग की एक अधिकारी ने बताया कि कोरोना के कारण बहुत सी चीजें लेट हुई हैं।
नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को निगम की ओर से अब तक स्टेशनरी नहीं मिल सकी है। इस कारण बच्चों को अपना होमवर्क पुराने अखबारों पर करना पड़ रहा है। बच्चे अखबारों में खाली जगह खोजकर उस पर वर्कशीट पूरा करके शिक्षकों को भेज रहे हैं। इससे बच्चों को तो परेशानी हो रही है, शिक्षकों को भी मुश्किल होती है। निगम की ओर से बच्चों को पाठ्य पुस्तकों के साथ ही स्टेशनरी (कापी, पेंसिल, रबर, कटर, स्केल) आदि उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था है, लेकिन अभिभावकों का कहना है कि उन्हें स्टेशनरी तो दूर, अभी किताबें भी नहीं मिल पाई हैं।
निगम स्कूल के एक प्रिंसिपल ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों ने इस बार स्टेशनरी देने से साफ मना कर दिया है, जबकि किताबें भी सिर्फ 50-60 प्रतिशत बच्चों को ही दी गई हैं। वहीं, निगम के शिक्षा विभाग की एक अधिकारी ने बताया कि कोरोना के कारण बहुत सी चीजें लेट हुई हैं। हो सकता है कि स्टेशनरी गोदामों में पड़ी हो और उसे जल्द बच्चों तक पहुंचाया जाएगा।
60 प्रतिशत बच्चे हो गए पढ़ाई से बाहर
निगम स्कूल के एक शिक्षक ने बताया कि आनलाइन कक्षा बस खानापूर्ति बनकर रह गई है, क्योंकि ज्यादातर बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं है। किसी के पास फोन है भी तो उसके पास इंटरनेट का खर्च उठाने की क्षमता नहीं है। अभी निगम के अधिकतम 40 प्रतिशत बच्चे ही आनलाइन क्लास से जुड़ पा रहे हैं। इनमें भी लो प्रोफाइल इलाकों के बच्चों की संख्या काफी कम है। 60 प्रतिशत बच्चों से तो संपर्क ही नहीं हो सका है। निगम स्कूलों में ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बच्चे पढ़ते हैं। कोरोना के कारण कई अभिभावक बेरोजगार हो गए।
इंग्लिश मीडियम की किताबें छपी ही नहीं
अब तक जो किताबें बांटी गई हैं वे हिंदी मीडियम की हैं। इंग्लिश मीडियम की किताबें अब तक छपी ही नहीं हैं। अभिभावकों से कहा जा रहा है कि इस बार किताबों की कमी है, इसलिए वे पास हो चुके बच्चों से पुरानी किताबों का इंतजाम करें। अभिभावकों की समस्या है कि वे पास हो चुके बच्चों को कहां खोजते फिरें और बहुत से बच्चों ने तो अब तक पुरानी किताबें संभाल कर रखी भी नहीं है।